शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने वर्ष 2024-25 के लिए 17053.78 करोड़ का अनुपूरक बजट पेश किया है। इस वित्तीय वर्ष के लिये सरकार ने 58444 करोड़ के अनुमान का बजट पेश किया था। इस बजट में 46667 करोड़ का राजस्व व्यय और 42153 करोड़ की राजस्व प्राप्तियां दिखायी गयी थी। बजट अनुमानों के अनुसार यह वर्ष 10784 करोड़ के घाटे पर बन्द होना था। लेकिन अनुपूरक बजट ने सरकार की वित्तीय स्थिति पर कुछ गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। अनुपूरक बजट में यह विवरण दिया गया है कि बढ़ा हुआ खर्च किन मदो पर खर्च हुआ है। सत्रह हजार करोड़ से अधिक के अनुपूरक बजट से यह सामने आया है कि सरकार के मूल अनुमानों में करीब 30% की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि क्यों हुई है और इसका आने वाले समय सरकार की राजस्व आय पर भी कोई असर पड़ेगा या यह बढ़ौतरी नियमित राजस्व व्यय का ही हिस्सा बनकर रह जायेगी। क्योंकि सामान्यतः हर वर्ष खर्चों में दस प्रतिश्त की मानक वृद्धि लेकर अगले बजट अनुमान तैयार किये जाते हैं। ऐसे में वर्ष 2025-26 का बजट अनुमान 80,000 करोड़ लगभग रहने का अनुमान है। वर्ष 2024-25 के 58444 करोड़ के बजट अनुमानों में वर्ष 10784 करोड़ के घाटे पर बन्द हो रहा था। अब जब अनुपूरक मांगों को मिलाकर बजट का कुल आकार ही 75000 करोड़ पहुंच जाता है तब आगे का यह बजट निश्चित रूप से 80000 तक पहुंचेगा ही।
वर्ष 2024-25 में राजस्व आय 42153 करोड़ की अनुमानित थी। तब इस वर्ष 10% की वृद्धि के साथ क्या यह 65000 करोड़ हो पायेगी यह देखना बड़ा सवाल होगा। क्योंकि इसी वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा वित्तीय संसाधन बढ़ाने के लिये किये गये उपायों से राजस्व आय में कितनी वृद्धि हुई है इसका आंकड़ा तो अगले बजट के अनुमानों में ही सामने आयेगा। लेकिन अनुपूरक बजट से जो खर्च बढ़ा है उसका आंकड़ा तो सामने आ गया है। परन्तु इस खर्च को पूरा करने के लिये कितने टैक्स लगाये जायेंगे और कितना कर्ज लिया जायेगा तो आगे ही सामने आयेगा। क्योंकि आगे चलकर सरकार को गारंटीयां भी पूरी करनी है। अभी तो राज्यपाल के अभिभाषण में यह गारंटीयां लागू हो गयी हैं। परन्तु आगे चलकर इनको व्यवहारिक रूप में भी पूरा करना होगा। चालू वित्त वर्ष में 17000 करोड़ से अधिक का खर्च बढ़ने पर इसको पूरा करने के लिये कितना कर्ज लिया गया है और भविष्य में और कितना कर्ज लिया जायेगा यह अभी सामने आना बाकी है। विपक्ष के मुताबिक सरकार 30000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। लेकिन अनुपूरक बजट में जब खर्च ही करीब 17000 करोड़ बढ़ा है तो इससे अधिक कर्ज लेने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये।
ऐसे में अब यह विपक्ष की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह इस बढ़े हुये खर्च का विवरण लेकर उस प्रदेश की जनता के सामने रखे। इसमें यह भी सामने आना चाहिये कि सही में कौन सी तत्कालिक आवश्यकताओं पर यह खर्च किया गया। इस खर्च को पूरा करने के लिये जनता पर कितना बोझ डाला गया और कितना कर्ज लिया गया। क्योंकि किसी सरकार के बजट अनुमानों में 30% तक का अन्तर आना कोई शुभ संकेत नहीं है। इतना बड़ा अन्तर किसी प्राकृतिक आपदा के बिना जायज नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि अनुपूरक बजट वर्ष के अन्त में विभिन्न मांगों में हुये खर्च के सर प्लस या सरन्डर से प्रभावित नहीं होता है। बजट आवंटनों की समीक्षा वित्त विभाग वर्ष में तीन चार बार करता है। इसलिये यह अब माननीय के विवेक और ईमानदारी पर सीधा सवाल आ जाता है कि बजट अनुमानों में आये इस अन्तर का पूरा ब्योरा कारणों सहित प्रदेश की जनता के सामने रखे।