विश्वसनीयता बनाने के लिये नेगी प्रकरण सी.बी.आई. को सौंप देना चाहिये
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Created on Sunday, 23 March 2025 18:23
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Written by Shail Samachar
- यदि देशराज का नाम एफ.आई.आर. में हो सकता है तो मीणा का क्यों नहीं?
- शोंगटोंग और पेखूबेला परियोजनाओं पर उठते सवाल कब तक नजरअन्दाज होते रहेंगे
- यदि पत्र बम आने पर उसमें दर्ज आरोपों को गंभीरता से लिया होता तो शायद नेगी की मौत न होती
शिमला/शैल। क्या पावर कॉरपोरेशन के चीफ इंजीनियर विमल नेगी की मौत के लिये जिम्मेदार लोगों को सजा मिल पायेगी? प्रदेश सरकार द्वारा इस मामले में आदेशित जांच और पुलिस द्वारा दर्ज की एफ.आई.आर. की जांच पर भरोसा क्यों नहीं हो पा रहा है? क्या विपक्ष की मांग पर यह मामला सी.बी.आई. को सौप जायेगा? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि जिस दिन से विमल नेगी गायब हुये थे उसके बाद से उनके परिजनों और पावर कारपोरेशन के कर्मियों/सहयोगियों द्वारा यह लगातार कहा जाता रहा कि वह गंभीर मानसिक तनाव में थे। इस मानसिक तनाव के लिये निगम के प्रबंधन को जिम्मेदार बताया जा रहा था। यह कहा जा रहा था कि प्रबंधन उन्हें गलत काम करने के लिये बाध्य कर रहा था। देर तक काम करवाया जाता था। छुट्टी मांगने पर छुट्टी नहीं दी जा रही थी। जब बिमल नेगी की लाश भाखड़ा बांध से शाहतलाई के निकट बरामद हुई तब परिजनों और कॉरपोरेशन के कर्मचारियों ने जिस तरह के आरोप लगाये और निगम के दो अधिकारियों हरिकेश मीणा और देशराज को तुरन्त प्रभाव से निलंबित करने की मांग की। इनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की। इस मांग पर देशराज को तो निलंबित कर दिया गया परन्तु हरिकेश मीणा को नहीं। इस मामले में जो एफ.आई.आर. दर्ज की गयी उसमें देशराज का तो नाम आ गया परन्तु मीणा का नाम नहीं आया केवल प्रबंध निदेशक लिखा गया। हरिकेश मीणा का नाम एफ.आई.आर. में न होने का मामला जब विधानसभा में गूंजा तब भी मीणा का नाम एफ.आई.आर. में नहीं आया। उसके बाद मीणा को छुट्टी पर भेज दिया गया। सरकार ने उसके बाद केवल यह आश्वासन दिया की जांच में जिसका नाम सामने आयेगा उसे एफ.आई.आर. में जोड़ दिया जायेगा।
इस प्रकरण में जिस तरह का आचरण सरकार का सामने आया है उससे तो यही प्रश्न उठता है कि यदि एफ.आई.आर. में देशराज का नाम हो सकता है तो उसी आधार पर मीणा का क्यों नहीं? कॉरपोरेशन के मुखिया मीणा है देशराज नहीं। परिजनों और निगम कर्मियों ने तो सबसे अधिक जिम्मेदार मीणा को ठहराया है। इस मामले की प्रशासनिक जांच अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा को सौंप गयी है। यह प्रशासनिक जांच और पुलिस की एफ.आई.आर. की जांच दोनों एक ही समय में चलेगी। पुलिस तंत्र की निष्पक्षता पर इसी दौरान सोशल मीडिया पर आयी भूपेंद्र नेगी की पोस्ट ने कई गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा दिये हैं। पावर कॉरपोरेशन के प्रबंधन और सरकार पर अविश्वास क्यों किया जा रहा है? यह सवाल अपने में ही बहुत महत्वपूर्ण और गंभीर है। क्योंकि पावर कॉरपोरेशन द्वारा जिन परियोजनाओं का निष्पादन किया जा रहा है वहां पर हुये भ्रष्टाचार को लेकर इस सरकार के आने के बाद से ही सवाल उठने लग पड़े थे।
स्मरणीय है कि इस सरकार के कार्यकाल में पावर कॉरपोरेशन के भ्रष्टाचार को लेकर एक पत्र प्रधान मंत्री के नाम लिखा गया था। इस पत्र में पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक और एक अन्य आई.ए.एस. अधिकारी के खिलाफ शोंग टोंग जल विद्युत परियोजना को लेकर करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इन आरोपों की जांच करवाये जाने की बजाये पावर कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक मीणा ने कुछ पत्रकारों के खिलाफ ही एक एफ.आई.आर. दर्ज करवा दी थी। इसकी जांच में भाजपा विधायक जनक राज तक का नाम उछला था। उस समय भी पत्र में दर्ज आरोपों की जांच सी.बी.आई. से करवाने की बातें हुई थी। परन्तु आज तक कोई परिणाम सामने नहीं आया है। जबकि मार्च 2023 में जब मुख्यमंत्री ने इस परियोजना को जुलाई 2025 तक पूरा करने के निर्देश एक समीक्षा बैठक में दिये थे तब मुख्यमंत्री ने इसमें आ रही बाधाओं को एक माह में पूरा करने के निर्देश दिये थे। इसके बाद परियोजना के डिजाइन में 600 प्रतिशत के बदलाव आने की चर्चा उठी थी। यह भी चर्चा में आया था कॉरपोरेशन 150 दिनों तक इस मामले में निष्क्रिय होकर बैठी रही है। 2024 में कॉरपोरेशन पर पेखूबेला सौर ऊर्जा परियोजना के निर्माण में भ्रष्टाचार होने के आरोप लगे थे। यह सवाल उठा था कि यदि गुजरात में 35 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना 144 करोड़ में बन सकती है तो पेखूबेला की 32 मेगावाट की सौर परियोजना 220 करोड़ में क्यों। लेकिन इन सवालों के जवाब आज तक नहीं आये हैं। स्वभाविक है कि जिस कॉरपोरेशन की कार्य प्रणाली पर इस तरह के सवाल उठे हों और सरकार द्वारा उन्हें टाल दिया गया हो वहां पर ईमानदार अधिकारी किस तरह के मानसिक तनाव में काम कर रहे होंगे इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। जब भी सरकार ऐसे भ्रष्टाचार को संरक्षण देगी तब ईमानदार अधिकारियों का अंजाम यही होगा यह तय है। सरकार को अपनी विश्वसनीयता बहाल करने के लिये यह मामला सी.बी.आई. को सौंप देना चाहिये।
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