Thursday, 18 September 2025
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क्या हेराल्ड को विज्ञापन और मुख्य सचिव की पार्टी सरकार पर भारी पड़ेगी?

  • क्या शीर्ष प्रशासन पर सरकार नियंत्रण खो चुकी है।
  • क्या भाजपा अब भी सरकार का साथ देने का साहस करेगी
  • भाजपा की देहरा उपचुनाव पर हुए खर्च पर चुप्पी से उठे सवाल

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार अपने ही भार से डूबने के कगार पर पहुंच चुकी है? क्या शीर्ष नौकरशाही पर सरकार नियंत्रण खो चुकी है? क्या हिमाचल सरकार और प्रदेश कांग्रेस के सहारे राहुल गांधी भाजपा से लड़ पायेंगे? यह सारे सवाल इसलिये खड़े हुये हैं कि हिमाचल सरकार द्वारा नेशनल हेराल्ड साप्ताहिक समाचार पत्र को दो वर्षाें में दो करोड़ से ज्यादा के विज्ञापन देने का सच उस समय सामने आया जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी तथा अन्य के खिलाफ ई.डी. ने धन शोधन के आरोपों पर अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। यह आरोप पत्र दाखिल किये जाने के खिलाफ कांग्रेस ने पूरे देश में ई.डी. कार्यालयों के बाहर धरना प्रदर्शन करके इस पर रोष प्रकट किया और इसे बदले की कारवाई करार दिया। आरोप पत्र का मामला अदालत में विचाराधीन है। वहां यह मामला टिक पाता है या नहीं यह समय बतायेगा। इस मामले पर शिमला में भी कांग्रेस ने धरने प्रदर्शन की रस्म अदायगी की है क्योंकि कांग्रेस नेताओं ने जनता के सामने यह कोई तर्क नहीं रखा कि कानूनी तौर पर इसमें क्या ज्यादती है। राष्ट्रीय स्तर पर जब इस आरोप पत्र के कानूनी तौर पर कमजोर पक्षों पर सवाल उठे तब भाजपा और कुछ मीडिया मंचों ने हिमाचल सरकार द्वारा नेशनल हेराल्ड को दो वर्षाें में दो करोड़ से ज्यादा के विज्ञापन दिये जाने का मुद्दा उठाया। यह विज्ञापन दिये जाने का खुलासा विधानसभा के बजट सत्र में 26 मार्च को भाजपा विधायक डॉ. जनक राज द्वारा इस आशय के प्रश्न के जवाब में सामने आया है लेकिन यह जानकारी राष्ट्रीय मुद्दा सोनिया और राहुल के खिलाफ ई.डी. के आरोप पत्र के बाद बना। जिस भाजपा ने विधानसभा में यह प्रश्न किया था वह भी इस पर खामोश थी। इससे प्रदेश भाजपा और सुक्खू सरकार के रिश्तों का खुलासा भी सामने आ जाता है।
इसी बीच प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा होली के अवसर पर पार्टी देने का खुलासा सामने आया। इस पार्टी पर खर्च हुये एक लाख बाईस हजार का भुगतान सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा किया गया है। यह मुद्दा भी राष्ट्रीय स्तर पर समाचार बना है। लेकिन प्रदेश भाजपा इस मुद्दे पर चुप रही है। मुख्य सचिव इस पार्टी का खर्च सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा उठाये जाने को नियमों के खिलाफ नहीं मानते। वैसे जिन अधिकारियों को आतिथ्य भत्ता मिलता है उन्हें ऐसी पार्टियों का खर्च अपनी जेब से ही देना पड़ता है। इस मुद्दे पर राज्य के मुख्यमंत्री और विपक्ष पूरी तरह खामोश है। क्या खामोशी विरोध की रस्म अदायगी की ओर इशारा नहीं करती है। क्योंकि मुख्य सचिव की पार्टी का आमंत्रण कार्ड जी.ए.डी. विभाग की ओर से जारी नहीं हुआ है। जो फोटो इस पार्टी का सामने आया है उसमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं जो अधिकारी नहीं हैं। यह पार्टी होली के दिन 14 मार्च को हुई थी। मुख्य सचिव को सेवा विस्तार 31 मार्च को मिला है। स्वभाविक है कि सुक्खू सरकार ने इस सेवा विस्तार का आग्रह केन्द्र से इस पार्टी के बाद किया है। केन्द्र ने भी राज्य सरकार के इस आग्रह को अपनी अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को नजरअन्दाज करके मान लिया। इससे साफ हो जाता है कि मुख्यमंत्री और उनकी टीम के रिश्ते केन्द्र के साथ कैसे हैं।
हिमाचल सरकार का कर्जभार एक लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है। सरकार सबको पैन्शन नहीं दे सकी है यह एचआरटीसी के पैन्शनरों के प्रोटैस्ट से सामने आ चुका है। सोलन में ठेकेदार अपने बिलों की अदायगी के लिये प्रदर्शन कर चुके हैं। पीजीआई चण्डीगढ़ में हिमकेयर कि करोड़ों की पेमैन्ट करने को है। चम्बा में जल शक्ति विभाग के काम पैसे के अभाव में बन्द हो चुके हैं। लेकिन साप्ताहिक नेशनल हेराल्ड को विज्ञापन देने के मामले में मुख्यमंत्री और उनकी पूरी टीम इसे जायज ठहराने में लग गये हैं। यह विज्ञापन दिया जाना नियमों के विरुद्ध है। फिर सुक्खू सरकार प्रदेश के अखबारों और पत्रकारों के खिलाफ जिस तरह की नीति अपना कर चल रही है वह एकदम कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर घोषित नीति के खिलाफ है। हेराल्ड को विज्ञापन देने को जायज ठहराने के लिये सरकार के मीडिया सलाहकार ने जयराम सरकार के दौरान भाजपा के प्रकाशनों को दिये गये विज्ञापनों के खर्चे की सूची जारी कर दी। लेकिन जयराम सरकार ने इन समाचार पत्रों को पांच वर्ष में जीतने के विज्ञापन दिये उतने के विज्ञापन दो वर्ष में सुक्खू सरकार ने हेराल्ड को ही दे डालें हैं। यह ठीक है कि कोई भी सरकार हो वह उन अखबारों और पत्रकारों का शोषण करती है जो सरकार से कठिन सवाल पूछते हैं। इस नाते दोनों सरकारों का आचरण नीति विरुद्ध रहा है। लेकिन सुक्खू सरकार ने जिस तरह से पुलिस तन्त्र के माध्यम से पत्रकारों को डराने का काम शुरू किया है वह अपने में अलग ही है। इस समय सरकार जिस तरह के वित्तीय संकट से गुजर रही है उसमें सरकार और उसके शीर्ष प्रशासन को संवेदनशील होना आवश्यक है। लेकिन इन विज्ञापनों और मुख्य सचिव की पार्टी के खर्च की भरपाई सरकार द्वारा किये जाने से यही परिलक्षित होता है कि आम आदमी सरकार के लिये कोई मायने ही नहीं रखता है।
अब भाजपा ने राष्ट्रीय कारणों से जिस तरह से हेराल्ड के विज्ञापनों को मुद्दा बनाया है उससे यह लगता है कि भाजपा को इस मुद्दे को आगे बढा़ना राजनीतिक आवश्यकता हो जायेगी। इस समय भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को कमजोर और अक्ष्म प्रमाणित करना आवश्यक हो जायेगा। बंगाल में भड़की हिंसा के परिदृश्य में वहां राष्ट्रपति शासन लगाना आसान हो जायेगा। हिमाचल सरकार वित्तीय संकट और अपनी फिजूल खर्ची के कारण अपने ही भार से डूबने के कगार पर पहुंच चुकी है। जिस सरकार को देहरा विधानसभा का उपचुनाव जीतने के लिये कांगड़ा सहकारी बैंक और जिला समाज कल्याण अधिकारी के माध्यम से 78 लाख रुपया खर्च करना पड़ा हो उसे चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप से कोई कैसे बचा पायेगा? राज्यपाल और चुनाव आयोग कितनी देर इसका संज्ञान नहीं लेंगे? प्रदेश भाजपा नेतृत्व कितनी देर इसे मुद्दा नहीं बनायेगा? जिस प्रशासन ने यह पैसा बांटने का साहस किया है उसे किसने निर्देशित किया होगा और वह सरकार का कितना शुभचिंतक होगा? इस परिदृश्य में भाजपा को अपने कारणों से इन मुद्दों को अन्तिम परिणाम तक ले जाना बाध्यता हो जायेगा।

यह है मुख्य सचिव की पार्टी का आमंत्रण कार्ड और फोटो

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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