Thursday, 18 September 2025
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मकलोडगंज प्रकरण क्या एन जी टी के निर्देशानुसार दोषीयों के खिलाफ कारवाई कर पायेगी सरकार

शिमला/शैल। सर्वोच्च न्यायालय की सी ई सी के बाद नेशलन ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुंचे कांगड़ा के धर्मशाला स्थित मकलोड़गंज बस स्टैण्ड निर्माण मामलें में अन्ततःट्रिव्यूनल ने 35 लाख का जुर्माना लगाते हुए इस निर्माण को पन्द्रह दिन के भीतर तोड़ने और संवद्ध जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने तथा उनकी जिम्मेदारी तय करने के निर्देश दिये हैं। इन निर्देशों की अनुपालना की जिम्मेदारी मुख्य सचिव को सौंपते हुए कहा है We direct the Chief Secretary to hold  an enquiry against the erring officials of HP BSM &DA and fix responsibility ट्रिव्यूनल ने 35 लाख के जुर्माने में 15 लाख निर्माता कंपनी प्रंशाती सूर्य को 10 लाख बस अड्डा प्राधिकरण और पांच लाख प्रदेश सरकार तथा पांच लाख पर्यटन विभाग को लगाया है।
स्मरणीय है कि मकलोड़गंज में पार्किंग सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये भारत सरकार ने 12.11.97 को पत्र संख्या 9-373/97-ROC के माध्यम से 930 वर्ग मीटर वन भूमि की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके बाद 1.3.2001 को पत्र संख्या 9-559/98-ROC 295 के माध्यम से 4835 वर्ग मीटर वन भूमि पर बस स्टैण्ड निर्माण की स्वीकृति प्रदान की थी। यह दोनो स्वीकृतियां मूलतः पर्यटन विभाग और एस डी एम धर्मशाला के नाम पर थी । लेकिन प्रदेश सरकार ने वर्ष 2006 में पर्यटन विभाग से एनओसी लेकर परिवहन विभाग की बस स्टेैण्ड मैनेजमैन्ट अथाॅर्रिटी को 99 वर्ष की की लीज पर अपने ही स्तर पर दे दिया और राजस्व रिकार्ड में इसका इन्द्राज भी बदल दिया। जबकि भारत सरकार से 12.11.97 और 1.3.2001 को आये पत्रों में स्पष्ट कहा था कि (1) The legal Status of the forest land will remain unchanged the forest land will be restored to the forest department as and when it is no more required (2) The forest land will not be used for any other purpose than that mentioned in the proposal. State Govt. will ensure through State forest department the fulfillment of these conditions. गौरलब है कि यहां पर पार्किंग स्थल बनाने की योजना 1995-96 से चल रही थी और जब वन भूमिे का उपयोग बदलने की बात उठी थी तो इस पर दो याचिकाएं 202/95 तथा 171-96 धर्मशाला के अतुल भारद्वाज तथा मुंबई पर्यावरण एक्शन गु्रप के नाम से सर्वोच्च न्यायालय में डाली गयी थी और इनके कारण 2004 तक यहां कोई निर्माण कार्य शुरू ही नही हो सका था। 7-11-2000 को राज्य सरकार ने यह निर्माण 1307 के आधार पर करवाने का फैसला लिया और 19-11-2003 को इस आश्य का एक विज्ञापन जारी किया जिसके उत्तर में केवल एक ही आवेदन आया जिसे रद्द कर दिया गया। इसके बाद 13-7- 2004 को नये सिरे से आवदेन मंगवाये गये और 13-10-2004 को HP BSM & DA  निदेशक मण्डल की बैठक में में प्रशांती सूर्य को यह कार्य BOT में आवंटित कर दिया। इसका Concession Period  16 वर्ष 7 महीने 15 दिन तय किया गया। इस आंवटन के साथ निर्माण का जो प्लान दिया गया उसके अनुसार इस बहुमंजिला काॅम्लैक्स का एरिया 3680 वर्ग मीटर होना था। इसके नक्शे टीसीपी से स्वीकृत होने थे लेकिन प्रंशाती सूर्य ने इस स्वीकृति के बिना दिसम्बर 2005 में निर्माण कार्य शुरू कर दिया। टी सी पी के पास 4-3-2006 के नक्शे आये इनमें कुछ कमियां थी जिनको दूर करने के लिये टी सी पी ने 28-7-2006, 5-10-2006, 27-11-2006, 4-1-2007 और 19-2-2007 को बस स्टैण्ड प्राधिकरण को पत्रा लिखे जिनका कोई जबाव नही आया निर्माण कार्य चलता रहा। जबकि टी सी पी ने सैक्शन 39 के तहत चार बार नोटिस देकर निर्माण कार्य बन्द करने के आदेश भी दिये। इस पर 13-4-2007 को जिलाधीश कांगड़ा ने निदेशक टी सी पी को पत्रा लिखकर इस निर्माण में कुछ रियायतें देने का आग्रह किया। इस पर 28-4-2007 को यह मामला मन्त्रिामण्डल के सामने आया। आरएफपी के अनुसार कुल निर्मित एरिया 6459 वर्ग मीटर होना था जबकि वास्तव में यह एरिया 13270 वर्ग मीटर हो गया है। टर्मिनल ब्लाक में जहां आरएफपी के मुताबिक दो मंजिले बननी थी वहां छः मंजिले बन गयी है। अनुमानित निर्माण लागत 15 करोड़ में से प्रशांती सूर्य ने आठ करोड़ बैंको से ट्टण लेकर जुटाये हैं जिसकी गांरटी राज्य सरकार ने दी है। सी ई सी ने इसका गंभीर संज्ञान लेते हुए लिखा था कि It has been Stated by M/S Prashanti Surya that it has taken Rs 8 Crores as loan for which state of Himachal Pradesh stands a guarantee. If this statement is correct , it is a very serious  Lapse an stern action needs to be taken against the concerned persons for giving   guarantee. The RFP document does not provide that the State will stand guarantee for repayment of loan taken by the successful bidder. सी ई सी ने राज्य सरकार से भी उसका पक्ष पूछा था। राज्य सरकार ने कहा है कि The State Government has stated that inadvertently, an error has been committed by using the piece of land measuring 093 hac for the construction of a commercial hotel complex rather than for parking place.  

सर्वोच्च न्यायालय की सी ई सी के बाद यह मामला एन जी टी के पास पहुंचा है। एन जी टी ने इसमें 35 लाख जुर्माना लगाने के साथ संवद्ध दोषी अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये हैं। अब सरकार इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील में जायेगी या दोषीयों के खिलाफ कारवाई करेगी इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हंै। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय की सी ई सी तो इसमें पहले ही गंभीर संज्ञान ले चुकी है। सी ई सी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को कड़ी फटकार लगायी हुई है। सी ई सी परिवहन फाॅरैस्ट, वित्त, टीसीपी, राजस्व और जिला प्रशासन के खिलाफ कड़ी टिप्पणीयां कर चुकी है जिसके अनुसार सबके खिलाफ आपराधिक मामले बनते हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय से सरकार को राहत की उम्मीद बहुत कम है।

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