शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह अपने खिलाफ चल रही सीबीआई और ईडी जांच से किस कदर आहत है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह इस सबके लिये धूमल, जेटली और अनुराग को लगातार कोसते आ रहे हैं। उधर धूमल ने फिर चुनौती दी है कि प्रदेश में मुख्यमन्त्री रहे तीनों नेताओं की संपति की जांच सीबीआई से करवा ली जाये। इस समय शान्ता कुमार, धूमल और वीरभद्र ही ऐसे नेता हैं जो प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे हैं इन तीनों के खिलाफ शिकायतें भी हैं। शान्ता के खिलाफ पालमपुर के ही एक सेवानिवृत प्रिंसिपल आंेकार धवन की शिकायत सरकार के पास धूमल के समय से लंबित है। गंभीर शिकायत है लेकिन न धूमल और न वीरभद्र ही इस पर कारवाई करने को तैयार हैं। धूमल के खिलाफ विनय शर्मा की शिकायत 2012 से लंबित चली आ रही है। विनय शर्मा तो इस शिकायत पर 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। 2013 से वीरभद्र सत्ता में है लेकिन आज तक उनकी विजिलैन्स इसमें कुछ नही कर पायी है। अनुराग ने भी बतौर सांसद 10,27,000 की संपति दो लाख में खरीदी हैं। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के मुताबिक कोई भी पब्लिक सर्वेन्ट कम कीमत पर संपति नही खरीद सकता। वीरभद्र की विजिलैन्स के पास यह सारे मामले हैं लेकिन कारवाई नही है।
धूमल के खिलाफ ए एन शर्मा के नाम पर बनाये गये मामले में सरकार की फजीहत किस कदर हुई है यह भी सबके सामने है। एच पी सी ए के सारे मामलों में सरकार की स्थिति हास्यस्पद हो चुकी है। सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का मामला आज तक आरसीएस और प्रदेश उच्च न्यायालय के बीच लटका पड़ा है। अरूण जेटली के खिलाफ मान हानि का मामला वापिस लेना पड़ा है। इन सारे प्रकरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र ने अपने विरोधीयों को घेरने के लिये हर संभव प्रयास किया है लेकिन उनका सचिवालय और उनकी विजिलैन्स इन प्रयासों को सफल नही बना पाया है। वीरभद्र के प्रयास सार्वजनिक रूप से सामने भी आ गये और उनके परिणाम शून्य रहने से फजीहत होना स्वाभाविक है। इसी फजीहत का परिणाम है कि वीरभद्र का दर्द इस तरह यदा-कदा सामने आ जाता है।
वीरभद्र परिवार के खिलाफ चल रहे मामले अपने अन्तिम परिणाम तक पहुचने के कगार पर पहुंच चुके हैं भले ही एक दिन की राहत का कानूनी जुगाड़ बैठाते हुए कुछ और समय निकल जाये लेकिन इन मामलों में नुकसान होने की पूरी-पूरी संभावना है। इस परिदृश्य में वीरभद्र का धूमल, जेटली और अनुराग को कोसना तब तक बेमानी हो जाता है जब तक कि वह उनको अपने बराबर के धरातल पर लाकर खड़ा नही कर देते हंै। आज वीरभद्र का कोसना केवल खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे होकर रहा गया है। ऐसे में यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि वीरभद्र अपने प्रयासों में सफल क्यों नही हो पा रहे हंै। क्योंकि यदि धूमल के खिलाफ भी आय से अधिक संपति का मामला ठोस आधारों पर खड़ा हो जाता है तो वह भी वीरभद्र की तर्ज पर आगे चलकर ईडी के दायरे में आ खड़ा होगा। लेकिन क्या वीरभद्र का सचिवालय और विजिलैन्स ऐसा कर पायंेेगे? आज इनकी मंशा पर भी राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्यांेकि वीरभद्र की सरकार अब तक उन आरोपों पर कोई परिणाम प्रदेश की जनता के सामने नही ला पायी है जिनके सहारे वह सत्ता तक पहुंची थी। बल्कि आज वीरभद्र सरकार स्वयं उन आरोपों में घिरती जा रही है जो वह विपक्ष में बैठकर धूमल सरकार के खिलाफ लगाया करती थी। क्योंकि विजिलैन्स के पास ऐसी शिकायतें मौजूद हैं जिन पर यदि ईमानदारी से गंभीर जांच की जाये तो उसकी आंच कई बडे़ चेहरांे को बेनकाब कर सकती है। लेकिन विजिलैन्स ऐसा कर नही पा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रशासन के अहम पदों पर बैठे बड़े बाबू अपने भविष्य की चिन्ता को लेकर ज्यादा सजग हो गये हंै। क्योंकि उन्हें उसी तर्ज पर धमकीयां मिलनी शुरू हो गयी है। जैसी की 31.3.99 को स्वयं वीरभद्र ने तत्कालीन शीर्ष प्रशासन को दी थी।