शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ने कुल्लु के अन्र्तराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के केन्द्रिय देव श्री रघुनाथ के मन्दिर का अधिग्रहण करने के लिये अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार के इस कदम का कुल्लु के देव समाज और महेश्वर सिंह ने कड़ा विरोध किया है। महेश्वर सिहं ने सरकार की अधिसूचना को प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका के माध्यम से चुनौती भी दे दी है। उच्च न्यायालय का फैसला क्या आता है तब तक सरकार के फैसले पर ज्यादा कुछ कहना सही नही होगा। लेकिन इस अधिग्रहण को जायज ठहराने के लिये मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने यह कहा है कि ऐसा करने के लिये क्षेत्र की जनता की मांग थी। सरकार ने जनता की मांग पर अधिग्रहण का फैसला लिया है। लेकिन कुल्लु की जनता ने यहां के राज परविार से जुडे़ कई मुद्दों पर पहले भी सरकार के पास मांगे रखी हंै जिन पर सरकार ने कभी अमल नही किया।
स्मरणीय है कि इसी रघुनाथ मन्दिर को लेकर 1941 में जिला जज श्री एस एम हक होशियारपुर की अदालत में दो प्रार्थनाएं नम्बर 12 और 13 आयी थी जिन पर 25.2.1942 को धर्मशाला कैंप में फैसला सुनाया गया था। यह प्रार्थनाएं 1920 के एक्ट नम्बर 14 की धारा 3 के तहत आयी थी। जिला जज एस एम हक ने अपनेे फैसले में इस मन्दिर को प्राईवेट संपति करार दिया था। इस फैसले के बाद एक समय श्रीमति विप्लव ठाकुर, कौल सिंह, सिंघी राम, स्व. राज किशन गौड और ईश्वर दास ने भी नवल ठाकुर के आग्रह पर इस मन्दिर के अधिग्रहण की मांग उठाई थी जिसे सरकार ने नही माना था।
इसी तरह देहात सुधार संगठन भुन्तर ने रूपी वैली को लेकर मांग उठायी थी। नवल ठाकुर 1991 में रूपी वैली के मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय में ले गये थे। उच्च न्यायालय ने 13.5.91 को अपने फैसले में 31.12.92 से पहले रूपी वैली के सारे नौतोड़ मामलों की समीक्षा के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों पर 4.11.96 को जिलाधीश कुल्लु ने इस स्थल के निरीक्षण के आदेश दिये थे। इस निरीक्षण की रिपोर्ट पर लम्बे समय तक जिलाधीश के कार्यालय में चिन्तन मनन चलता रहा। अन्त में 10.7.2006 को जिलाधीश कुल्लु के कार्यालय से मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त सविच को रिपोर्ट भेजी गयी। जिलाधीश के पत्र के साथ निरीक्षण की पूरी रिपोर्ट भेजी गयी जिस पर कभी कोई कारवाई नहीं हुई। जिलाधीश का पत्र और 1942 के जिला जज के फैसले की कापी पाठकों के सामने रखी जा रही है।
अब सरकार ने इस मन्दिर के अधिग्रहण का फैसला उस समय लिया जब महेश्वर सिंह ने अपनी हिमाचल लोकहित पार्टी को भाजपा में विलय करने का फैसला लिया। महेश्वर हिलोपा के एक मात्र विधायक है और उनके भाजपा में विलय पर दलबदल कानून लागू नही होता है। वीरभद्र के इस कार्यकाल में महेश्वर सदन के अन्दर और बाहर बराबर मुख्यमन्त्री के साथ खड़े रहे हंै। लेकिन अब जब राजनीतिक विवशताओं के चलते उन्होने पुनः भाजपा में वापसी करने का फैसला ले लिया तब सरकार के मन्दिर अधिग्रहण के फैसले को राजनीतिक आईने में देखा जाना स्वाभाविक है।