Thursday, 18 September 2025
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हिलोपा के बागी

शिमला/शैल। महेश्वर सिंह की हिलोपा का भाजपा में विलय हो गया है। इस विलय से पहले मीडिया से वार्ता करते हुए महेश्वर सिंह ने स्वीकार किया की वह प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा का राजनीतिक विकल्प खड़ा करने में असफल रहे हैं। इस वार्ता मंे उन्होने यह दस्तावेजी प्रमाण भी मीडिया के सामने रखा जिससे पूरी हिलोपा ने एकमत होकर महेश्वर सिंह को पार्टीहित में कोई भी फैसला लेने के लिये अधिकृत किया था। लेकिन इस एकमत फैसले के वाबजूद हिलोपा के कुछ नेताओं ने विलय के फैसले का विरोध करते हुए हिलोपा को बनाये रखने का फैसला लिया है। इन नेताओें ने महेश्वर के स्थान पर कांगडा के सुभाष शर्मा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी चुन लिया है।
जब हिलोपा का गठन करके इसका पंजीकरण करवाया गया था तब इसका मुख्यालय टिक्कु ठाकुर के आवास पर रखा गया था। हिलोपा के गठन में टिक्कु ठाकुर की केन्द्रिय भूमिका रही है। इस नाते कार्यालय सचिव की जिम्मेदारी उन्हे ही सौंपी गयी थी। चुनाव आयोग के पास भी वह पार्टी के अधिकृत पदाधिकारी थे। चुनाव आयोग के साथ सारा पत्राचार उन्ही के नाम से होता था। आयकर और चुनाव आयोग में समय -समय पर पार्टी से जुडी कोई भी जानकारी फाईल करने के लिये भी वही अधिकृत थे। लेकिन टिक्कु ठाकुर और बालनाहटा हिलोपा के वह प्रमुख नेता थे जिन्होने विधान सभा चुनावों के बाद पार्टी से किनारा कर लिया था। लेकिन जानकारी के मुताबिक चुनाव आयोग के पास आज भी टिक्कु ठाकुर का आवास ही अधिकृत मुख्यालय है और वही अधिकृत कार्यालय सचिव है। वही पार्टी से जुड़ी रिर्टन फाईल करने के लिये अधिकृत है और उन्होेने वांच्छित रिटर्न दायर नही किये हंै। इसका पार्टी के पंजीकरण और उससे संव( मामलों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
आज जो नेता विलय का विरोध करके नया अध्यक्ष चुन चुके हैं उन्होने पार्टी की इस वैधानिक और तकनीकी स्थिति की ओर कोई ध्यान क्यों नही दिया है? जब पार्टी कारगर विकल्प की भूमिका नही निभा रही थी तब इन नेताओं ने अपना रोष क्यों मुखर नहीं किया? कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने में इनका क्या योगदान रहा है? क्या एक समय पूरी हिलोपा केजरीवाल की आप में जाने का प्रयास नही कर रही थी? आज प्रदेश की जो राजनीतिक परिस्थितियां है उनमें एक विकल्प की अत्यन्त आवश्यकता है। लेकिन हिलोपा के विकल्प न बन पाने के लिये सभी एक समान जिम्मेदार नही है?आज हिलोपा के यह बागी क्या प्रदेश की जनता को यह भरोसा दिला पायेंगे कि आगे चलकर और कोई विलय तो नही कर लेगें? आज जनता तो विकल्प चाहती है परन्तु नेताओं के स्वार्थों से जनता का विश्वास टुटता जा रहा है। जनता नेताओं पर कैसे और क्यों विश्वास करे यही आज सबकी चिन्ता और चर्चा का विषय है।

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