Thursday, 18 September 2025
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वीरभद्र और सुक्खु में चल रहा शह -मात का खेल कहां रूकेगा।

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के दो दिन तक चले जनरल हाऊस के बाद प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी ने पत्रकार सम्मेलन को सम्बाधित करते हुए एलान किया है कि सुक्खु नहीं बदले जायेंगे और विधान सभा का अगला चुनाव वीरभद्र सिंह की ही कमान में लड़ा जायेगा। अंबिका सोनी के साथ ही सुक्खु ने भी यह कहा कि उनके वीरभद्र सिंह के साथ कोई मतभेद नही हैं। लेकिन अंबिका सोनी ने अपने ब्यान के साथ ही यह भी जोड़ा है कि उनके स्तर पर तो यही स्थिति है परन्तु उनसे ऊपर हाईकमान राहूल गांधी और सोनिया गांधी भी है जो कोई भी फैसला ले सकते हैं अंबिका का यह कहना फिर सारी स्थिति को खुला छोड़ देता है। जनरल हाऊस में नेताओं ने जिस तरह से अपने विचार रखे है। उनमें मुख्यमंत्री ने खुलकर संगठन की कार्यशैली पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। मुख्यमन्त्री ने स्पष्ट कहा कि संगठनात्मक जिलों के गठन से पूर्व उनसे राय नही ली गयी। अब यदि भाजपा प्रशासनिक जिले बनाने का वायदा कर देती हैं तो सरकार और पार्टी की फजीहत होगी। सचिवों की नियुक्तियों पर बहुत ज्यादा तलख थे। इस पर सुक्खु ने यहां तक कह दिया कि हर पिता पुत्र मोह का शिकार होता ही है। संगठन में सारे लेग चुनकर आये है। बाली ने कांग्रेस के आरोप पत्र पर कोई ठोस कारवाई न होने का मुद्दा उठाते हुए यहां तक कह दिया कि पार्टी लोकसभा की चारों सीटें क्यों और कैसे हार गयी। वरिष्ठ नेताओं के इस तरह के वक्तव्य पार्टी और सरकार के तालमेल की पूरी तस्वीर है।
वीरभद्र अपने बेटे को पूरी तरह स्थापित करने के लिये किसी भी हद तक जा सकते है। यह जगजाहिर हो चुका है। इसी मंशा से उन्होने वीरभद्र ब्रिगेड को अब एक जीओ की शक्ल दी है। ब्रिगेड और अब एनजीओ प्रमुख बलदेव ठाकुर का सुक्खु के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया जाना तथा सुक्खु के खिलाफ आये भाजपा के आरोपों पर मुख्यमन्त्री का तुरन्त जांच पडताल का एलान किया इसी कडी के हिस्से माने जा रहें है। विक्रमादित्य का टिकट आंवटन के मामले में हाईकमान के दखल का विरोध करना भी यही प्रमाणित करता है। क्योंकि रोहडू विधानसभा चुनावों में एक बार वीरभद्र के पूरे प्रयासों के वाबजूद प्रतिभा सिंह को टिकट न मिल पाना वीरभद्र की आशंकाओं का ठोस आधार है। चुनावों में अपना एक छत्र वर्चस्व स्थापित करने के लिये पार्टी अध्यक्ष पर पूरा कब्जा होना आवश्यक है और सुक्खु के रहते यह संभव नही है। इसलिये सुक्खु के खिलाफ हर संभव मोर्चा खोला गया है। अपनी मनवाने के खेल में वीरभद्र किस हद तक जा सकते हैं इसका गवाह 1980 -81 में जनता पार्टी के दल बदल से सरकार बनाये जाने का विरोध 1993 में पंडित सुखराम के विरोध के लिये विधानसभा भवन के घेराव की नौवत आना और 2012 में शरद पवार के साथ जाने की अटकलों का गर्म होना रहा है। फिर इस बार तो सीबीआई और ईडी जांच के परिणामों की आशंका बनी हुई हैं ऊपर से हाईकमान स्वंय भी कमजोर मानी जा रही है। इस परिदृश्य में थोडे से तल्ख तेवर दिखाकर पार्टी पर कब्जा करना आसान मान जा रहा है।
पार्टी और सरकार के बीच इस तरह की वस्तुस्थिति का होना जगजाहिर है। लेकिन इसके वाबजूद अगला चुनाव वीरभद्र के ही नेतृत्व में लड़ा जाना और सरकार की वापसी के दावे किये जाना चर्चा का विषय बन रहे है। 2017 के अन्त में विधानसभा चुनाव होने हैं परन्तु समय पूर्व ही चुनाव हो जाने की संभावनाएं भी बनी हुई है। ऐसे में यह समय चुनावी गणित के साये में देखा जा रहा है। लेकिन इस जनरल हाऊस के लिये आयी पार्टी प्रभारी अंबिका सोनी के स्वागत के लिये कोई बडा उत्साह नही देखा गया जबकि सामान्यतः ऐसे मौको पर खूब ढोल नगाडे बजते थे चुनावों में टिकटों की दावेदारीयों के लिये संभावित उम्मीदवारो के समर्थको का भारी हजूम रहता था। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी देखने को नही मिला। पार्टी कार्यालय में संगठन के पदाधिकारियों बल्कि विवादित बनाये गये पार्टी सचिवों के अतिरिक्त प्रभारी को मिलने कोई नही पहुंचा। इसी तरह पीटरहॉफ में भी सरकार में विभिन्न निगमों /बार्डो में ताज पोशीयां पाने वालों से हटकर और कोई मिलने वाला नही था। प्रभारी दोनों दिन करीब दो-दो घण्टे लगभग खाली रही। पीटरहॉफ में लंच के समय मुख्यमन्त्री के पास कोई भीड नही थी। पार्टी के भीतर की यह स्थिति अपने में ही बहुत कुछ कह जाती है। इस पर मुख्यमन्त्री और पार्टी अध्यक्ष में चल रहा शह और मात का खेल क्या गुल खिलाता है इस पर सबकी नजरें लगी हुई है।

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