Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

बिना अध्यक्षों के कब तक चलेंगे सूचना एंवम शैक्षणिक नियामक आयोग

प्रदेश की वरिष्ठ नौकरशाही की कार्य प्रणाली सवालों में 

शिमला/शैल। अभी 30 नवम्बर को सेवानिवृत होकर पहली दिसम्बर को मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव की पत्नी मीरा वालिया ने निजि शैक्षणिक संस्थानों के लिये बने रैगुलेटरी कमीशन में बतौर सदस्य पदभार ग्रहण कर लिया है। सदस्य के रूप में मीरा वालिया का चयन करीब पांच छः माह पहले हो गया था। लेकिन उन्होने ने सेवानिवृति के बाद ही नया पदभार संभालने को अधिमान दिया ताकि उन्हे इस आयोग में पूरे तीन वर्ष का कार्याकाल मिल जाये। मीरा वालिया के पदभार संभालने के साथ ही इस नियामक आयोग के सदस्यों की संख्या दो हो गयी है। लेकिन अभी तक इस आयोग के अध्यक्ष का पद खाली चल रहा है और करीब एक वर्ष से यह पद खाली है। इस पद को भरने के लिये अलग से आवेदन मांगने की आवश्कता होगी और इसके लिये इसे अलग से विज्ञापित करना होगा।
इस रैगुलेटरी कमीशन की तरह मुख्य सूचना आयुक्त का पद भी करीब एक वर्ष से खाली चल रहा है। इस पद को भरने के लिये आवेदन भी आमन्त्रित कर लिये गये थे। लेकिन इसके चयन के लिये चयन कमेटी का गठन नही किया गया और यह पद खाली चल रहा है। मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच वर्ष है और यह पद उच्च न्यायालय के न्यायधीश के समकक्ष है और यहां से सेवानिवृति के बाद उसी तर्ज पर उसे लाभ मिलते हैं इसलिये इस पद के लिये कई बड़ो की नजर रहना स्वभाविक है। इस पद के चयन के लिये जो कमेटी गठित होती है उसमे मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमन्त्री द्वारा मनोनीत एक वरिष्ठ मन्त्री/चयन बहुमत से होता है। तो स्वाभाविक है कि जिसे मुख्यमंत्री चाहेंगे वही इस पद को हासिल करेगा।
एक वर्ष से यह पद खाली चल रहा है। इसके लिये आवदेन आमन्त्रित कर लिये जाने के बाद भी चयन नही किया गया है। स्वाभाविक है कि इस पद पर किसी की नजर है जिसके लिये इस पद को अभी तक खाली रखा गया है। सचिवालय के गलियारों की चर्चाओं को यदि अधिमान दिया जाये तो इस पद पर मुख्य सचिव वीसी फारखा आयेंगे क्योंकि मुख्य सचिव के लिये जिस तरह से अपने वरिष्ठों को पछाड़ कर वह इस पद पर काबिज होने में सफल हुए हैं उससे यही संकेत उभरते हैं। फारखा के लिये इस पद को एक बार फिर विज्ञापित करना होगा क्योंकि उन्होने पहले इसके लिये आवदेन नही कर रखा है। माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया को पूरा होने में 2017 के मई जुन तक का समय लगा दिया जायेगा। क्योंकि इसा दौरान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष का पद खाली होगा।
ऐसे में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष का पद मुख्य सूचना आयुक्त और रैगुलेटरी कमीशन के अध्यक्ष का पद सब एक साथ भरे जायेंगे और तीन विश्वस्तों को यहां बिठा दिया जायेगा। इसी के साथ नया मुख्य सचिव भी एक अन्य विश्वस्त बन जायेगा। इस सब में जो नाम चर्चा में चल रहे हैं उनमें सीआईसी के लिये फारखा लोक सेवा आयोग के लिये नरेन्द्र चौहान रैगुलेटरी कमीशन के लिये वी एन एस नेगी और मुख्य सचिव के लिये तरूण श्रीधर शामिल हैं। लेकिन कानूनी हल्कों में इन दिनों एक चर्चा यह चल रही है कि क्या कोई कमीशन अध्यक्ष के बिना हो सकता है। कानून के जानकारों के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त बिना सूचना आयोग नही हो सकता। रैगुलेटरी कमीशन को तो पहले ही चुनौती दी जा चुकी है। प्राईवेट शैक्षणिक संस्थानों ने चुनौती दी है मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। इधर इतने समय तक इस पद के खाली रखे जाने से इस आयोग की आवश्यकता पर स्वतः ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। फिर यही कहीं भाजपा ने प्रशासनिक अकर्मणयता के नाम पर इन खाली पदों पर दिये अपने आरोप पत्र में सवाल उठा दिया तो स्थिति एकदम बदल भी सकती है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय में प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील में गयी हुई है और सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर स्टे लगा रखा है। अब यह मामला कभी भी सुनवाईे के लिये आ सकता है। अब तक प्रदेश में जितने भी प्राईवेट विश्वविद्यालय खोलने के लिये हर विश्वविद्यालय के नाम से एक अलग से एक्ट लाया जाता है। अब तक प्रदेश मे जितने भी प्राईवेट विश्वविद्यालय खुले हैं उनके किसी के भी एक्ट में यह प्रावधान नही किया गया है कि यह विश्वविद्यालय नियामक आयोग द्वारा कंट्रोल किया जायेगा। अब जब इस आयोग के अध्यक्ष का पद ही करीब एक वर्ष से खाली चल रहा है तो सरकार इसकी अनिवार्यता का औचित्य कैसे प्रमाणित कर पायेगी। अब यह सवाल चर्चा का विषय बनता जा रहा है।
इसी तरह अभी वीरभद्र सरकार ने पुलिस में सेवा निवृति से एक दिन पूर्व 1988 के बैच के आईपीएस अधिकारी वीएनएस नेगी को डीजीपी पदोन्नत करने से पूरे आईपीएस और आई ए एस हल्कों में यह पदोन्नति चर्चा का विषय बन गयी है। पुलिस में तो सबसे वरिष्ठ अधिकारी सोमेश गोयल ने तो वाकायदा अपना रोष व्यक्त करते हुए भारत सरकार के गृहमन्त्रालय को पत्र तक भेज दिया है। उनका आरोप है कि इन पदोन्नतियों में सर्विस नियमों की पूरी तरह अवहेलना की गयी है। सोमेश गोयल की वरियता को भी नजर अन्दाज करके उन्हे डीजीपी स्टेट नही बनाया गया था। उनके कनिष्ठ संजय कुमार को डी जी पी तैनात करते समय गोयल को भी डी जी पी प्रोमोट तो कर दिया गया परन्तु उन्हे अपैक्स स्केल नही दिया गया। अब नेगी को पदोन्नत करके उन्हे सेवा निवृति से पूर्व यह लाभ दे दिया गया है। इस समय पुलिस में डी जी पी स्तर के चार अधिकारी हो गये हैं।
दूसरी ओर आई पी एस 1988 बैच के अधिकारी को डी जी पी प्रोमोट करने से आई ए एस में भी इसी गणित पर पदोन्नतियों की मांग उठने की संभावना खडी हो गयी है। आई ए एस में अभी 1987 बैच के अधिकारियों को भी अतिरिक्त मुख्य सचिव नही बनाया गया है। 1987 बैच के ए जे वी प्रसाद भी सेवा निवृति के मुकाम पर पहुंच गये हैं इस नाते आई ए एस में भी पुलिस की तर्ज पर पदोन्नति की मांग उठना स्वाभाविक है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search