Thursday, 18 September 2025
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घातक हो सकता है प्रशासन के शीर्ष अधिकारियो में उभरा टकराव

शिमला/बलदेव शर्मा
1983 बैच के आई ए एस अधिकारी वी सी फारखा को प्रदेश का मुख्य सचिव बना दिये जाने पर उनसे वरिष्ठ 1982 के अधिकारियों में रोष पनपना और सरकार की कारवाई को अन्याय करार देना स्वभाविक हैं क्योंकि इन वरिष्ठ अधिकारियों को बड़ी पोस्ट के लिये न कवेल नजर अन्दाज ही किया गया बल्कि इन्हें अपने कनिष्ठ के अधीन ही काम करने के लिये बाध्य किया गया। मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री का विश्वस्त ही होना चाहिए यह सही है लेकिन इसमे यह भी उतना ही आवश्यक है कि एक वरिष्ठ अधिकारी को अपने से कनिष्ठ के नियन्त्रण में काम करने की भी स्थिति न खड़ी कर दी जाये जिससे की उनके आत्म सम्मान को ठेस न पहुंचे। वैसे भी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये यह आवश्वयक भी है इससे पहले भी प्रदेश में मुख्य सचिव की तैनाती के मौके पर दो बार वरिष्ठो को नजरअन्दाज किया गया है। पहली बार रेणु साहनीधर और दूसरी बार ओपी यादव और सीपी सुजाया नजर अन्दाज हुए थे परन्तु उन्हे मुख्य सचिव के साथ ही उसके नियन्त्रण से बाहर भी कर दिया गया था और इसी कारण वह लोग अदालत तक नही गये थे। लेकिन इस बार ऐसा नही हुआ और मामला अदालत तक जा पहुंच है। अदालत ने इन अधिकारियों को अन्तरिम राहत देते हुए अपने कनिष्ठ के नियन्त्रण में काम करने की स्थिति से बाहर रखने के निर्देश देते हुए सरकार को पोस्टिंग देने के आदेश दिये थे। सरकार ने इन आदेशों पर अमल करते हुए इन्हे निर्देशित पोस्टिंग भी दे दी है। अभी इस मामले में सरकार ने विस्तृत जवाब दायर करना है और उसके बाद इसमें उठाये गये कानूनी और प्रशासनिक सवालों पर फैसला आयेगा। यह भी तय है कि फैसला आयेगा इसका प्रभाव दूरगामी होगा।
कैट में गयी इस याचिका में कहा गया है कि 31.5.2016 को फारखा को सिविल सर्विस बोर्ड की बैठक बुलाये बिना ही मुख्य सचिव बना दिया गया है। यह भी कहा गया है कि फारखा 4.3.2014 को स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश के बिना ही मुख्य सचिव को वेतन मान दे दिया गया है। जबकि उस समय अतिरिक्त मुख्य सचिव के नियमित काडर के सदस्य नही थे और इस नाते मुख्य सचिव के चयन के दायरे में ही नही आते है। इसके लिये आई ए एस काडर रूल्ज 1954 और 1955 के रेगुलेशनज के प्रावधानों का हवाला दिया गया है। इसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य यह दिया गया है। कि हिमाचल प्रदेश में एक मुख्य सचिव और एक अतिरिक्त मुख्यसचिव के पद काडर में स्वीकृत है और इनके समकक्ष दो ही पद अतिरिक्त मुख्यसचिव के एकक्ष काडर सृजित किये जा सकते है इस आश्य का आदेश 20.8.2007 का पारित हुआ है और इसके मुताबिक प्रदेश में चार ही अधिकारी उच्चतम वेतन मान के अधिकारी हैं लेकिन 26.5.2016 को कार्मिक विभाग ने मुख्यमन्त्री के सामने जो सूची रखी है इसमें 16 अधिकारियों को उच्चतम वेतनमान में दिखाया गया जबकि इनमें से केन्द्र की प्रति नियुक्ति में तैनात चार अधिकारी तो वास्तव में 67000-79000 के एच ए जी स्केल में हैं याचिका में रखे गये तथ्यों और तर्कोे से यह स्पष्ट हो जाता है कि जितने अधिकारियों को उच्चतम वेतन मान में रखा गया है। उन सबको मुख्य सचिव के चयन के दायरे में नही लाया जा सकता। इनके मुताबिक इस दायरे में केवल वरिष्ठतम चार ही अधिकारी आ सकते है।
प्रदेश सरकार ने इस याचिका में जो अन्तरिम जवाब दायर किया है उसमें कहा गया है कि 4.3.2014 के जिस आदेश को चुनौती दी गयी है। उसे एक वर्ष के भीतर ही चुनौती दी जा सकती थी अब नही। लेकिन यह नही कहा गया हैं कि 4.3.2014 को वह आदेश वैध था। इससे यह भी प्रमाणित हो जाता है। आगे चलकर अतिरिक्त मुख्य सचिवों के इतने पद सृजित करने में भी तय नियमों की अवेहलना हुई है। सरकार के अन्तरिम जवाब में यह भी कहा गया है कि दीपक सानन के जांच दर्ज होने और 19.5.2014 को उसकी सूचना प्रदेश सरकार को भी दिये जाने का भी जिक्र किया गया है सरकार ने चार्जशीट किया हुआ है। विनित चैधरी के खिलाफ 1.5.2014 को सीबीआई में प्रारम्भिक जांच दर्ज होने और 19.5.2014 का उसकी सूचना प्रदेश सरकार को दिये जाने का भी जिक्र किया गया है। इस जांच पर आगे क्या हुआ है। इस बारे में कुछ नही कहा गया है। लेकिन इस जांच को चैधरी के खिलाफ आधार बनाया गया है।
सरकार के अन्तरिम जबाव में उठाये गये इन सवालों का यह अधिकारी क्या जबाव देते है यह तो आने वाले समय में स्पष्ट हो पायेगा लेकिन याचिका में मुख्य सचिव के चयन के दायरे में केवल वरिष्टतम चार लोगों को ही रखने का जो पक्ष रखा गया है। उससे भविष्य के लिये एक लाईन तय हो जायेगी यह माना जा रहा हैं बहरहाल यह अंदेशा हैं कि प्रशासन के शीर्ष पर बैठे अधिकारियों में उभरा यह टकराव कंही व्यक्तिगत न हो जायेे।

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