Thursday, 18 September 2025
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एम्टा से 2.60 करोड क्यों नही वसूले गये?

शिमला/शैल।
सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ एसआईटी गठित करके जांच किये जाने के आदेश दिये हैं। सिन्हा के खिलाफ प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि उन्होने कोल ब्लाक्स आंवटन के लाभर्थीयों के खिलाफ जांच को प्रभावित किया है। आरोप है कि कोल ब्लाक्स के लाभार्थी सिन्हा के घर पर उनसे मिलते रहे हैं। इस प्रसंग में सिन्हा के घर की विजिलैन्स डायरी भी अदालत में पेश हो चुकी है। अब सीबीआई के निदेशक के तहत ही यह एसआईटी गठित हुई है। कोल ब्लाक्स के आवंटन में यूपीए सरकार पर लाखों करोड़ का घपला होने का आरोप है। जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा था तब नवम्बर 2012 में सरकार ने यह आवंटन रद्द कर दिया था। सीबीआई ने इसमें हर मामले की जांच शुरू की थी। कुछ मामलों में लाभार्थी कंपनीयों के खिलाफ चालान अदालत तक भी पहंुच चुके हैं। लेकिन इन मामलों में कोई और बड़ी कारवाई सामने नही आयी है।
हिमाचल सरकार ने भी संयुक्त क्षेत्र में सितम्बर 2006 में एक थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके लिये इन्फ्रास्टक्चर विकास बोर्ड के माध्यम से निविदायें मांगी थी। इसमें छः पार्टीयों ने निविदायें भेजी लेकिन प्रस्तुति पांच ने ही दी और उनमें से दो को शार्ट लिस्ट किया गया। लेकिन अन्त में एम्टा के साथ ही ज्वाईंट वैंचर हस्ताक्षरित हुआ। क्योंकि एम्टा ने बंगाल और पंजाब में थर्मल प्लांट लगाने का दावा किया था। इसी आधार पर जनवरी 2007 में हिमाचल पावर कारपोरेशन और एम्टा के बीच एमओयू साईन हुआ। दोनों की 50ः50 की भागीदारी तय हुई और 48 महीनों में यह प्लांट लगाना तय हुआ। इसके तहत दो करोड़ की धरोहर राशी एम्टा को पावर कारपोरेशन में जमा करवानी थी।
एमओयूम साईन होने के बाद एम्टा ने जे एस डब्ल्यू स्टील के साथ सांझे में भारत सरकार से गौरांगढी में कोल ब्लाक हासिल कर लिया। यह कोल ब्लाक हासिल करने के लिये वीरभद्र ने एक ही दिन में विभिन्न मन्त्रालयों को पांच सिफारिशी पत्र भी लिखे थे जिनके कारण इन्हें यह कोल ब्लाक मिला था। एम्टा और जे एस डब्ल्यू स्टील में इसके लिये एक और सांझेदारी मई 2009 में साईन हुई। लेकिन जब नवम्बर 2012 में केन्द्र सरकार ने कोल ब्लाक्स का आवंटन रद्द कर दिया तो यह काम रूक गया। दिसम्बर 2012 में ही एम्टा के निदेशक मण्डल ने इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने फिर फैसला लिया की जब तक विद्युत बोर्ड बिजली खरीदने का अनुबन्ध नही करता है तब तक इस पर आगे नही बढेंगे। मार्च 2015 में बोर्ड ने यह अनुबन्ध करने से इन्कार कर दिया।
लेकिन पावर कारपोरेशन ने 26 दिसम्बर 2012 को 40 लाख और 9-5-2013 को 20 लाख का निवेश भाग धन के रूप में कर दिया। इस पूरे प्रकरण में जो सवाल उभरते हंै उनके मुताबिक जब एम्टा के साथ जनवरी 2007 में एमओयू साईन हुआ और 48 माह में यह प्लांट लगना था तो फिर यह सुनिश्चित नही किया गया कि इसमें कितना काम धरातल पर हुआ है। जब नवम्बर 2012 में कोल ब्लाक्स का आवंटन ही रद्द हो गया और दिसम्बर 2012 में एम्टा ने स्वयं इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया तो फिर उसके बाद पावर कारपोरेशन ने 26 दिसम्बर 2012 और 9-5-2013 को इसमें 60 लाख का निवेश क्यों कर दिया। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने किस आधार पर पावर परचेज एग्रीमैन्ट करने का आग्रह किया। सीबीआई की जांच में एम्टा के सारे दावे गल्त पाये गये हैं। एम्टा के साथ एमओयू साईन होने से पहले उसके बारे में विस्तृत जानकारी क्यांे नही जुटायी गयी। बिना पूरी जानकारी के कोल ब्लाक्स के लिये एम्टा की सिफारिश क्यांे की गयी? पावर कारपोरशन और इन्फ्र्रास्ट्रक्चर बोर्ड ने एम्टा से दो करोड़ का भागधन क्यों नही लिया? माना जा रहा है कि इस मामले में अब नये सिरे से जांच खूल सकती है। ईडी में यह मामला अभी तक लंबित है चर्चा है। कि इस संद्धर्भ में हिमाचल के भी कुछ लोगों ने सिन्हां से उसकेे घर पर मुलाकात की है।

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