Friday, 19 September 2025
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नगर निगम वर्ष 2017-18 में 50 करोड़ का ऋण लेकर करेगी 44 करोड़ की बचत

शिमला/शैल।
नगर निगम शिमला के चुनाव इस वर्ष मई में होंगे। इन चुनावों को प्रदेश विधानसभा के चुनावों का प्रतीक माना जा रहा है। जब से नगर निगम का गठन हुआ है तब से निगम पर कांग्रेस का ही शासन चला आ रहा है। 2012 में धूमल शासन के दौरान भाजपा ने निगम पर कब्जे की रणनीति बनाई थी और इस नीति के तहत मेयर और डिप्टी मेयर के सीधे चुनाव करवाने का फैसला लिया गया। लेकिन चुनावों की घोषणा के साथ ही सीपीएम चुनाव में आ गयी। सीपीएम के चुनाव में आने से मुकाबला तिकोना हो गया। सीपीएम मेयर और डिप्टी मेयर दोनों ही पदों पर भारी बहुमत से जीत गयी। जबकि पार्षदों में बहुमत भाजपा को मिला। सीपीएम की इस जीत से घबरायी कांग्रेस ने मेयर और डिप्टी मेयर के सीधे चुनाव के फैसले को फिर बदल दिया। भाजपा यह फैसला बदले जाने पर खामोश रही। इससे यह प्रमाणित होता है कि सीपीएम की इस जीत से भाजपा भी चिन्तित थी। अब फिर पार्षद ही मेयर और डिप्टी मेयर का चयन करेंगे। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि इस बार सीपीएम सारी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और हर वार्ड में तिकोना मुकाबला होगा। यदि मई तक आते-आते आम आदमी पार्टी भी इस चुनाव में उतरती है तो यह चुनाव और रोचक हो जायेगा। सीपीएम को सारी सीटों पर चुनाव लड़ना राजनीतिक आवश्यकता होगी क्योंकि वह मेयर और डिप्टी मेयर दोनो पदों पर काबिज रही है। इसलिये चुनाव से पहले ही कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लेना सीपीएम के लिये आसान नही होगा। निगम के 2017-18 के लिये लाये गये बजट से भी यही प्रमाणित होता है।
सीपीएम ने इस कार्यकाल का अन्तिम बजट निगम के हाऊस में रखा है। इसके मुताबिक वर्ष 2017-18 में निगम की कुल आय 40167.27 लाख और कुल खर्च 35713.77 लाख होगा। इन आंकडो के मुताबिक वर्ष 2017-18 में निगम के पास 4453.50 लाख शेष बच जायेगा। यदि यह आंकडे सही साबित होते हैं तो इसका अर्थ होगा कि अगले वर्ष के लिये नगर निगम ने जितने भी कार्य प्रस्तावित किये हैं उन्हे पूरा करने में निगम को कोई परेशानी नही होगी। यदि वर्ष 2015-16 और 2016-17 के आंकडो पर नजर डाले तो 2015-16 में निगम को कुल आय 12625.52 लाख हुई है जबकि खर्च 11722.43 लाख हुआ है और इस तरह 903.09 लाख का लाभ निगम को हुआ। वर्ष 2016-17 के लिये कुल अनुमानित आय 18196.60 लाख और खर्च 21517.52 लाख था। लेकिन पहले नौ महीनों में आय 11552.04 लाख और खर्च 8192.58 लाख रहा है। इन आंकडो के बाद संशोधित आंकडे निगम के हाऊस में रखे गये। इनके मुताबिक अब कुल आय 18103.86 लाख और खर्च 15852.88 लाख रहेगा। इन आंकडो से यह उभरता है कि नगर के वर्ष 2016-17 के लिये आय और व्यय के घोषित अनुमानित लक्ष्य पूरे नहीं हो पाये हैं। पहले नौ महीनों में निगम केवल 81 करोड़ 92 लाख 58 हजार खर्च कर पाया है और शेष बचे तीन महीनों में करीब दोगुणा खर्च का लक्ष्य रखा गया है। क्या तीन महीनों में यह शेष बचा खर्च हो पायेगा? इसको लेकर अभी से सवाल उठने शुरू हो गये है। क्योंकि वर्ष 2015-16 में निगम की कुल आय 12625.52 लाख थी जो कि 2016-17 में 18196.60 लाख अनुमानित थी। यह आय अब वर्ष 2017-18 के लिये 40167.27 लाख अनुमानित दिखायी गयी है। यह पिछले वर्ष के दो गुणा से भी अधिक है। निगम ने 2017-18 के बजट में कोई नये कर नहीं लगाये हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि निगम को यह आय कहां से होगी? क्या निगम की कर वसूली की दर में सुधार लाकर यह आय बढ़ेगी या इसके लिये ऋण लेकर आय को बढ़ाया जायेगा।
निगम को संपति कर से 2015-16 में 2204.10 लाख और 2016-17 में 1502.88 लाख की आय हुई है 2017-18 में इससे 1702.88 लाख का अनुमान है। राज्य वित्तायोग की सिफारिशों से 2015-16 में 2518.18 लाख, 2016-17 में 2580.67 लाख मिले है, 2017-18 में 2614 लाख का अनुमान है। किराये, शराब बिक्री, लीज और पार्किंग फीस आदि से 745.10 लाख, यूज़र चार्जिज़ आदि से 6662.90 लाख, सेल हायर चार्जिज से 35 लाख, केन्द्रिय लोक निर्माण विभाग से 10430.80 लाख, ब्याज से 1 करोड़, बचत खातों के ब्याज से 35 लाख, अन्य साधनों से 22.50 लाख आय का अनुमान है। इस तरह कुल राजस्व आय 22348.48 लाख रहने का अनुमान है। इसके साथ पूंजीगत आय 12818.79 लाख का अनुमान है। इसमें सब्जी मण्डी में शापिंग काम्लैक्स के निर्माण, स्मार्ट सिटी के निर्माण के लिये वित्तिय संस्थानों से 50 करोड का ऋण लेना भी शामिल है। खर्चो के नाम पर निगम का राजस्व व्यय 9551.22 लाख, प्रशासनिक व्यय 292.68 लाख निगम की ढांचागत परिसंपत्तियों के रख-रखाव पर 10586.50 लाख राजस्व अनुदान/उपदान आदि के तहत 264.00 लाख। इस तरह कुल राजस्व व्यय 20700.50 लाख रहने का अनुमान है। इसके साथ वर्ष 2017-18 में पूंजीगत व्यय 15013.27 लाख रहने का अनुमान है। इस वर्ष के अन्त में निगम की कुल आय उसके कुल खर्च से 4453.50 लाख बढ़ जाती है। इस पर फिर सवाल उठता है कि जब खर्च से आय अधिक है तो फिर 50 करोड़ का ऋण लेने का क्या औचित्य है।

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