शिमला/शैल। परिवहन मन्त्री जी एस बाली ने लालबत्ती छोड़ने का ऐलान करके एक बार फिर अपने राजनीतिक इरादों को जग जाहिर कर दिया है। इससे पहले बाली ने अपनी संपति की सार्वजनिक घोषणा करके राजनीतिक हल्कों में हलचल पैदा कर दी थी। बेरोजगारी भत्ते के लिये भी बाली ने वीरभद्र पर पूरा राजनीतिक दबाव बनाकर यह फैसला लागू करवाया है यह जगजाहिर है। बाली के वीरभद्र से इस शासनकाल में यदा-कदा मतभेद भी चर्चित होते रहे हैं। इन मतभेदों के चलते कई बार पद त्यागने के मुकाम तक भी बाली जा पहुंचे हैं। बाली के केन्द्रिय परिवहन मन्त्री नितिन गडकरी और दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के साथ अच्छे रिश्ते होना भी राजनीतिक गलियारों की चर्चा रह चुके हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी सच हैं कि वीरभद्र के हर संकट में वह उनके साथ खड़े रहे हैं। जब राजेश धर्माणी ने विद्रोह के स्वर मुखर किये थे और धर्माणी के साथ राकेश कालिया भी शामिल हो गये थे उस समय उठे राजनीतिक तूफान को शांत करने में भी बाली की अहम भूमिका रही है। बल्कि पार्टी के अन्दर जब भी वीरभद्र के लिये राजनीतिक संकट उभरने की नौवत आयी तो उसे टालने में बाली हर बार सबसे आगे रहे हैं। बाली के केन्द्र सरकार के आटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ भी व्यक्तिगत रिश्ते हैं जबकि वीरभद्र अपने खिलाफ चल रहे मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय तक में रोहतगी और पीठासीन जस्टिस सांघी की रिश्तेदारी को लेकर अदालत पर अविश्वास व्यक्त कर चुके हैं। इस परिदृश्य में बाली के हर राजनीतिक कदम के मायने अपने में गभीर और चर्चा का विषय बन जाते हैं।
इस समय बाली पर अपनी संपति घोषित करने और लाल बत्ती छोड़ने के लिये कोई वैधानिक अनिवार्यता नही थी और न ही पार्टी का कोई ऐसा राजनीतिक फैसला था। लेकिन फिर भी बाली ने यह फैसले लिये क्योंकि अभी पंजाब के मुख्यमन्त्री अमरेन्द्र सिंह ने वीआईपी कल्चर समाप्त करने की दिशा में ऐसा फैसला लिया। बल्कि पंजाब के वित्तमन्त्री मनप्रीत बादल ने तो सरकारी गाड़ी तक का प्रयोग छोड़ दिया है। पंजाब के बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसी ही घोषणा की है। लेकिन हमारे यहां लालबत्ती पाने के लिये वीरभद्र के नजदीकी विधायक संजय रत्न ने जमीन आसमान एक कर दिया। विधायकों को बत्ती देने के लिये कईयों को लाल और नीली बत्तीयां देनी पड़ी है। बाली के संपति घोषित करने के बाद दूसरा कोई राजनेता ऐसा साहस नही कर पाया है। बाली ने अपनी संपति और ऋण दोनों सार्वजनिक किये हैं और इस पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उठा सका है। जबकि एक समय यही बाली म्यूजिकल बलास्टर और स्की विलेज को लेकर अपने और विरोधीयों के बराबर निशाने पर रह चुके हैं। शान्ता कुमार जैसे नेता भी बाली पर आरोप लगा चुके हैं लेकिन आज बाली के खिलाफ भाजपा तक कोई आरोप नहीं लगा पा रहा है।
इस समय मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई और ईडी के मामले जिस हद तक आगे बढ़ चुके हैं उनके परिदृश्य में यह चर्चा चल पड़ी है कि क्या आने वाले विधानसभा चुनावों के लिये वीरभद्र सिंह ही पार्टी के नेता रहेंगे या फिर किसी नये नेता को सामने लाया जायेगा। यदि किसी कारण से पार्टी को नया नेता तलाशने की नौवत आ जाती है तो उस दिशा में बाली सबसे पहला नाम होंगे यह तय है। मानाजा रहा है कि बाली ने यह घोषणाएं करके अपने को नेतृत्व की पहली पंक्ति में खड़ा कर लिया है। यदि बाली को नजरअन्दाज किया जाता है तो वह इस समय विद्रोह करने की पूरी स्थिति में है। बाली ने यह घोषणाएं करके अपरोक्ष में हाईकमान को अपने इरादे जगजाहिर कर दिये हैं क्योंकि कभी वीरभद्र ने भी हाईकमान पर दबाव बनाकर ही यह कुर्सी हासिल की थी और आज बाली भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चल पडे हैं।