Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

आनन्द चैाहान को जमानत क्यों नही मिल पा रही है

उच्च न्यायालय में लग चुकी है अब तक 50 पेशीयां
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के एल आई सी एजैन्ट आनन्द चैाहान पिछली नौ जुलाई से मनीलाॅंडरिंग मामले में जेल में है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत याचिका अस्वीकार कर दी है। आनन्द चैाहान वीरभद्र सिंह के आय से अधिक सम्पत्ति और मनीलाॅंडरिंग में दर्ज मामलों में सहअभियुक्त हैं। आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सी बी आई अपनी जांच पूरी करके चालान ट्रायल कोर्ट में दायर चुकी है क्योंकि इस मामले में दर्ज एफ आई आर को रद्द करने की गुहार को दिल्ली उच्च न्यायालय रद्द कर चुका है। ई डी इस मामले में दूसरा अटैचमैन्ट आर्डर जारी करने के बाद वीरभद्र से भी पूछताछ कर चुकी है। इस सारे प्रकरण में अब तक केवल आनन्द चैाहान की ही गिरफतारी हुई है और उनकी जमानत याचिका तक खारिज हो चुकी है। आनन्द के पास जमानत के लिये केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही दस्तक देने का विकल्प बचा है। ऐसे में अब यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि यह सारा मामला कहीं आनन्द चैाहान की मुर्खता का ही प्रमाण तो नहीं है जिसके कारण वीरभद्र और अन्य सभी जांच की आंच झेल रहे हैं।

इसे समझने के लिये इस पूरे प्रकरण में आनन्द की भूमिका को तथ्यों के आधार पर परखना आवश्यक हो जाता है।
आनन्द चैाहान का वीरभद्र सिंह के बागीचे के प्रबन्धन का एमओयू 15.6.2008 को हस्ताक्षरित है। आनन्द चैाहान ने आयकर विभाग के चण्डीगढ स्थित अपील अभीकरण में वर्ष 2009-10, 2010-11 और 2011-12 के आयकर आकलनों को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थी। इन याचिकाओं पर 1-12-16 2-12-2016 को सुनावाई हुई और 8.12.2016 को फैसला आया है जिसमें अपील अभीकरण ने आनन्द चैाहान की याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया है। इन याचिकाओं के माध्यम से जो तथ्य सामने हैं उन्हे समझने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ईडी में मनीलाॅड्रिंग प्रकरण के तहत हिरासत झेल रहे चैाहान को जमानत क्यों नहीं मिल पा रही है। चैाहान वीरभद्र सिंह के सीबीआई और ईडी मामलों में सह अभियुक्त है। चैहान एलआईसी के ऐजैन्ट हैं बल्कि उनकी पत्नी भी एलआईसी की ऐजैन्ट हैं। इस नाते यह माना जाता है कि उन्हें एलआईसी में किये जा रहे निवेश और उसके परिणाम स्वरूप आयकर विभाग द्वारा आय आकलन के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का पूरा ज्ञान होगा ही। वीरभद्र परिवार के सदस्यों के नाम आनन्द चैाहान के माध्यम से ही एलआईसी पाॅलिसियां ली गयी है और इन्ही पाॅलिसियों के आधार पर वीरभद्र परिवार अपने विरूद्ध सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे हैं।
आनन्द चैाहान ने वर्ष 2009-10 के लिये 1,83,700 रूपये की आयकर रिटर्न दायर की है जिसे विभाग ने 2.24 लाख पाकर पड़ताल के लिये 15.7.2011 को नोटिस जारी किया क्योंकि विभाग को चैाहान के पीएनबी संजौली शाखा और एचडीएफसी बैंक में खाते होने की जानकारी मिली थी जिसका रिटर्न में कोई जिक्र नहीं था। विभाग के नोटिस के जबाव में 20.10.2011 को कहा कि यह बैंक खाता परिवार का संयुक्त खाता है जिसमें कृषि आय और कमीशन आदि का हिसाब है। लेकिन फिर 22.11.2011 को सूचित किया कि इस खाते मंे वीरभद्र सिंह के बागीचे की आय का हिसाब है और वह बागीचे प्रबन्धक हैं तथा इस आश्य का 15.6.2008 का हस्ताक्षरित एमओयू है इस एमओयू की फोटो कापी विभाग को दी और यह यह कहा कि मूल प्रति खो गयी है। सीबीआई और ईडी को भी फोटो कापी ही दी गयी है। इस फोटो कापी की प्रमाणिकता जांचने के लिये आयकर अधिकारी ने वीरभद्र सिंह का कोई ब्यान तक नही लिया है। इस एमओयू में प्रयुक्त स्टांप पेपरों पर आनन्द का नाम कटिंग करके डाला गया है रजिस्ट्र में भी कटिंग की गयी है। पीएनबी के खाते में चैाहान के नाम पर 1.04 करोड़ जमा है। एचडीएफसी में पांच लाख 20.11.2008 को जमा होते हैं और चैाहान इन्हे एक साधराम द्वारा एलआईसी पाॅलिसी के लिये दिये गये बताता है। चैाहान 26.11.2008 को एलआईसी के नाम चैक काटता है। लेकिन जांच में साधराम के नाम से कोई पाॅलिसी ही नही निकलती है। जबकि वीरभद्र सिंह के नाम दस लाख की पाॅलिसी का फार्म 18.6.2008 को भरा जाता है इसी दौरान युनिवर्सल एप्पल 1.6.2008 और 13.6.2008 को पांच-पांच लाख चैाहान को देता है जिसे वीरभद्र के बागीचे की आय बताया जाता है। एलआईसी के लिये चैक भी दस लाख का ही दिया जाता है। यहां पर सवाल उठता है कि जब आनन्द के साथ एमओयू ही 15.6.2008 को साईन होता है। तो फिर 1.6.2008 और 13.6.2008 को वीरभद्र के नाम से यूनिवर्सल एप्पल चैाहान को पेमैन्ट क्यों और कैसे कर रहा है। एमओयू का दावा चैहान करता है। स्टांप पेपर वह लेता है लेकिन आयकर विभाग इस पर वीरभद्र से क्यों नही पूछता है। इसका कोई कारण नही बताया जाता है। वर्ष 21010-11 के लिये चैाहान 3,40,080 रूपये की रिटर्न भरता है जबकि उसके बैंक खाते में 2,12,72,500रूपये जमा होते हैं। उसके पास 1.4.2009 को 1.03 करोड़ कैश इन हैण्ड होता है। इसी वर्ष में वह 3.84 करोड़ वीरभद्र परिवार के नाम पर एलआईसी में निवेश करता है। वीरभद्र के साथ हुए कथित एमओयू के अनुसार बागीचे की सारी उपज की सेल करना उसकी जिम्मेदारी है और वह यूनिवर्सल एप्पल को यह सेब बेचता भी है। परन्तु सेल के लिये बिल आनन्द की बजाये यूनिवर्सल एप्पल काटता है। जबकि कायदे से यह बिल आनन्द को काटने चाहिए थे। 12.8.2009 को 3540 क्रमांक का बिल काटा जाता है। इसमें 310 बाक्स 900 रूपये प्रति बाक्स और 105 बाक्स 550 रूपये प्रति बाक्स दिखाये जाते हैं। इसके बाद 19.8.2009 को क्रमांक 1989 का बिल काटा जाता है। जिसमें 403 बाक्स 1780 रूपये प्रति बाक्स दिखाये जाते हैं। जांच में यह भी सामने आता है कि चैाहान के पास 2.91 करोड़ छःमाह, 2.41 करोड़ दो माह और 1.41 करोड़ 25 दिन के लिये कैश इन हैण्ड रहता है। जबकि एमओयू की शर्त के मुताबिक इस पैसे का तुरन्त निवेश हो जाना चाहिए था परन्तु ऐसा हुआ नही है। इसी दौरान आनन्द चैाहान एलआईसी के विकास अधिकारी मेघ राज शर्मा के खाते में 49.50 लाख जमा करना बताता है। जबकि बाद में यह रकम एक करोड़ निकलती है।
वर्ष 2011-12 के लिये आनन्द चैाहान 2,65,690 रूपये की रिटर्न भरता है। जबकि उसके खाते में 1.35 करोड़ जमा होते हैं जिनमें से 1.30 करोड़ वह एलआईसी को ट्रांसफर करता है। इसी तरह यूनिवर्सल एप्पल 1.5.2010 से 8.5.2010 के बीच आनन्द को एक करोड एडवांस देना बताता है लेकिन उसके रिकार्ड में इसकी कोई एंट्री ही नही मिलती है। आनन्द चैाहान ने वीरभद्र परिवार के नाम जो 15 एलआईसी पाॅलिसियां ली हैं वह 27.3.2010, 28.05.2010 और 31.12.2010 की हैं सबमें एकमुश्त पैसा जमा हुआ है।
इन सारे तथ्यों को सामने रखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि आनन्द चैाहान ने हर वर्ष अपनी आयकर रिटर्न भरते हुए अपनी पूरी आय का खुलासा नही किया है। तीनों वर्षो की रिटर्न के मुताबिक इस अवधि में वह अपनी आय करीब आठ लाख दिखाता है जबकि उसके खातों में करीब पांच करोड़ जमा होते हैं। बागीचे के प्रबन्धन का सारा खर्च वह करता है। इस खर्च के नाम पर 31.10.2010 को एक ही दिन वह पैकिंग के लिये 6,06,831/- कीटनाशक दवाईयों के 3,25,631/- और लेवर के लिये 3,50,000 रूपये खर्च करता है। आयकर अधिकारी जांच के लियेे उसकी रिटर्न पर उसको नोटिस जारी करता है जिस पर वह अन्ततः यह कहता है कि उसके खातों में जमा सारा पैसा वीरभद्र के बागीचे की आय है। इस आश्य के एमओयू की फोटो कापी पेश करता है मूल प्रति गुम होने की बात करता है। परन्तु इस एमओयू की प्रमाणिकता के लिये विभाग वीरभद्र से नही पूछता है आनन्द चैाहान ने अपनी आयकर रिटर्न गलत क्यों भरी? जब उसके खातों में पैसा था और वह उसका निवेश भी कर रहा था। ईडी सूत्रों के मुताबिक इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर न दे पाने के कारण ही उसको जमानत नही मिल पा रही है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search