शिमला/शैल। प्रदेश के सूचना आयोग और शिक्षा के रैगुलेटरी आयोग को अभी तक अध्यक्ष नहीं मिल पाये हैं। दोनों संस्थाओं के यह पद एक वर्ष से अधिक समय से खाली चले आ रहे हैं। जबकि राज्य लोक सेवा आयोग में खाली हुए अध्यक्ष और सदस्य के पदों को तुरन्त भर दिया गया है। बल्कि सदस्य का पद तो उसी दिन भर दिया गया जिस दिन वह खाली हुआ। इस पद पर मुख्यमन्त्री के प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया की पत्नी मीरा वालिया की ताजपोशी हुई है। मीरा वालिया पहले शिक्षा के रैगुलेटरी कमीशन में सदस्य थी वहां से त्यागपत्र देकर वह लोक सेवा आयोग में आयी है और अब रैगुलेटरी कमीशन में न कोई अध्यक्ष है और न ही सदस्य। यही स्थिति सूचना आयोग की भी होने जा रही है क्योंकि वहां भी कार्यरत एकमात्र सदस्य इसी माह में सेवानिवृत होने जा रहे हैं। इसी तरह प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में भी हरीन्द्र हीरा की सेवानिवृति के बाद से सदस्य का पद खाली चला आ रहा है। सूचना आयोग और रैगुलेटरी आयोग में अध्यक्ष पद एक वर्ष से भी अधिक समय से खाली चले आ रहे हैं और अध्यक्ष का पद ही खाली हो तो अनुमान लगाया जा सकता है कि इन पदो और संस्थाओं की हमारे राजनेताओं की दृष्टि में क्या अहमियत है। जबकि शिक्षा के क्षेत्र में तो अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने एक एसआईटी तक का गठन करके उसे काम पर लगा दिया है और यह एसआईटी भी हिमाचल के ही एक मामलंे के सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने के बाद गठित की गयी है।
इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह महत्वपूर्ण पद क्यों खाली चल आ रहे हैं और इनको भरने के लिये किसकी क्या भूमिका रहती है। इन पदों को भरने की जिम्मेदारी मुख्यमन्त्री की होती है और इसमें उनके कार्यालय तथा मुख्य सचिव की विशेष भूमिका रहती है। क्योंकि यह इन लोगों की जिम्मेदारी होती है कि वह ऐसी चीजों को तुरन्त मुख्यमन्त्री के संज्ञान मे लाये तथा संवद्ध प्रशासन से इनकों भरने की प्रक्रिया शुरू करवायें। इन पदों पर प्रायः सेवानिवृत बड़े अधिकारियों की ही तैनातीयां की जाती है। कई बार जिन अधिकारियों का कार्याकाल थोड़ा ही बचा होता है उन्हें सेवानिवृति देकर इन पदों पर बिठा दिया जाता है। ऐसे में यही सवाल उठता है कि जब सुभाष आहलूवालिया की पत्नी को काॅलिज के प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत होने से पूर्व ही रैगुलेटरी कमीशन में सदस्य लगा दिया गया था और फिर वहां से एक दिन भी खोये बिना लोक सेवा आयोग में लगा दिया गया तो फिर ऐसी ही तत्परता और सजगता इन पदों को भरने में क्यों नहीं दिखायी गयी?
इस संद्धर्भ में सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक फैली चर्चाओं के मुताबिक इस समय सरकार चलाने में सबसे बड़ी भूमिका टीजी नेगी और सुभाष आहलूवालिया अदा कर रहे हैं । यह दोनों ही सेवानिवृत हैं बल्कि विपक्ष तो इन्हीं लोगों को इंगित करके मुख्यमन्त्री पर रिटायर्ड और टायरड अधिकारियों पर आश्रित होने का आरोप तक लग चुका है। इनके बाद मुख्य सचिव वीसी फारखा का नाम चर्चा में आता है। इन अधिकारियों के साथ ही मन्त्रीयों सुधीर शर्मा तथा मुकेश अग्निहोत्री का नाम आता है। इन्ही के साथ हर्ष महाजन और अमितपाल शर्मा चर्चा में आते हैं अब इन सबके साथ राज्यपाल के सलाहकार डा. शशी कान्त का नाम भी जुड़ गया है। इस चर्चा में यह माना जा रहा था कि जो अधिकारी इस समय सरकार चला रहे हैं कल सरकार बदलने पर उनका क्या होगा क्योंकि वीसी फारखा की बतौर मुख्य सचिव ताजपोशी को विनित चौधरी ने कनिष्ठता के आधार पर कैट में चुनौती दे रखी है। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार बदलने की सूरत में फारखा का मुख्य सचिव बने रहना कठिन होगा। फारखा भी इस हकीकत से वाकिफ हैं और इसीलिये यह बड़े पद खाली जा रहे थे। इनमें लोक सेवा आयेाग के अध्यक्ष पद पर फारखा का जाना तय माना जा रहा था क्योंकि यही एक पद ऐसा है जहां पर ‘‘पुण्य भी फल भी’’की कहावत चरितार्थ होती है। फिर के. एस. तोमर लोक सेवा आयोग के बाद मुख्य सूचना आयुक्त होना चाहते हैं। वीरभद्र पर उनके कुछ ऐसे एहसान है जिनके चलते वह उन्हे इनकार नहीं कर सकते हैं। धूमल के लिये भी तोमर को न कहना कठिन है बल्कि चर्चा तो यहां तक है कि वह बैठक में भी डा. शशीकांत और टीजी नेगी द्वारा तोमर का नाम आश्वस्त हो जाने पर ही आये थे। लेकिन आखिरी वक्त पर लोक सेवा आयोग के लिये मेजर जनरल का नाम आ जाने से सारा गणित बिगड़ गया। इस नियुक्ति को चर्चाओं के मुताबिक कार्यवाहक मुख्य सचिव ने फारखा के छुटटी से आने तक रोकने का पूरा प्रयास किया लेकिन इसमें वह शायद अकेले पड़ गये। लेकिन फिर उन्होने मुख्य सूचना आयुक्त के लिये पोस्ट को पुनः विज्ञाप्ति करने का ऐसा सूत्र सामने रखा जिसे कोई काट नही पाया। बल्कि पुलिस अधिकारियों के स्थानान्तर की जो फाईल आर्डर के लिये तैयार पड़ी थी उसे भी फारखा के आने तक रोक दिया गया। ऐसे में अब सीआईसी प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और रैगुलेटरी कमीशन में कौन जाता है इस पर रहस्य ज्यादा बढ़ गया है। लेकिन इस प्रकरण में शीर्ष प्रशासन में बनने वाले नये समीकरणों का संकेत भी साफ उभरता देखा जा सकता है।