टिकट आवंटन के बाद उभरी बगावत पड़ेगी भारी
शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनाव हो रहे हैं इसके लिये 16 जून को मतदान होगा। इस चुनाव में वामदल, भाजपा और कांग्रेस में त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। यह सभी दल सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव उम्मीदवारों की सूची जारी करने में वामदलों ने पहल करके अपने विरोधीयों को इस संद्धर्भ में तो निश्चित रूप से पीछे छोड़ दिया है। नगर निगम में जीत का सेहरा किसके सिर सजता है यह तो 17 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन यह तय है कि इन चुनावों का असर विधानसभा चुनावों पर भी पडे़गा। अभी जब मतदाता सूचियों को लेकर विवाद खड़ा हुआ और राज्य चुनाव आयोग द्वारा इन सूचियों को संशोधित करने के आदेश जारी करने पडे़ तब चुनाव आयोग के इस कदम को भाजपा ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी तथा साथ ही राज्यपाल को एक आरोप पत्र भी सौंपा। इस आरोप पत्र में भाजपा ने वामदलों और प्रदेश की कांग्रेस सरकार को खूब घेरा है। अब उच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह चुनाव घोषित हो गये है। ऐसे में भाजपा को अपने आरोप पत्र पर जांच और कारवाई करने की मांग का तो शायद ज्यादा समय नही है लेकिन अब अपने ही आरोप पत्र के मुद्दों पर कारवाई करने का भरोसा इसे शिमला की जनता को देना पडे़गा।
पानी शिमला शहर की सबसे बड़ी समस्या है जिसके चलते निगम प्रशासन पूरे शहर को हर रोज एक साथ पानी देने की स्थिति में कभी भी किसी भी सीजन में नहीं रहा है, बल्कि भाजपा शासन के दौरान भी शिमला को पानी लाने के प्रयास में एक बड़ी पाईप लाईन बिछाई गई थी जिसे आशियाना रेस्तरां के पास से रिज के टैंक से जोड़ा गया था। जिसमें कभी पानी आया ही नहीं। पानी के संद्धर्भ में कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों की स्थिति एक जैसी ही रही है। पानी के बाद शहर की दूसरी बड़ी समस्या अवैध निमार्णों की है। शहर में 7000 से भी अधिक अवैध निर्माण है। हर सरकार में अवैध निर्माण होते रहे हैं। जिन्हें नियमित करने के लिये हर बार रिटैन्शन पाॅलिसीयां लायी जाती रही है। नौ बार ऐसा हो चुका है इस बार यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। शहर में फैले पीलिया को लेकर संवद्ध अधिकारियों के खिलाफ कारवाई किये जाने को लेकर भी आज तक मामला उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। सरकार और निगम प्रशासन इन लोगों के खिलाफ अदालत से हटकर अपने स्तर पर विभागीय कारवाई को अंजाम दे सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। शहर मे सीवरेज के लिये भी एक समय बड़ा मास्टर प्लान तैयार किया गया था। आऊट सोर्स के नाम पर यह सर्वे एक दिल्ली की कंपनी से करवाया गया था, लेकिन यह सीवरेज प्लान आज तक अमली जामा नही ले पायी है। भाजपा ने निगम क्षेत्र मे हुए भ्रष्टाचार की जांच के लिये राज्यपाल को एक आरोप पत्र सौंप कर नगर की जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। ऐसे में उजागर किये गये इस भ्रष्टाचार पर सख्त कारवाई की वचनबद्धता क्या भाजपा शिमला की जनता को देगी या यह आरोप पत्र मात्र चुनावी प्रचार का मुद्दा होकर ही रह जायेगा इस पर शिमला की जनता की निगाहें लगी हुई है।
भाजपा ने एशियन विकास बैंक के ऋण से किये जा रहे शिमला के सौंदर्यकरण पर भी गंभीर सवाल उठाये हैं। निश्चित रूप से सौन्दर्यकरण के नाम पर इस 260 करोड़ के ऋण का आपराधिक दुरूपयोग हो रहा है। शहर के दोनो चर्चों की रिपेयर के लिये ही 24 करोड़ का अनुबन्ध किया गया है। इस अनुबन्ध का दस्तावेज शैल बहुत पहले ही अपने पाठकों के सामने रख चुका है। भाजपा ने अपने आरोप पत्र में भी इस मुद्दे को उजागर किया है। सौन्दर्यकरण के इस काम के एक बड़े भाग को जो ठेकेदार अंजाम दे रहा है उसने पिछले दिनों जब प्रधानमन्त्री मोदी शिमला आये थे भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। उसकी पत्नी ने भी जो कभी शिमला की मेयर रह चुकी है भाजपा की सदस्य बन गयी है। बहुत संभव है कि महिला के नाम पर वह शिमला से विधान सभा के लिये भाजपा की उम्मीदवार हों। इन लोगों के सहयोग से शिमला में सौन्दर्यकरण के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार को और भी विस्तार से जनता के सामने ला सकती है। इस परिदृश्य में क्या भाजपा अपने इस आरोप पत्र पर कारवाई करने की वचनबद्धता शिमला की जनता को दे पायेगी या नही इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
इसी के साथ निगम चुनावों में जिस तरह से भाजपा ने टिकटों का आवंटन किया है उससे आधा दर्जन से अधिक बार्डो में बगावत के स्वर मुखर हो गये हैं टिकट आवंटन में योग्यता को दर किनार करने से लेकर परिवारवाद तक के आरोप लग गये हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं में उभरी इसी बगावत से एक ही सन्देश जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर मिली सफलता से यह व्यवहार करने पर उत्तर आया है कि ’जीताऊं’ की परिभाषा केवल नेता विशेष के प्रति वफादारी ही है। यह व्यक्तिगत वफादारी का पैमाना जब टिकट पाने का आधार बन जाता है तब संगठन को नुकसान पहुंचना तय बन जाता है। इन निगम चुनावों में टिकट के आवंटन का आधार यही व्यक्तिगत वफादारी रही है। जिसके कारण पहले दिन से बगावत के स्वर मुखर हो गये हैं।