शिमला/शैल। भाजपा की अभी संपन्न हुई रथ यात्रा के जबाब में कांग्रेस ने पथ यात्रा करने का फैसला लिया है। कांग्रेस ने सारे विधान सभा क्षेत्रों में यह यात्रा शुरू करने का फैसला लिया है और इसके समापन पर राहुल गांधी इसे संबोधित करेंगे। प्रदेश की कांग्रेस के पास है और वीरभद्र इसके मुखिया है। ऐसे में स्वभाविक है कि इस यात्रा के माध्यम से अपनी सरकार की उपलब्धियां नेता और कार्यकर्ता जनता के सामने रखेंगें। इस समय प्रदेश की वित्तिय स्थिति इतनी गडबड़ा चुकी है कि प्रदेश कर्जे के ट्रैप में फंस चुका है। कर्ज का ब्याज चुकाने के लिये कर्ज लेने की स्थिति बनी हुई है। केन्द्र का वित्त विभाग इस संबन्ध में सरकार को मार्च 2016 में ही कड़ी चेतावनी जारी कर चुका है। लेकिन सरकार इस चेतावनी को नजर अनदाज करके लगातार कर्ज उठाती जा रही है। वित्तिय जिम्मेदारी और प्रबन्धन अधिनियम के सारे नियमों/मानकों की लगातार उल्लंघना की जा रही है। लेकिन इतना कर्ज उठाने के बाद यह सवाल खड़ा होता जा रहा है कि यह कर्ज खर्च कहां किया जा रहा है। क्योंकि सरकार ने जब से प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है तब से सरकार के अपने आंकड़ो के मुताबिक इस भत्ते के लिये 10,500 युवाओं के आवदेन आ चुके है लेकिन अभी तक भत्ते की एक भी किश्त जारी नही की जा सकी है और चुनावों में यह युवा एक महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग होगा।
पथ यात्रा के दौरान जब उपलब्धियों का लेखा जोखा रखा जायेगा तो तय है कि इस लेखे को चुनावी वायदों के आईने में तोला जायेगा। सरकार से सवाल पूछा जायेगा कि बतौर विपक्ष उसने तत्कालीन सरकार के खिलाफ जो-जो आरोप लगाये थे और उन आरोपों को लेकर प्रदेश के राज्यपाल से लेकर महामहिम राष्ट्रपति तक को आरोप पत्र सौंपे थे उन आरोपों पर कितनी जांच हुई है और कितने आरोप प्रमाणित हो पाये हंै। क्योंकि जो सरकार सत्ता में आने पर अपने ही लगाये हुए आरोपों पर जांच तक न करवा पायी हो उसके विकास के दावे कितने भरोसे लायक होंगे। क्योंकि जिस एचपीसीए प्रकरण के गिर्द पूरे कार्यकाल में आपकी विजिलैन्स घूमती रही है उसमें अभी तक यही बुनियादी फैसला नही आ पाया है कि एचपीसीए सहकारी सोसायटी है या एक कंपनी। विपक्ष में रहते हुए आये दिन यह आरोप होता था कि ‘‘हिमाचल इज आॅन सेल’’ हर बड़े नेता का यही पहला आरोप होता था कि प्रदेश बेच दिया गया। लेकिन क्या इस पथ यात्रा के दौरान कांग्रेस के नेता प्रदेश की जनता को बता पायेंगे कि हिमाचल बेेचे जाने के कितने मामलें प्रमाणित हो पाये हैं या कितनों में जांच के ही आदेश हो पाये हैं। क्योंकि सोलन और सिरमौर के जिन मामलों को चिहिन्त करके एसपी सोलन ने सरकार को आगामी कारवाई की संस्तुति के लिये पत्र भेजा था उस पर सचिवालय में अगली कारवाई की बजाये एसपी सोलन को ही वहां से बदल दिया गया था। एसपी के पत्र के मुताबिक हजारों बीघों के बेनामी संपत्ति खरीद मामलों की सूची पत्र के साथ संलग्न थी। वह सुची कहां दबी पड़ी है और उस एसपी को क्योंकि अचानक बदल दिया गया था क्या इसकी जानकारी पथ यात्रा में सामने आ पायेगी?
विकास के नाम पर इस कार्यकाल में कितनी जल विद्युत परियोजनाओं के एमओयू हस्ताक्षरित हुए और उनमें कितना निवेश हुआ है क्या इसका आंकडा़ सामने आयेगा? क्या इसका जवाब आयेगा कि ब्रकेल कंपनी के खिलाफ विजिलैन्स के आग्रह पत्र के बावजूद अभी तक एफआईआर क्यों दर्ज नही हो रही है। ऊर्जा निदेशालय इस फाईल को कानून और ऊर्जा विभाग के बीच ही क्यों उलझाए हुए है? सरकार ने जेपी उद्योग को अपनी कुछ ईकाइयां बेचने की अनुमति प्रदान कर दी है। बल्कि नये खरीददार को अलग से प्रदेश के भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत अनुमति लेने से भी छूट प्रदान कर रखी है। यह उद्योग सूमह प्रदेश से अपना कारोबार समेट कर दुबई निवेश करने जा रहा है। क्या सरकार बतायेगी कि उद्योग सूमह को ऐसा करने की नौबत क्यों आयी? इस उ़द्योग समूह पर यहां के वित्तिय संस्थानों और बैंको का कुल कितना ऋणभार है और क्या उसकी जिम्मेदारी नये खरीदार ने स्वीकार कर ली है और सरकार उस पर आश्वस्त है? क्या पथ यात्रा में यह जानकारी सामने आयेगी क्योंकि अन्ततः इसका सीधा प्रभाव प्रदेश की जनता पर पडेगा।
आज प्रदेश के दोनों बडे सहकारी बैंकों में 300 करोड़ के ऋण को लेकर जनता में सन्देह उभरने शुरू हो गये हैं। क्योंकि राज्य सहकारी बैंक जिस जल विद्युत परियोजना को 2008 से लेकर अब तक करीब 100 करोड़ का ऋण दे चुका है बैंक के सूत्रों के मुताबिक अभी तक इस दस मैगावाट की परियोजना के संचालकों का राज्य विद्युुत बोर्ड से बिजली खरीद का एमओयू तक साईन नही हो पाया है। अभी परियोजना के निर्माण का भी आधा ही हिस्सा पूरा हुआ है और शेष पुरा होने में समय लगेगा। ऐसे में जिस दस मैगावाट की परियोजना पर आज ही 100 करोड़ का ऋण हो गया है निश्चित है कि उसके पूरा होने तक यह और बढे़गा और ऐसे में जिसकी उत्पादन तक आने से पहले ही निर्माण लागत इतनी बढ़ जायेगी उसको खरीददार कौन और कैसे मिलेगा? क्योंकि आज ही बिजली बोर्ड अपनी सारी बिजली बेच नही पा रहा है। बल्कि इसी कारण से करीब दो दर्जन सोलर प्रौजेक्टस के साथ बोर्ड एमओयू साईन नही कर पा रहा है। जबकि इसके लिये केन्द्र सरकार उपदान तक दे रही है। इसी तरह कांगडा केन्द्रिय सहकारी बैंक ने एक कंपनी को दो सौ करोड़ का ऋण दे दिया है। इस ऋण की फाईल आरसीएस के स्तर पर अस्वीकार हो चुकी थी क्योंकि यह ऋण नबार्ड के मानकों के अनुरूप नही था। लेकिन राजनीतिक दवाब के कारण इस ऋण फाइल को सहकारिता सचिव को भेजा गया और वहां से इसकी स्वीकृति करवाई गयी। जबकि नियमों के मुताबिक सहकारिता के ऋण की फाइल को स्वीकारने/अस्वीकारने का सचिव का अधिकार क्षेत्र ही नही है। माना जा रहा है कि प्रदेश की जनता का यह 300 करोड़ किसी भी तरह से सुरक्षित नही है।
सरकार के इस कार्यकाल की ऐसी उपलब्धियों के दर्जनों मामलों पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ कभी भी प्रदेश की जनता के सामने आ सकते हैं। इसलिये ऐसे सवालों के आईने कांग्रेस की यह पथ यात्रा कितनी कारगर साबित होगी यह सवाल उठना स्वभाविक है।