Thursday, 18 September 2025
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कोटखाई प्रकरण में क्यों उठे पुलिस की जांच पर सन्देह

शिमला/शैल। शिमला के कोटखाई क्षेत्र के महासू स्कूल की दसवीं की एक नाबलिग छात्रा से गैंगरेप और फिर हत्या कर दिये जाने के मामले में शुरू हुई पुलिस जांच पर उठे सवालों ने न केवल प्रदेश को हिलाकर रख दिया बल्कि देशभर में कई स्थानों पर इस बलात्कार और हत्या को लेकर लोगों में रोष देखने को मिला है। प्रदेशभर में लोगों ने खुलकर सरकार और व्यवस्था के खिलाफ इस कदर अपना रोष प्रकट किया कि उग्र भीड़ ने कोटखाई पुलिस स्टेशन को आग लगा दी। लोग मालखाने तक पहुंच गये थाने का रिकार्ड और पुलिस गाड़ियां जला दी। तीन पुलिस कर्मी भी घायल हो गये। जनता का एक ही आक्रोश था कि पुलिस इस जघन्य अपराध में रसूखदार लोगों को बचा रही है और निर्दोषों को फंसा रही है। इस कांड का चरम यह हुआ कि पुलिस की कस्टडी में ही एक कथित अभियुक्त की मौत हो गयी और इसके लिये एक अन्य सह अभियुक्त को जिम्मेदार बता दिया गया। इस अभियुक्त की मौत के बाद आई मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया में भी यह स्वीकारा गया कि मृतक निर्दोष था और वह सरकारी गवाह बनने जा रहा था। मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया के बाद अब मृतक सूरज की पत्नी ने भी यह ब्यान दिया है कि उसका पति निर्दोष था और उसे लालच देकर फंसाया गया था। मृतक की पत्नी ने दावा किया है कि दो व्यक्ति उसके पति के पास इस उद्देश्य से आये थे और वह उनको पहचानती है। सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने इस महिला का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत ब्यान भी दर्ज करवा दिया है। पुलिस की जांच पर उठे रहे सन्देह के लिये एक बार फिर पूरे प्रकरण पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है।
बलात्कार और फिर हत्या की शिकार हुई छात्रा जब चार जुलाई को स्कूल से देर शाम तक घर नहीं पहुंची तब घर वालों ने उसकी तलाश शुरू की और पांच तारीख रात नौ बजे के करीब उसके मामा को सूचना दी कि उनकी लड़की घर नहीं पहुंची है। इस सूचना पर लड़की के मामा और उसके भाई ने छः तारीख को पता करना शुरू किया। सुबह 7ः30 बजे हलाईला के जगंलो की तरफ निकले तो एक कुत्ता सड़क से नीचे की ओर भागा तब नीचे खाई पर उनकी नजर पड़ी जहां पर नग्नावस्था में मृतका का शव मिला। तुरन्त इसकी सूचना कोटखाई पुलिस को दी गयी। पुलिस ने मामला दर्ज करके दीप चन्द को जांच का जिम्मा सौंप दिया और निर्देश दिये कि घटना स्थल का बारिकी से निरीक्षण करके मौके पर पाये गये तमाम भौतिक साक्ष्यों को कब्जा में लेकर एसएफएसएल जुन्गा भेजा जाये।
इस तरह छः तारीख को शव मिला और छः को ही पुलिस थाना कोटखाई में मामला दर्ज हुआ और सात तारीख को इसका पोस्टमार्टम हुआ लेकिन एसएफएसएल जुन्गा को फाॅरेन्सिक जांच के लिये 11 तारीख को भेजा गया। जबकि तब तक यह मामला अखबारों में उछल चुका था और दस तारीख को ही इसका प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान ले लिया था। यहां पर पहला सवाल उठता है कि फाॅरेन्सिक जांच के लिये मामला भेजने में इतनी देरी क्यों की गयी? क्या इस दौरान बहुत सारे भौतिक साक्ष्योें के नष्ट हो जाने की संभावना नहीं थी? बारह तारीख को इस मामले में सरकार की ओर से एसआईटी गठित की गयी। एसआईटी गठित किये जाने तक पुलिस ने इस मामले मेें किसी की भी अधिकारिक गिरफ्तारी नही की थी और न ही पुलिस की ओर से ऐसा कोई दावा किया है। जबकि इससे पहले ही चार लोगों के फोटो मुख्यमन्त्री के अधिकारिक फेसबुक पेज पर अपलोड़ हो जाते हैं। यही नही यह फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो जाते है। लेकिन जब पुलिस ने अधिकारिक तौर पर लोगों की गिरफ्तारी दिखायी और वाकयदा पत्रकार वार्ता में इसकी जानकारी दी तब उस जानकारी में इन चार लोगों में से कोई भी नही होता है।
फेसबुक पेज पर आ चुके फोटोज में से एक की भी गिरफ्तारी न होने से लोगों में शक का दूसरा सवाल आ गया। इसके बाद लोगों में रोष भड़का और जितने मुंह उतनी बातों वाली स्थिति बन गयी। जनता के रोष के बाद एक और व्यक्ति आशीष चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन गिरफ्तारी के बाद जब अदालत में पेश किया तो उसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। क्योंकि उसके खिलाफ पुलिस रिमांड के लिये कोई पुख्ता आधार नही था। ऐसे में यहां फिर सवाल उठता है कि जब एक ही मामलें में छः लोगों को पकड़ा जाता है और उनमें से पांच का तो पुलिस रिमांड हालिस कर लिया जाता है छटे का नहीं। जब आशीष चौहान के खिलाफ एक दिन के रिमांड लायक भी आधार नही था तो फिर उसे पकड़ा ही क्यों गया? या फिर जानबूझकर उसके खिलाफ मामला ही कमजोर तैयार किया गया यह एक गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी कड़ी में संदेह का एक सवाल यह उठता है कि पुलिस ने क्राईम स्पाॅट को चिन्हित करने में चार दिन क्यों लगा दिये और इस प्रकरण में प्रयुक्त हुई गाड़ी को तुरन्त अपने कब्जे में क्यों नहीं लिया।
इसी में अब एक अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में हत्या हो जाना और भी कई नये सवाल खड़े कर जाता है। सूरज की हत्या का आरोप राजेन्द्र उर्फ राजू पर लगाया जा रहा है कि राजू और सूरज में किसी चीज को लेेकर झगड़ा होता है और झगड़े में राजू सूरज को मार देता है। यहां यह सवाल खड़ा होता है कि जब एक अपराध के लिये छः लोगों को पकड़ा गया है तो उनमें से किसका कितना दोष है यह सारे साक्ष्यों के निरीक्षण के बाद अदालत को तय करना है। इसमें बहुत संभव है कि राजू का दोष इतना न निकलता जिसके आधार पर उसे प्राण दण्ड या आजीवन कारावास की सजा मिल ही जाती। अब सूरज की पत्नी के पत्र और ब्यान के सामने आने के बाद तो ऐसी संभावना और प्रबल हो जाती है। लेकिन अब तो सूरज की हत्या का सीधा आरोप राजू पर आ रहा है और इससे उसका गुनाह दो गुणा हो जाता है। फिर राजू को पकड़े गये लोगों में से सबसे ज्यादा समझदार माना जा रहा है। ऐसे में वह अपने सिरे सीधे तौर पर एक और गुनाह क्यों लेना चाहेगा। फिर यदि राजू और सूरज में झगड़ा हुआ तो पुलिस के लोग क्या कर रहे थे? क्या सूरज की सुरक्षा उनकी जिम्मेदारी नही थी? पुलिस के तर्क पर यहां भी आसानी से विश्वास कर पाना संभव नही है।
इसी सब मे सन्देह का एक और आधार सामने आ जाता है। जिन चार लोगों के फोटो फेसबुक पर आ गये और वायरल हो गये और फिर फेसबुक से हटा लिये गये उन लोगों ने भी कोटखाई पुलिस स्टेशन में एक लिखित शिकायत दी है। इन लोगों ने भी फोटो वायरल किये जाने के खिलाफ जांच करने और कारवाई करने की मांग की है। इनका कहना है कि इस प्रकरण में इनके फोटो वायरल होने से लोग इन्हे अपराधी मानने लगे है। इससे इन्हे भी अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा है। इन चारों ने इक्कठे एक ही शिकायत थानेे में दी है। लेकिन इनकी शिकायत किस तारीख की है इसका कोई जिक्र शिकायत पत्र पर नही है। बल्कि पुलिस थाना में जो इनकी शिकायत को प्राप्त कर रहा है। उसने भी इस पर कोई तारीख नही डाली है। इनकी शिकायत पर अभी तक पुलिस की ओर से भी कोई कारवाई सामने नही आयी है। इससे भी पुलिस जांच पर ही सवाल उठते है। इस प्रकरण में निश्चित रूप से पुलिस को पूरी स्थिति का आकलन करने में भारी चुक हुई है। प्रशासन इसका अनुमान ही नही लगा सका है कि जनता में इनता रोष फैल जायेगा और जनता के दवाब के आगे यह मामला सीबाआई को सौंपना पड़ेगा।

                                       यह है पुलिस द्वारा दर्ज एफ आई आर


                                    जिनके फोटो वायरल हुए थे उनकी शिकायत


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