शिमला/शैल। सरकार के इस कार्यकाल का विधानसभा का यह अन्तिम सत्र होने जा रहा है। इस सत्र में भाजपा बतौर विपक्ष सरकार के खिलाफ कितनी और किन मुद्दों पर आक्रामक रहती है और कौन -कौन नेता इसमें कितना भाग लेता है तथा सरकार की ओर से इसका कैसे जबाव दिया जाता है इसके आकंलन से आनेे वालीे सरकार की तस्वीर काफी हद तक साफ हो जायेगी। यह सही है कि इस समय भाजपा अपने को अगली सरकार में मान कर चल रही है। उसकी रथ यात्रा और अब तिरंगायात्रा को इसी संद्धर्भ में देखा भी जा रहा है।
लेकिन यह भी सच है कि भाजपा में प्रदेश के अगले नेतृत्व को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नही है। नेतृत्व के प्रश्न पर भाजपा भी खेमों में बंटी हुई है। बल्कि इस दिशा में हर दिन कोई न कोई नया नाम जुड़ता जा रहा है। अब तक आधा दर्जन नाम इस चर्चा में आ चुके हैं बल्कि संघ/भाजपा के सूत्रों से ही सोशल मीडिया में नेतृत्व को लेकर एक सर्वे तक भी आ गया। इस सर्वे में नड्डा और धूमल को जन समर्थन का जो प्रतिशत दिखाया गया है उसी से यह स्पष्ट हो जाता कि यह सर्वे प्रायोजित है लेकिन इसी सर्वे से यह भी साफ हो जाता है कि पार्टी के अन्दर गुटबाजी कितनी है और वह किस हद तक जा सकती है। इस अघोषित गुटबन्दी से यह भी साफ है कि यदि नेता की घोषणा चुनावों से पहले न की गयी तो सरकार बनाना बहुत आसान भी नहीं होगा। क्योंकि जिस ढंग से नड्डा के समर्थक अपरोक्ष में कई बार यह दावे कर चुकें है कि अमुक तारीख को उन्हे प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी जा रही है और उन्हें अगला नेता घोषित किया जाना तय है इससे यह भी स्पष्ट है कि यह लोग इस सवाल पर किस हद तक आगे जा चुके हैं और यदि किन्ही कारणों से नड्डा नेता न बन पाये तब लोग क्या करेंगें क्योंकि इसमें सयोगवंश अधिकांश वही लोग है जो धूमल के दोनो कार्यकालों में उनका खुलकर विरोध कर चुकें हैं। संभवतः इसी स्थिति को सामने रखकर अमितशाह ने फिर यह कहा है कि नेता की घोषणा नही की जायेगी। लेकिन नेतृत्व पर अस्पष्टता के कारण ही नगर निगम शिमला में पार्टी को अपने स्तर पर बहुमत नही मिल पाया यह भी एक कड़वा सच रहा है।
इस परिदृश्य में विधानसभा के इस सत्र में भाजपा किन मुद्दों को लेकर आती है यह महत्वपूर्ण होगा। क्योंकि भाजपा वीरभद्र सरकार के खिलाफ इस कार्यकाल में भ्रष्टाचार को लेकर इतने आरोप पत्र सौंप चुकी है। कि शायद उसे स्वंय ही यह याद नही हो कि निगम पर ही आधारित एक आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपा गया। परन्तु निगम की सत्ता पर काबिज होने के बाद इस आरोप पत्र को भूला दिया गया। यही स्थिति आज तक सौंपे गये सारे आरोप पत्रों की रही है। सरकार में आने के बाद अपने ही आरोप पत्रों पर कभी गंभीरता से कारवाई नही की गयी है। इसलिये भाजपा के भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता गंभीरता से नही लेती है। भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस का आचरण भी भाजपा से भिन्न नही रहा है। उसने भी आज सरकार में रहते हुए अपने ही आरोप पत्र पर कोई कारवाई नही की है इसलिये इस सत्र में भ्रष्टाचार से हटकर और किन मुद्दों पर सरकार को इ्रमानदारी से घेरती है यह देखने वाला होगा। क्योंकि वीरभद्र पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर आज स्वंय ईडी की भूमिका सवालों में आ गयी है। इसमें अब स्पष्ट रूप से राजनीति सामने दिख रही है। भ्रष्टाचार से हटकर कानून और व्यवस्था का मुद्दा है। इसमें गुड़िया प्रकरण और फाॅरेस्ट गार्ड होशियार सिंह के मामले प्रमुख हैं। इन मामलों में भी कोटखाई का गुड़िया मामला अब केन्द्र की सीबीआई के पास है। इसमें भाजपा के पास ज्यादा कुछ कहने को नही होगा। फिर इसी मामले में जब कोटखाई पुलिस थाना में लोगों ने आग लगा दी थी उसमें भााजपा के वहां के कई लोग स्वंय शामिल रहे हैं। इस आगजनी के बने विडियो में यह लोग स्पष्ट देखे जा सकते हैं। फिर ठियोग पुलिस थाना और कोटखाई पुलिस थाना की घटनाओं को लेकर मामले भी दर्ज हुए हैं। इन मामलों में भाजपा और सीपीएम के लोगों के शामिल होने का जिक्र है। ऐसे में इन मामलों पर भाजपा और कांग्रेस की स्थिति इन मामलों पर भाजपा सरकार को कैसे घेरती है देखना दिलचस्प होगा। ऐसे मेे भाजपा और कांग्रेस की स्थिति इन सब मुद्दो पर लगभग एक जैसी ही है। इसमें दोनों ओर से कौन कितना आक्रामक रहता है यह देखना दिलचस्प होगा।