शिमला/शैल। कांग्रेस के नये प्रभारी शिंदे के प्रयासों के बावजूद संगठन में उभरी गुटबन्दी लगातार बढ़ती और खुलकर सामने आती जा रही है। पिछले दिनों बाली के गृहक्षेत्र नगरोटा में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान जिस तर्ज में निखिल राजौर और स्वयं बाली ने मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह पर शिंदे की मौजूदगी मे प्रहार किये है उससे स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर कोई बड़ा विस्फोट होने वाला है। इस समय सुक्खु की अध्यक्षता में पार्टी उसी तरह के घटनाक्रम की ओर बढ़ती जा रही है जिस तरह का विपल्लव की अध्यक्षता में 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान हमीरपुर से पार्टी उम्मीदवार के चयन को लेकर उभरा था। फर्क सिर्फ इतना सा है कि उस समय भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर आज के पायदान पर नही थी। क्योंकि आज भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रमाणित कर दिया है कि उसे राजनीतिक दलों में तोड़ फोड़ करने से कोई परहेज नही है। क्योंकि हिमाचल के संद्धर्भ में यह स्पष्ट है कि इस बार सरकार बनने के साथ ही सरकार और संगठन में टकराव शुरू हो गया था। बाली, धर्माणी, कालिया आदि नेता इस टकराव के प्रमुख किरदार रहे हैं। कई बार कईयो के त्यागपत्रों की चर्चाएं उठी और कई अन्य नाम भी इस टकराव के साथ जुडे़। सुक्खु, आनन्द शर्मा, आशा कुमारी जैसे बडे़ नाम भी इस सूची में जुड़े। यह सब शायद इसलिये भी हुआ क्योंकि जब नेता का चयन हुआ था उस समय 36 में से 18 विधायक ही वीरभद्र सिंह के साथ थे। राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि इसी टकराव के कारण वीरभद्र की विजिलैन्स पार्टी के उस आरोप पत्र को भी सिरे नही चढ़ा सकी जो उसने धूमल शासन के खिलाफ तब महामहिम राष्ट्रपति को सौंपा था। इस आरोप पत्र को लेकर भी शीर्ष नेताओं के ब्यान परस्पर विरोधी रहे है। लेकिन इस सबके बावजूद अपने स्थान पर बने रहे और सुक्खु अपने पर। क्योंकि सब अपने अपने राजनीतिक स्वार्थो से बन्धे हुए थे विचारधारा और जनहित केवल दिखावे के उपकरण थे। इस परिदृश्य में आज जब चुनाव एकदम सिर पर है और कांग्रेस का ग्राफ राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर चल रहा है। तब प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का अपनी गुटबन्दी को सार्वजनिक मंचो से नंगा करना राजनीतिक भाषा में कुछ और ही पढ़ने को मजबूर करता है। क्योंकि आज चुनावों के परिदृश्य में जहां भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर आक्रामक होने की आवश्यकता है वहां नेता एक दूसरे के खिलाफ इस तरह से प्रहार करे तो निश्चित है कि यह लोग कोई नया गुल खिलाने की तैयारी मे है। पार्टी की इस गुटबन्दी का प्रभाव शीर्ष प्रशासन पर भी स्पष्ट नजर आ रहा है पिछले काफी अरसे से मीडिया में यह प्रचार चल रहा था कि 15 अगस्त को मुख्यमन्त्री कुछ नये जिलों के गठन की घोषणा करने वाले हैं। इन नये जिलोें मे रामपुर का नाम भी लिया जा रहा था। फिर जब 15 अगस्त का प्रोग्राम मुख्यमन्त्राी का रामपुर का हो गया तो इन क्यासों को पुख्ता आधार मिल गया। रामपुर में हर किसी को उम्मीद हो गयी थी कि जिले की घोषणा हो जायेगी। लेकिन जब झण्डा फहराने के बाद मुख्यमन्त्री के भाषण में जिले की घोषणा नही हुई तब लोगों में रोष फैल गया। परिणाम यह हुआ कि भाषण के बाद सांस्कृतिक प्रोग्राम का इन्तजार किये बिना ही लोग पंडाल से उठकर चले गये जबकि वीरभद्र और नन्दलाल मंच पर बैठे हुए थे। रामपुर अपने घर के आंगन से वीरभद्र के सामने लोग उठकर चले जायें तो वीरभद्र जैसेे व्यक्तित्व के लिये इससे बड़ा राजनीतिक झटका क्या हो सकता है। लेकिन जो कुछ हुआ उसके लिये सबसे अधिक प्रशासन जिम्मेदार है। जो यह आंकलन ही नही कर पाया कि लोगों को वहां मुख्यमन्त्री से क्या उम्मीद है। क्या सीआईडी ने इस बारे में कोई फीडबैक नही दिया था या उससे सचिवालय ने नजर अन्दाज कर दिया था। क्योंकि जब मीडिया में जिले बनाये जाने को लेकर एक नियमित प्रचार चल पड़ा था तब क्या उस पर शीर्ष प्रशासन का ध्यान नही गया? जो राजनीतिक फजीहत रामपुर में हुई है उसे रोका जा सकता था यदि शीर्ष प्रशासन सजग होता। रामपुर के घटनाक्रम का संदेश स्वयं जिला शिमला में भी नकारात्मक गया है। यदि आज सरकार और संगठन के बढ़ते टकराव पर विराम न लगा तो तय है कि इससे आने वाले समय में भारी नुकसान होगा। क्योंकि आज सरकार और संगठन का एक भी व्यक्ति भाजपा के खिलाफ आक्रामक नही हो पा रहा है जबकि वीरभद्र से अपने -अपने काम करवाने के लिये लोग लगातार लाईने लगाकर खड़े है लेकिन वीरभद्र के समर्थन में खुलकर आने का साहस नही है। अभी विधानसभा के इस सत्र में यह स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जायेगी कि भाजपा सरकार और वीरभद्र को किन-किन मुद्दों पर घेरती है और उसका कारगर जवाब देने क लिये कौन- कौन सामने आता है।