शिमला/शैल। कोटखाई क्षेत्र की दसवीं कक्षा की नाबालिग छात्रा की हत्या और गैंगरेप मामले की जांच पिछले एक माह से सीबीआई के पास है। इस एक माह की जांच में सीबीआई किस नतीजे पर पहुंची है इसकी कोई जानकारी अधिकारिक तौर पर सामने नही आयी है। सीबीआई को यह मामला स्थानीय पुलिस की जांच पर उभरे सन्देहों के परिणाम स्वरूप सामने आये जनाक्रोश के दवाब पर सौंपा गया था। जनाक्रोश के दवाब मे सरकार ने सीबीआई को पत्र भेजकर इस मामले की जांच अपने हाथ में लेने का आग्रह किया था। लेकिन जब सरकार के इस आग्रह पर सीबीआई ने तत्परता नही दिखाई तब उच्च न्यायालय ने सीबीआई को यह जांच अपने हाथ में लेने के निर्देश दिये क्योंकि अदालत पहले ही मामले का संज्ञान ले चुकी थी। इसी संज्ञान के कारण उच्च न्यायालय एक प्रकार से इसकी निगरानी भी कर रहा है और इसी निगरानी के तहत सीबीआई दो बार इसमें स्टे्टस रिपोर्ट दायर कर चुकी है। सीबीआई ने पहली रिपोर्ट सौंपने पर ही इस जांच के लिये दो माह का समय मांगा था जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। अब दूसरी रिपोर्ट सौंपने के बाद उच्च न्यायालय ने सीबीआई को दो सप्ताह में यह जांच पूरी करने को कहा है।
लेकिन सीबीआई की दूसरी रिपोर्ट को देखने के बाद उच्च न्यायालय ने शिमला पुलिस के नौ अधिकारियों ज़हूर ज़ैदी, आईजी भजन देव नेगी, एएसपी, मनोज जोशी, डीएसपी रत्न सिंह, डीएसपी धर्म सेन, दीप चन्द, राजीव कुमार और राजेन्द्र सिंह को इस मामले में प्रतिवादी बनाकर इनसे व्यक्तिगत रूप में इस संद्धर्भ में शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिये हैं। इसमें डीजीपी पहले ही प्रतिवादी है। उच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में कहा है
We direct respondents No.9 to 17 to file their personal affidavits, narrating the facts which came to their knowledge during the course of investigation so conducted by them or in any manner while dealing with FIR No.97 of 2017 and FIR No. 101 of 2017 so registered at police station, Kotkhai, District Shimla, H.P. They shall also disclose such facts which have otherwise come to their knowledge in connection with the crime in question, Also the basis which led to the conclusion of the alleged complicity of all the accused, including the one who died in police custody.
We direct that such affidavits be filed in the Registry of this Court in a sealed cover, with an accompanying affidavit stating that the contents of the affidavit placed in the sealed cover is sworn by them and that contents thereof, are true and correct to their personal knowledge and belief as also noting material stands concealed by them. Needful shall positively be done before the next date.
सीबीआई ने जब से मामला अपने हाथ में लिया है उसके बाद इसमें कोई और गिरफ्तारी नही हुई है। सीबीआई द्वारा मामला संभालने से बहुत पहले ही नाबलिग पीड़िता के शव का पोस्टमार्टम होेने के बाद उसका अन्तिम संस्कार कर दिया गया था। लेकिन पुलिस कस्टडी में मारे गये आरोपी सूरज के शव का अन्तिम संस्कार नही हो सका था। इसलिये सीबीआई ने अपने सामने भी इसका पुनः निरीक्षण करवाया है लेकिन दोनों रिपोर्टें एक जैसी है या इनमे कोई भिन्नता पायी गयी है इस बारे में कुछ भी बाहर नही आया है। इसी तरह जहां नाबालिग छात्रा का शव मिला था उस स्थल और उसके आस-पास के सारे स्थलों का निरीक्षण भी सीबीआई नये सिरे से कर चुकी है। कई लोगों से पूछताछ और कुछ के खून के नमूने तक ले चुकी है। गुड़िया के स्कूल में अध्यापकों और बच्चों से भी जानकारी ले चुकी है। कोटखाई और ठियोग पुलिस थानों का भी निरीक्षण कर चुकी है। पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर से भी जानकारी ले चुकी है। फाॅरैन्सिक रिपोर्ट के परिणाम सीबीआई को मिल चुके हैं। लेकिन इस सबका अन्तिम परिणाम अब तक सामने नही आया है। पुलिस कस्टडी में हुई मौत का शक पुलिस पर ही जा रहा है। यह मृतक सूरज की पत्नी के मीडिया के माध्यम से सामने आये ब्यान से लेकर अब कोटखाई थाने के संत्तरी का ब्यान सामने आने से स्पष्ट हो चुका है लेकिन अभी तब सीबीआई सूरज की हत्या के मामले में भी कोई कारवाई सामने नही लायी है। सूरज की हत्या के मामले में भी अभी तक आरोप राजू तक ही सीमित है। इसी तरह नाबालिग की हत्या और रेप का आरोप भी उन्ही लोगों के गिर्द है जिनको पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है। जबकि गुड़िया का स्कूल से निकलने का समय स्कूल के अध्यापकों और छात्रों के अनुसार शाम के 4 बजे से 4ः15 बजे का है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का समय भी 4 बजे से 5 बजे के बीच कहा गया है। जिसके मुताबिक स्कूल से निकलने और मौत होने के बीच कुल एक घन्टे का समय है और एक घन्टे में छः लोग रेप करने के बाद हत्या भी कर गये इस पर आसानी से विश्वास नही होता। फिर मृतका के परिजनों ने 4 और 5 तारीख को पुलिस को लड़की के घर आनेे की सूचना क्यों नही दी? क्योंकि एफआईआर के मुताबिक पुलिस को 6 तारीख को लाश मिलने के बाद सूचित किया गया। परिजनों ने पुलिस को देर से क्यों सूचित किया? क्या उन पर कोई दवाब था? इसी तरह मुख्यमन्त्री के अधिकारिक फेसबुक पेज पर चार लोगों के फोटो किसकी सूचना पर अपलोड़ हुए और फिर किसके निर्देश पर हटाये गये? इन सवालों का जवाब अभी तक सामने नहीं आया है।
अब सीबीआई की रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस जांच से जुड़े लोगों को प्रतिवादी बनाने के बाद उनके आने वाले शपथपत्रों में क्या अतिरिक्त जानकारी आती है उससे अदालत किस निष्कर्ष पर पहुंचती है और इन शपथ पत्रों और सीबीआई की स्टे्टस रिपोर्ट में कितना तालमेल बैठता है या विरोधाभास रहता है इसका खुलासा तो आने वाले समय में ही सामने आयेगा। लेकिन इस मामले में और खासतौर पर सूरज के हत्या के मामले में भी सीबीआई द्वारा अब तक कोई बड़ी कारवाई सामने न आना यही इंगित करता है कि सीबीआई के पास अब तक कुछ ठोस नही है या फिर यह कारवाई चुनावों के आस-पास होगी क्योंकि इस आश्य की चर्चाएं चल पड़ी है लेकिन इसी के साथ यह भी माना जा रहा है कि अब विधानसभा सत्र के दौरान सदन में यह मुद्दा उठ सकता है और हो सकता है कि इस दौरान सीबीआई कुछ लोगों की पकड़- धकड़ के लिये छापेमारीयां शुरू कर दे।