शिमला/शैल। वर्तमान विधानसभा के चार दिन के अन्तिम सत्र में एक भी दिन प्रश्नकाल नही हो पाया। क्योंकि भाजपा ने सत्र के पहले ही दिन प्रश्नकाल स्थगित करके नियम 67 के तहत प्रदेश की कानून एवं व्यवस्था पर चर्चा करने का प्रस्ताव दिया था। अध्यक्ष बृज बिहारी बुटेल ने भाजपा के इस आगृह को अस्वीकार करते हुए सुझाव दिया मुद्दे पर नियम 67 की बजाये नियम 130 के तहत चर्चा करवाई जा सकती है। सरकार भी इस पर नियम 130 के तहत चर्चा के लिये तैयार थी। लेकिन भाजपा इस पर नियम 67 के तहत ही चर्चा के लिये अडी रही और परिणामस्वरूप पूरा सत्र शोर-शराबे और नारेबाजी के बीच ही निकल गया। प्रदेश की कानून और व्यवस्था पर चर्चा का मुद्दा कोटखाई के गुड़िया प्रकरण पर उभरे जनाक्रोश की पृष्ठभूमि में भाजपा के हाथ लगा था और इसी प्रकरण सदन में भी यह नारा आया कि ‘‘गुड़िया हम शर्मिन्दा है तेरे कातिल जिनदा है’’।
स्मरणीय है कि यह गुड़िया प्रकरण अब जांच के लिये सीबीआई के पास पिछले डेढ़ महीने से चल रहा है। इस मामले में प्रदेश में एक जनहित याचिका भी आ चुकी है और उच्च न्यायालय ने तो इस मामले पर स्वतः ही 10 जुलाई को संज्ञान ले लिया था। बल्कि सीबीआई को मामला सौंपने में भी न्यायालय के निर्देश महत्वपूर्ण है। उच्च न्यायालय इस मामले पर अपनी नज़र भी बनाए हुए है तथा सीबाआई से स्टे्टस रिपोर्ट भी तलब की जा रही है। गुड़िया न्याय मंच के नाम से अभी भी इस मामले में धरना चल रहा है। इस मामले पर उभरे जनाक्रोश में उग्र भीड़ ने कोटखाई पूलिस थाने को आग तक लगा दी थी। इसमें थाने का रिकार्ड तक जला दिया गया। हर तरह का नुकसान यहां पर हुआ। यहीं पर एक कथित आरोपी सूरज की पुलिस कस्टडी में हत्या तक हो गयी। पुलिस ने इसका आरोप दूसरे आरोपी पर लगाया है। नाबालिग गुड़िया से हुए गैंगरेप और फिर हत्या तथा पुलिस कस्टडी में हुई आरोपी सूरज की मौत के दोनो मामलों की जांच अब सीबीआई के पास है लेकिन किसी भी मामले में अब तक कोई परिणाम सामने नही आया है। यही नही कोटखाई और ठियोग पुलिस थानों में जो आगजनी और तोड़-फोड़ हुई है उस पर पुलिस ने बाकायदा मामले दर्ज किये हुए हैं। इन घटनाओं के मौके के विडियोज उस समय सामने आ गये थे पुलिस के पास भी इसकी जानकारी है लेकिन इस मामले में भी अब तक कोई कारवाई सामने नही आयी है।
इस परिदृश्य में जब प्रदेश की कानून और व्यवस्था पर चर्चा का मुद्दा सदन में सामने आया तो उम्मीद हुई थी कि अब प्रदेश की जनता के सामने आयेगा कि किस मामले की जांच मे पुलिस ने कहां क्या किया है। क्या सच में ही असली आरोपीयों को बचाने का प्रयास किया है पुलिस ने। इसी के साथ यह भी सामने आता कि जनाक्रोश के नाम पर जन संपति को हानि पहुंचाने वाले लोग कौन थे? किन लोगों ने कोटखाई पुलिस थाने के मालखाने में जाकर लूटपाट की? किसने वहां रिकार्ड को आग के हवाले किया? लेकिन पक्ष और विपक्ष के नियमों के खेल में जनता के यह सारे मुद्दे बलि चढ़ा दिये गये। जबकि चर्चा चाहे नियम 67 में होती या नियम 130 में मुद्दे की विषयवस्तु पर कोई फर्क नही पड़ना था। इस चर्चा में प्रदेश के सामने यह आ जाता कि 2014 से लेकर 31.3.17 तक हत्या, बलात्कार और आत्महत्या के कुल 1621 मामले घट चुके हैं जिनमें 1618 की जांच प्रदेश पुलिस और 3 की जांच सीबीआई के पास है। वर्षवार यह आंकड़े इस प्रकार है।
लेकिन इन मामलों पर अब तक गुड़िया मामले जैसा जनाक्रोश देखने को नही मिला है। इनमें पुलिस जांच कहां कितनी पक्षपात-पूर्ण और कितनी निष्पक्ष रही होगी इस पर कोई कुछ कहने की स्थिति में नही है। क्योंकि इनके लिये कभी कोई न्याय मंच नही बन पाया था। शायद यह मंच इसलिये नही बन पाया होगा क्योंकि उस समय कोई विधानसभा चुनाव नही थे। अन्यथा बलात्कार के इन मामलों में भी कई नाबालिग और स्कूल छात्राएं रही होंगी।
ये है 4 सालों का अपराध रिकार्ड
वर्ष 2014 2015 2016 2017
हत्या 142 106 101 61
बलात्कार 284 244 253 145
आत्महत्या 88 74 75 48
जांच की स्थिति
कुल मामले जांच पूर्ण लंबित
हत्या 410 359 51
बलात्कार 926 831 95
आत्महत्या 285 236 49