शिमला/शैल। जहां सीबीआई जांच में यह मामला सुलझने के करीब पहुंचने लगा है उसी अनुपात में विपक्ष ने इस मामले में सरकार और मुख्यमन्त्री के खिलाफ अपना हमला और तेज कर दिया है। सांसद अनुराग ठाकुर ने तो सीधे मुख्मन्त्री की पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह पर आरोप लगाया है कि वह इस मामले के दोषियों को बचाने का प्रयास कर रही है। इस प्रकरण में अपने परिवार पर लगने वाले आरोपों से आहत होकर वीरभद्र ने ऐसे बेबुनियाद आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि का मामला दायर करने की चेतावनी दी है। लेकिन जहां सीबीआई जांच के बावजूद विपक्ष मुख्यमन्त्री के खिलाफ लगातार हमलावर होता जा रहा है वहीं पर कांग्रेस इस मुद्दे पर एकदम चुप्पी साध कर बैठ गयी है।
माना जा रहा है कि कांग्रेस की इसी खामोशी से आहत होकर वीरभद्र ने अब अगला विधानसभा चुनाव लड़ने और चुनावों में पार्टी का नेतृत्व करने का ऐलान कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस समय वीरभद्र जिस तरह के हालात में घिरे हुए है उनको सामने रखते हुए यह चुनाव लड़ना उनकी राजनीतिक विवश्ता बन गयी है। क्योंकि सीबीआई और ईडी के जो मामले उनके खिलाफ चल रहे हैं उन्हे अन्तिम फैसले तक पहुंचने में समय लगेगा और उसके लिये न केवल प्रदेश की सक्रिय राजनीति में रहना होगा बल्कि उन्हें इसमें पूरी तरह केन्द्रिय भूमिका में रहना आवश्यक है। इसी के साथ उन्हें अपने बेटे विक्रमादित्य को भी राजनीति में स्थापित करने के लिये विधानसभा में पहुंचाना होगा। इसको सुनिश्चित करने के लिये स्वयं चुनाव लड़ना और पार्टी का नेतृत्व अपने साथ रखना ही एक मात्र उपाय शेष है।
क्योंकि अभी ईडी ने महरोली स्थित फार्म हाउस की जो प्रोविजिनल अटैचमैन्ट इस वर्ष मार्च में की थी वह अब कनफर्म हो गयी है। इससे पहले ग्रेटर कैलाश की संपत्ति की भी अटैचमैन्ट स्थायी हो गयी है। अब इन सम्पतियों को छुड़ाने के लिये अदालत के अन्तिम फैसले तक इन्तजार करना होगा। जबकि इस धन शोधन के मामले में अभी तक वीरभद्र के खिलाफ जांच पूरी होकर चालान अदालत में दायर होना है और माना जा रहा है कि इसमें भी अभी और समय लग सकता है। ऐसे में यदि सबका समग्रता में आंकलन किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि इस लड़ाई को लड़ने और जीतने के लिये सक्रिय राजनीति का हथियार अतिआवश्यक है और इसी के लिये चुनाव लड़ना राजनीतिक आवश्यकता है।