Thursday, 18 September 2025
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21 विधायको की सोसायटी को दी सरकार ने 30 बीघे ज़मीन

शिमला/शैल। वीरभद्र सरकार ने मन्त्रीमण्डल की पिछली बैठक में जुब्बड़हटी एयरपोर्ट के पास विधायकों की सोसायटी को 30 बीघे ज़मीन मकान बनाने के लिये दी है। सरकार का यह फैसला जैसे ही सार्वजनिक हुआ तभी से इस पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गयी। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल का तो यहां तक ब्यान आ गया कि न ज़मीन लेंगे और न ही लेने देंगे। इस फैसले पर यह नकारात्मक प्रतिक्रियाएं संभवतः इसलिये आयी हैं क्योंकि इससे पहले भी शिमला में दो स्थानों मैहली और हीरा नगर में सरकार ने विधायकों को ज़मीन दे रखी है।
स्मरणीय है कि विधायकों की पहली सोसायटी का पंजीकरण 9-9-86 को हिम लैजिस्लेचर भवन निर्माण सोसायटी के नाम से गठन हुआ था। उस समय इसके 123 सदस्य थे। इस सोसायटी को मैहली मेें 8 बीघे और हीरा नगर में 12 बीघेे 16 बिस्वे ज़मीन मिली हुई है। इस सोसायटी के 31.3.15 तक हुए आडिट के मुताबिक इसके पास 8.50 लाख रूपया बचत खाते मेे और 9.50 लाख रूपया एफडीआर के रूप में पूंजी है। इसका कार्यालय प्रदेश विधानसभा है। लेकिन यह सोसायटी किस तरह के काम कर रही है और इसके कार्यालय मे कितने कर्मचारी है इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नही है, बल्कि इसका नियमित आडिट भी नहीं है। इसके अध्यक्ष विधान सभा के उपाध्यक्ष जगत सिंह नेगी है और यह 13.8.14 को चुने गये थे।
इस सोसायटी के बाद 17.12.2004 को न्यू लैजिस्लेचर भवन निर्माण सोसायटी के नाम से एक और पंजीकरण हुआ, इसके 21 सदस्य हैं। 2004 को पंजीकृत हुई इस सोसायटी की बैठक 5.3.2011 को हुई और इसमें सतपाल सत्ती इसके अध्यक्ष और सुधीर शर्मा इसके सचिव बने है। इसके पास  पूंजी के नाम पर 2011 में 3.50 लाख रूपये बैंक में है। इसका कार्यालय भी विधानसभा ही दिखाया गया है, लेकिन इसके कार्यालय में कितने कर्मचारी हैं और इसकी क्या गतिविधियां इसकी कोई जानकरी सार्वजनिक नही है। इसी के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि 2011 से लेकर आज तक इसका कोई आडिट भी नही हुआ है। सहकारिता नियमों के मुताबिक विधायको की इन दोनो सोसायटीयों में सहकारिता नियमों की कोई अनुपालना नही हो रही है। लेकिन सहकारिता विभाग इस संद्धर्भ में इनके खिलाफ कोई भी कारवाई नही कर पा रहा है।
इस नयी सोसायटी के इस समय भी 21 ही सदस्य है और अब सरकार ने इसी 21 सदस्यों की सोसायटी को 30 बीघे जमीन दी है लेकिन इससे पहले वाली सोसायटी के कितने सदस्यों ने उनकी मिली ज़मीन मकान बना रखे हैं। क्या इन मकानों को उपयोग आवास के लिये ही हो रहा है या इसका कोई वाणिज्यिक उपयोग भी हो रहा है। इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नही है। इसी के साथ यह भी एक सवाल चर्चा में चल रहा है कि 2004 में नयी सोसायटी के गठन की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या दोनों सोसायटीयों के सदस्यता आदि नियमों में कोई अन्तर है और फिर 2004 में पंजीकृत हुई इस सोसायटी को अब 2017 में जमीन मांगने की क्यों आवश्यकता पड़ी, यदि सूत्रों की माने तो जब यह ज़मीन देने का प्रस्ताव तैयार हुआ और इसे विधि विभाग के परामर्श के लिये भेजा गया तो विधि विभाग ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन नही किया है। लेकिन विधि विभाग की राय को नजरअंदाज करके सरकार ने यह सौगात विधायकों को दे दी।
आज हमारे विधायकों को जहां सरकारी ज़मीन का तोहफा मिल गया वहीं पर यह लोग इस कार्यकाल में अपनी वेतन वृद्धि के मामलें में भी काफी सौभग्यशाली रहे हैं। क्योंकि 2015 तक इनका वेतन 20,000 रूपये मासिक था जो 6.2.15 को बढ़ाकर 30,000 रूपये हो गया। उसके बाद 10.5.16 को पुनः इनके वेतन में वृद्धि हुई और यह बढ़कर 55000 रूपये हो गया। इस समय हमारे विधायक सारे वेतन-भत्ते मिलाकर 2,10,000 रूपये प्रति माह प्राप्त कर रहे है। यही नही जिन निर्दलीय विधायकों ने जीतने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया था और भाजपा ने इनके खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के पास दल-बदल कानून के तहत कारवाई किये जाने की याचिका दायर की थी उसका फैसला अध्यक्ष की कृपा से इस कार्यकाल में अब तक नही आया है। भाजपा ने भी इस पर उस समय जोर देना छोड़ दिया जब इन लोगों ने भाजपा का दामन थामने के संकेत दे दिये। इस तरह भाजपा और विधानसभा अध्यक्ष की कृपा से इन निर्दलीयों का बड़ा नुकसान होने से बच गया। हमारे लोकतन्त्र की यही तो विशेषता है।

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