शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने इन चुनावों के लिये अभी तक यह घोषित नही किया है कि यदि उसे चुनावों में बहुमत हासिल होता है तो उसका मुख्यमन्त्री कौन होगा। भाजपा ने जो सूची अपने उम्मीदवारों की जारी की है उसमें 21 नये चेहरों को शामिल किया गया है। चार वर्तमान विधायकों बी. के. चौहान, अनिल धीमान, रिखी राम कौण्डल और गोबिन्द शर्मा को टिकट नही दिया गया है। कांग्रेस से आये अनिल शर्मा को टिकट दे दिया गया है। अनिल के साथ ही उनके पिता पर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम और बेटेे आश्रय शर्मा को भी भाजपा में शामिल कर लिया गया है। पंडित सुखराम को दूरसंचार घोटालेे में सजा हो चुकी है और
उन्हेे सर्वोच्च न्यायालय से बढ़ती आयु और बिमारी के आधार पर ज़मानत मिली हुई है यह सभी जानते हैं। भाजपा ने पूर्व सांसद सुरश चन्देल और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष खीमी राम को टिकट नही दिया है। 21 नये चेहरों को चुनावों मैदान में उतारा गया है पूर्व सांसद राजन सुशान्त को पार्टी में शामिल नही किया गया है। ऐसे में सुरेश चन्देल, राजन सुशान्त और पंडित सुखराम को लेकर भाजपा के तीन अलग- अलग स्टैण्ड भी सामने आ गये हैं। क्योंकि जिस अनिल शर्मा के खिलाफ भाजपा अपने ही आरोप पत्र में आरोप लगा चुकी है उसे टिकट देने के बाद सुरेश चन्देल को इन्कार करना और सुशान्त को पार्टी में शामिल तक नही करना भाजपा के नीतिगत आन्तरिक विरोधाभासों का एक प्रमाण बन जाता है जो भाजपा के अन्य दलों से भिन्न होने के दावों को एकदम नकार देता है। इस परिदृश्य में पार्टी के कुछ हल्कों में रोष और विद्रोह का उभरना स्वभाविक है। यह विद्रोह उभर चुका है इसे भाजपा कितना शांत कर पाती है इसका पता तो नामांकन वापिस लेने के अन्तिम दिन के बाद ही लग पायेगा। बहरहाल इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।
पार्टी ने यह चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़नेे का दावा किया है। मुख्यमन्त्री के लियेे जो दो नाम पवन राणा और अजय जम्वाल एक अरसेे तक सोशल मीडिया की सुर्खियों में छाये रहे हैं उन्हे पार्टी ने चुनाव में उतारा ही नही है इसका अर्थ है कि चुने गये विधायकों में से हीे किसी को मुख्यमन्त्री पद से नवाज़ा जायेगा। लेकिन टिकट वितरण के दौरान जिस तरह का ध्रुवीकरण उभरा है उसमें केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा को लेकर भी यह संकेत उभरे हैं कि वह प्रदेश के अगलेे मुख्यमन्त्री हो सकते हैं। लेकिन अभी नड्डा का जो एक साक्षात्कार छपा है उसमें नड्डा ने यह कहा है कि मुख्यमन्त्री उस व्यक्ति को बनाया जायेगा जो कि अगले पन्द्रह वर्षों तक इस जिम्मेदारी को निभायेगा। नड्डा इस गणित में स्वयं पूरी तरह फिट बैठतेे हंै इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन इस साक्षात्कार के साथ ही नड्डा का जय राम ठाकुर के चुनाव क्षेत्र से भी एक ब्यान आया है। जय राम के पक्ष में बोलते हुए नड्डा ने जंजैहली की जनता को स्पष्ट कहा है कि चुनाव जीतने के बाद उन्हेे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। जयराम धूमल मन्त्रीमण्डल में मन्त्री तो पहले रह ही चुकेे हैं। ऐसे में अब बड़ी जिम्मेदारी सौपने के संकेत से साफ सन्देश जाता है कि जय राम को अगला मुख्यमन्त्री बनाया जाने का फैसला भाजपा हाईकमान लगभग ले चुकी है। जय राम नड्डा के साक्षात्कार में छपे मानक पर भी पूरे उतरते हैं। फिर नड्डा स्वयं इस समय हाईकमान का एक हिस्सा हैं। चुनाव प्रचार में नड्डा को पार्टी पूरे संसाधनों से लैसे करने जा रही है। एक चैपर हर समय उनकेे लिये उपलब्ध रहेगा। इससे यह और स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा को बहुमत मिलनेे की सूरत में नड्डा और जयराम में से ही कोई अगला मुख्यमन्त्री होगा।
नड्डा का ब्यान और उनका सामने आया साक्षात्कार पार्टी के अन्य लोगों पर कितना और क्या असर डालता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यह तय है कि उनका यह ब्यान एक चर्चा का मुद्दा जरूर बन जायेगा। वैसे भाजपा के लिये जो स्थितियां नगर निगम शिमला के चुनावों से पूर्व थी वह निगम चुनावों के परिणाम आने के बाद निश्चित रूप से बदली हैं। फिर अभी पंजाब के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा करीब दो लाख मतो से हारी है। हार के इतने बडे़ अन्तर से स्पष्ट हो जाता है कि अब मोदी के दावों पर जनता में विश्वास की कमी पनपती जा रही है। फिर भाजपा अब सुखराम के पार्टी में शामिल होने से वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर खुलकर हमला नही कर पायेगी। क्योंकि सुखराम ने जो अपनी सफाई में यह कहा है कि उनके यहां मिला पैसा कांग्रेस पार्टी का था और वीरभद्र ने सीताराम केसरी के माध्यम से उनके घर रखवाया यह अब गले नही उतरता है। क्योंकि सुखराम को तीनों मामलों में सजा हो चुकी है और इस सजा को दिल्ली उच्च न्यायालय कनर्फम कर चुका है। फिर सुखराम जो आज कह रहे हैं वह उन्होनेे इन मामलों की सुनवाई के दौरान किसी भी अदालत के सामने नही कहा है। यही नही जब विकास कांग्रेस भंग होनेे के बाद वह कांगे्रस में शामिल हुए थे तो जिस कांग्रेस नेे उनके खिलाफ इतना बड़ा षडयंत्र रचा उसमें वह किस नैतिकता केे आधार पर शामिल हुए थे। आज इतने अरसे बाद उन्हे यह क्यों याद आया। सुखराम के इस तर्क से तो जो आरोप वह वीरभद्र पर ब्लैक मेलिंग का लगा रहे हैं वह स्वयं उसी में घिर जाते हैं। क्योंकि इतना समय चुप रह कर क्या वह सत्ता का लाभ नही ले रहे थे।