शिमला/शैल। बहुचर्चित और विवादित कोटखाई क्षेत्र के गुड़िया रेप और हत्या कांड में शिमला पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये कथित अभियुक्तों के खिलाफ 90 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट में चालान दायर न हो पाने के कारण इन अभियुक्तों को अदालत से ज़मानत मिल चुकी है। स्मरणीय है कि इसी कांड में गिरफ्तार हुए एक अभियुक्त सूरज की पुलिस कस्टडी में हत्या हो जाने पर इसी गुड़िया मामले की जांच के लिये गठित हुई पूरी एसआईटी टीम भी हिरासत में चल रही है। इस टीम की ज़मानत याचिका को अब फिर कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है। स्मरणीय है कि जब यह कांड घटा था और इस पर मीडिया में चर्चा उठी थी तब इस चर्चा का स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले को अपने पास ले लिया था। उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लिये जाने के बाद इसकी जांच के लिये सरकार नेे एक एसआईअी आईजी ज़हूर जैदी की अध्यक्षता में गठित कर दी थी। लेकिन इस एसआईटी की कार्यप्रणाली को लेकर लोगों में रोष और अविश्वास फैल गया है। जनता ने गुड़िया को इन्साफ दिलाने के लिये एक गुड़िया न्याय मंच का गठन कर लिया। इस मंच केे बैनर तले जो जनाक्रोश फूटा उससे प्रदेश दहल उठा था। बल्कि देश के कई भागों में भी इसको लेकर धरना-प्रदर्शन हुए। लोगों ने ठियोग और कोटखाई पुलिस थानों के बाहर इतना उग्र प्रदर्शन किया कि पुलिस थाने को आग तक लगा दी गयी। इस आग में थाने के मालखाने से रिकार्ड लाकर लोगों ने उसे आग की भेंट कर दिया।
जनता मे फैले जनाक्रोश का संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय और सरकार ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। जब सीबीआई ने यह मामला अपने हाथ में लिया तब गुड़िया के रेप और हत्या को लेकर छः लोगों को एसआईटी गिरफ्रतार कर चुकी थीं लेकिन इस गिरफ्तारी को लेकर यह आरोप लगे थे कि इसमें असली अपराधीयों को छोड़कर बेगुनाहों को पकड़ा गया है। इसी आरोप पर जनाक्रोश भड़का था और इसी बीच पुलिस कस्टडी में एक अभियुक्त की हत्या हो गयी। सीबीआई के सामने दो मामले खड़े थे। एक था गुड़िया के रेप और हत्या का मामला, दूसरा था पुलिस कस्टडी में कथित अभियुक्त सूरज की हत्या। सूरज की हत्या को एसआईटी ने अभियुक्तों के बीच हुए झगड़े का परिणाम कहा था। लेकिन जनता ने इस हत्या को भी असली अपराधियों को बचाने का प्रयास करार दिया था। सीबीआई ने भी अन्ततः इस हत्या के लिये एसआईटी टीम को जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया।
प्रदेश उच्च न्यायालय हर पखवाड़ेे के बाद सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट तलब कर रहा है। हर बार स्टेटस रिपोर्ट दायर होने से पहले समाचार छपते रहे हैं कि सीबीआई को बड़ी सफलता हाथ लग गयी है, बड़ा खुलासा होने वाला है। लेकिन हर स्टेटस रिपोर्ट पर उच्च न्यायालय की नाराज़गी सामने आती रही है। गुडिया प्रकरण में जिन लोगों को पकड़ा गया था सीबीआई उनका नार्को टैस्ट भी करवा चुकी है और इस टैस्ट के बाद भी कोई ठोस प्रमाण पकडे़ गये अभियुक्तो के खिलाफ जब सीबीआई नहीं जुटा पायी तो 90 दिन के भीतर चालान दायर नही हो पाया और परिणामस्वरूप इनको ज़मानत मिल गयी।
अब सीबीआई को उच्च न्यायालय ने 30 नवम्बर तक एसआईटी के खिलाफ चालान दायर करने को कहा है और गुड़िया मामले में दिसम्बर में फिर रिपोर्ट दायर करने के निर्देश दिये है। सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने एसआईटी के सदस्यों के खिलाफ चालान दायर करने के लिये सरकार से अभियोजन की अनुमति मांग रखी है। कानून के जानकारों के मुताबिक कस्टोडियल डैथ में सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सरकार की अनुमति की आवश्यकता नही होती है। कस्टोडियल डैथ में सीधे सवाल है कि या तो सूरज की अभियुक्तों के आपसी झगड़े में मौत हो गयी है, या फिर उसे नीयतन किसी को बचाने के लियेे मारा गया है। यदि उसकी मौत आपसी झगडे़ में हुई है तो उसके लिये पूरी एसआईटी को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता। यदि सूरज को नीयतन किसी को बचाने के लिये मारा गया है तो यह सच्चाई बाहर आने में समय नही लगना चाहिये। लेकिन अभी तक कुछ भी सामने नही आ पाया है, बल्कि अब यह सन्देह होता जा रहा है कि सीबीआई के हाथ अब तक कुछ भी ठोस नही लगा है। एसआईटी की गिरफ्तारी को भी 90 दिन होने वाले है। यदि 90 दिन के भीतर यह चालान दायर नही हो पाया तो इन लोगों को भी अदालत द्वारा ज़मानत देने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जायेगा।
गुडिया प्रकरण से एक समय प्रदेश की राजनीति में भुचाल खड़ा हो गया था। विपक्ष के हाथ एक बड़ा मुद्दा लग गया था। भाजपा का हर नेता इस पर वीरभद्र सरकार को घेर रहा था लेकिन अब सीबीआई की असफलता से भाजपा के लिये इस मुद्दे का उठाना संभव नही रह गया है। बल्कि पुलिस थाना को आग लगाने और रिकार्ड जलाने के लिये जिन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं और अब तक कारवाई नही हुई है, क्या भाजपा सत्ता में आने पर इन लोगों के खिलाफ कारवाई करेगी या नही यह सवाल अब भाजपा से पूछा जाने लगा है।