Friday, 19 September 2025
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मूर्तियां तोड़ने से वैचारिक स्वीकार्यता नही बनेगी

शिमला/शैल। नॅार्थ ईस्ट के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैण्ड की विधानसभाओं के लिये हुए चुनावों में भाजपा को पहली बार इतनी जीत मिली है कि तीनों राज्यों में वह सरकार में आ गयी है। त्रिपुरा में तो शुद्ध भाजपा की सरकार बनी है। यहां पर उसने सीपीएम से सत्ता छीनी है। नाॅर्थ ईस्ट में मिली इस जीत को भाजपा ने पूरे देश में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित भी किया है। भाजपा को यहां क्रमशः त्रिपुरा में 43% मेघालय में 9.6% और नागालैण्ड में 15.3% वोट मिले हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यहां भी भाजपा को कुल मतों के 50% से कम वोट मिले हैं। भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में भी 31% वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद हुए कुछ राज्य विधान सभाओं के चुनावों में भी भाजपा को 50% से कम ही वोट मिले हैं। इन आंकड़ो से स्पष्ट हो जाता है कि अभी तक भी भाजपा की स्वीकारयता 50% से भी बहुत कम में है। इस परिदृश्य में भाजपा की जीत का श्रेय उसकी वैचारिक स्वीकारयता की जगह उसके चुनाव प्रबन्धन हो जाता है क्योंकि उसने सत्ता के लिये यहां उस दल से भी गठबन्धन कर लिया है जिसने तिरंगे को सार्वजनिक रूप से जलाया था। भाजपा को सत्ता के लिये ऐसे गठबन्धन में जाना चाहिये था या नही यह एक अलग बहस का विषय हो सकता है। त्रिपुरा की वामपंथी सरकार को लेकर मराठी में लिखी गयी एक किताब के हिन्दी अंग्रेजी अनुवाद इस चुनाव में घर -घर पहुंचे हैं। इस किताब का चुनावों पर बहुत असर हुआ है जबकि किताब की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठे हैं। यह सब ऐसे विषय हैं जिनको लेकर मतभेद हो सकते हैं लेकिन चुनावों का अन्तिम परिणाम भाजपा की सफलता है और इस सफलता में यह सारे सवाल गौण हो जाते है।
लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ दी गयी। इस मूर्ति के टूटने के बाद बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मेरठ में बाबा साहिब अम्बेडकर, तमिलनाडू में पेरियार और केरल में महात्मा  गांधी  की मूर्ति के साथ तोड़ फोड़ की गयी है। उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू, प्रधानमन्त्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमितशाह ने मूर्तियां तोड़े जाने की घोर निंदा की है लेकिन राम माधव जैसे कुछ नेताओं ने इस तोड़ फौड़ को अप्रत्यक्षतः जस्टिफाई करने का भी प्रयास किया है। इन मूर्तियों के तोड़े जाने पर यह स्वभाविक है कि लोगों में इसको लेकर कुछ रोष तो अवश्य ही देखने को मिलेगा। दलित समाज आक्रोश में सडकों पर भी उत्तर आया है। मूर्तियों के टूटने का यह सिलसिला त्रिपुरा में भाजपा की सरकार आने के बाद शुरू हुआ है और संयोग से यह उन राज्यों में पहुंच गया है जहां आगे विधानसभा चुनाव होने हैं। बंगाल, तमिलनाडू और केरल में चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में उप चुनाव हो रहे हैं। जिनमें बसपा ने सपा को समर्थन देने की घोषणा की है। बंगाल में भाजपा ने खुला दावा किया है कि वह वहां सरकार बनायेगी। देश को कांग्रेस मुक्त करने का तो संकल्प लेकर भाजपा चल रही है। देश वैचारिक धरातल पर कांग्रेस को नकार कर भाजपा को अपना ले तो इसमें किसी को भी कोई एतराज नही होगा। लेकिन सत्ता के लिये रणनीतिक तौर पर मन्दिर - मस्ज़िद के झगड़े खडे़ किये जाये और इस आधार पर मतदाताओं का धु्रवीकरण किया जाये तो इससे देश का कोई भला नहीं हो सकता है। आज देश का हर राज्य आवश्यकता से अधिक कर्ज में डूबा हुआ है। हर राज्य अपनेे लिये विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है। आंध्रप्रेदश में टीडीपी के मन्त्री इसी मांग पर केन्द्रिय मन्त्रीपरिषद् से बाहर आ गये हैं और आन्ध्र में भाजपा के। आन्ध्र के बाद बिहार में नीतिश कुमार ने भी विशेष राज्य की मांग दोहरा दी है। बढ़ते कर्ज के कारण सभी राज्य वित्तिय बोझ के तले दबे हैं। लेकिन कोई यह समीक्षा करने को तैयार नही है कि राज्यों का कर्जभार इतना बढ़ कैसे गया। क्या इसके लिये सत्तारूढ़ दलों के अपने अपने राजनीतिक स्वार्थ जिम्मेदार नही रहे है। लेकिन निष्पक्षता से कोई भी इसे स्वीकारने और समझने को तैयार नही है।
आज बैंको का एनपीए कितना बढ़ गया है। कितने लोग बैंको का कर्जा वापिस नही कर रहे हैं। नीरव मोदी, विजय माल्या और ललित मोदी जैसे लोग देश से बाहर कैसे चले गये। कालेधन को लेकर किये गये दावों और वायदों का क्या हुआ है। यह सवाल अब जन चर्चा का विषय बन चुके हैं। देर- सवेर इन पर जवाब देना ही पड़ेगा। ईवीएम की विश्वसनीयता भी सन्देह के घेरे में है। राजनीतिक देलों का बहुमत ईवीएम की जगह फिर पुराने ‘‘पेपर मतदान’’ की मांग पर उत्तर आया है। मोदी सरकार ने ‘‘एक देश एक चुनाव’’ की बात महामहिम राष्ट्रपति के इस वर्ष के संसद में दिये गये अभिभाषण में उठाई थी। लेकिन उसपर आगे नहीं बढ़ पा रही है। बल्कि हरियाणा के मुख्यमन्त्री ने तो इसे एकदम अंसभव करार दे दिया है। नोटबन्दी और जीएसटी के लाभ देश के सामने नकारात्मकता में सामने आ रहे हैं। इन फैसलों के परिणामस्वरूप रोजगार बढ़ने की बजाये कम हो रहे है। मंहगाई में कोई कमी नही आयी है। इस परिदृश्य में आज मन्दिर -मस्ज़िद के झगड़े से भी कोई हल निकलने वाला नही है। क्योंकि यदि सारे मस्ज़िदों और चर्चाे को तोड़ कर मन्दिर ही बना दिये जाये तो भी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और मंहगाई पर कोई फर्क पड़ने वाला नही है यह अब आम आदमी को समझ आने लग पड़ा है। आज रोटी, कपड़ा ,मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य के मूलभूत प्रश्नों को राम मन्दिर निर्माण आदि के नाम पर ज्यादा देर के लिये टालना संभव नही होगा। आज जो नार्थईस्ट की जीत का देशभर में प्रचार करने के साथ ही जो मूर्तियां तोड़ने का एक नया मुद्दा खड़ा होने लगा है जनता इसके राजनीतिक मायने शीघ्र ही समझ जायेगी। क्योंकि प्रधानमन्त्री ने जिस भाषा में इसकी निन्दा की है उसी भाषा में वह गोरक्षा और लव जिहाद को लेकर उभरी हिंसा की भी निन्दा कर चुके हैं तब भी कुछ लोगों ने उसे जस्टिफाई किया था जैसे अब कर रहे हैं। यह सब एक राजनीतिक रणनीति के तहत होता है। देश के बहुमत को इसे समझने में देर नहीं लगेगी। इसलिये इस रणनीति के स्थान पर भाजपा को अपनी वैचारिक स्वीकारयता बनानी होगी।

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