भाजपा ने इन दिनों राष्ट्रीय स्तर पर ‘‘संपर्क से समर्थन’’ की एक रणनीति योजना शुरू की है। इसके तहत पार्टी ने अपने मन्त्रिायों सहित तमाम बड़े नेताओं को निर्देश दिये हैं कि वह अपने अपने राज्यों में विभिन्न क्षेत्रों के बड़े लोगों से मिलकर उनसे पार्टी के लिये समर्थन हासिल करें। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इस रणनीति की शुरूआत महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे व अन्य लोगों तथा पंजाब में प्रकाश सिंह बादल से मिलकर की है। केन्द्र में भाजपा की मोदी सरकार को 26 मई को सत्ता में आये चार साल हो गये हैं। 2014 में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे तब इन चुनावों से पूर्व राम देव और अन्ना हज़ारे के आन्दोलनों से देश में बड़े स्तरों पर हो रहे भ्रष्टचार के खिलाफ एक बड़ा जनान्दोलन खड़ा हो गया था। इस आन्दोलन की जमीन तैयार करने में प्रशांत भूषण ने भ्रष्टाचार के कई बड़े मामलों को सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाकर कर एक बड़ी भूमिका निभाई थी। क्योंकि अदालत ने इन मामलों की सीबीआई जांच के आदेश देकर इसकी गंभीरता और विश्वसनीयता बढ़ा दी थी। इसी परिदृश्य में सिविल सोसायटी ने लोकपाल की मांग उठाई थी। इस तरह कुल मिलाकर जो वातावरण उस समय देश के अन्दर खड़ा हो गया था उससे तब सत्तारूढ़ यूपीए सरकार के खिलाफ बदलाव का माहौल खड़ा हुआ। इसका लाभ भाजपा को मिला जो अकेले अपने दम पर 283 सीटें जीत गयी। उस समय विदेशों में पड़े लाखों करोड़ों के कालेधन की वापसी से हर व्यक्ति के खाते में पन्द्रह लाख आने के दावों और अच्छे दिनों के वायदे ने भाजपा को यह सफलता दिलाई थी। उस समय भाजपा को बड़े लोगों से संपर्क करके समर्थन मांगने की आवश्यकता नही पड़ी थी।
अब इन चार वर्षों में जो कुछ घटा है और अच्छे दिनों के वायदे के तहत लोगों को जो जो लाभ मिले हैं उसी की व्यवहारिकता का परिणाम है भाजपा इस दौरान हुए लोकसभा के अधिकांश उपचुनाव हार गयी है। देश के सबसे बडे़ राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। भाजपा के अपने ही घटक दलों के साथ रिश्ते अब बिखरास पर आ गये हैं। इस परिदृश्य में भाजपा को आज ‘‘संपर्क से समर्थन’’ की योजना पर उतरना पड़ा है। 2014 में किये गये वायदे कितने पूरे हुए हैं यह हर आदमी के सामने आ चुका है। संघ-भाजपा की वैचारिक स्वीकार्यता कितनी बन पायी है और इस विचारधारा की सोच कितनी सही है इसका एक बहुत बड़ा खुलासा संघ मुख्यालय में पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी के भाषण के बाद सामने आ गया है। इस तरह कुल मिलाकर जो वातावरण आज भाजपा के खिलाफ खड़ा होता जा रहा है उसी का परिणाम है कि भाजपा नेताओं को सामज के बुद्धिजीवि वर्ग के लोगों से संपर्क बढ़ाने और समर्थन मांगने की आवश्यकता आ खड़ी हुई है।
इसी कड़ी में केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा को शिमला आकर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज लोकेश्वर पांटा, प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एसएस परमार, पूर्व जज अरूण गोयल, पूर्व नौकरशाह जोशी और लेखक एसआर हरनोट के यहां दस्तक देनी पड़ी है। यह लोग कोई सक्रिय राजनीति के कार्यकर्ता नहीं है और न ही किसी बड़े समाजिक आन्दोलन के अंग हैं जो भाजपा की नीतियों और विचारधारा से आश्वस्त होकर आम आदमी में उसकी पक्षधरता की वकालत करेंगे या संघ भाजपा के पक्ष मे कोई बड़ा ब्यान देकर किसी बहस को अंजाम देंगे। नड्डा ने इन लोगों से मिलकर पार्टी की ओर से दी गयी जिम्मेदारी निभा दी है और अखबारों में इसकी खबर छपने से उनको इसका प्रमाण पत्र भी मिल गया है। लेकिन इसी परिदृश्य में नड्डा से बतौर केन्द्रिय मन्त्री कुछ सवाल प्रदेश की जनता की ओर से पूछे जाने आवश्यक है। सवाल तो कई हैं लेकिन मैं केवल दो सवाल ही उठाना चाहूंगा। पहला सवाल है कि प्रधानमन्त्री मोदी से लेकर नड्डा तक भाजपा के हर बड़े नेता ने पिछले लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक वीरभद्र के भ्रष्टाचार को प्रदेश की जनता के सामने एक बड़ा मुद्दा बनाकर उछाला था। यह कहा था कि इनके तो पेड़ों पर भी पैसे लगते हैं। नड्डा जी इन आरोपों की जांच आपकी केन्द्र की ऐजैन्सीयों ने ही की है इन ऐजैन्सीयों ने वीरभद्र के साथ बने सहअभियुक्तों आनन्द चौहान और वक्कामुल्ला को तो इसलिये गिरफ्तार कर लिया कि इन्होने भ्रष्टचार करने में वीरभद्र का सहयोग किया। लेकिन जिसको इस सहयोग से लाभ मिला उस वीरभद्र को तो आप हाथ नही लगा सके। ऐसा क्यों और कैसे हुआ? क्या वीरभद्र के खिलाफ जानबूझ झूठे मामले बनाये गये थे या कुछ और था क्या इसका कोई जवाब आप प्रदेश की जनता को दे पायेंगे?
इस कड़ी में मेरा दूसरा सवाल यह है कि मोदी जी ने मण्डी की चुनावी जनसभा में प्रदेश की वीरभद्र सरकार से 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा था। यह कहा था कि उनकी सरकार ने केन्द्र की ओर से 72000 करोड़ की आर्थिक सहायत दी है मोदी ने वीरभद्र से पूछा था कि उन्होने यह पैसा कहां खर्च किया। अखबारों में यह बड़ी खबर छपी थी क्योंकि यह बड़ी जानकारी थी आम आदमी के लिये। लेकिन अब प्रदेश में आपकी सरकार बन गयी उसके बाद आये अपने पहले ही बजट भाषण में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने केन्द्र से प्रदेश को मिली सारी धनराशी का आंकड़ा 46000 करोड़ कहा है। जयराम का बजट भाषण सदन के रिकार्ड में मौजूद है। मोदी और जयराम के आंकड़ो में 26,000 करोड़ का अन्तर है। मोदी के भाषण की रिकार्डिंग भी उपलब्ध है। ऐसे में नड्डा जी क्या आप बतायेंगे कि मोदी और जयराम में कौन सही और सच्च बोल रहा है। इसी तरह के कई सवाल जयराम सरकार से भी उठाये जायेंगे। लेकिन अभी नड्डा जी से इतना ही अनुरोध है कि इन सवालों के परिदृश्य में मोदी सरकार समर्थन की कितनी हकदार है।