भारत सरकार ने पैट्रोलियम, वित्त, आर्थिक मामले कृषि और स्टील आदि कुछ मन्त्रालयों में संयुक्त सचिवों के दस पद भरने के लिये निजिक्षेत्र में काम कर रहे लोगां से आवेदन मांगे हैं। यह पद तीन वर्ष के अनुबन्ध पर भरे जायेंगे और अनुबन्ध की अवधि दो वर्ष बढ़ाई जा सकती है। निजिक्षेत्र से अनुभवी लोगों को पहले भी ऐसी एक-आध नियुक्तियां दी जाती रही है। बल्कि भारत सरकार में सचिव स्तर तक ऐसे लोग सेवाएं दे चुके हैं। पैट्रोलियम और वित्त मंत्रालयों में निजिक्षेत्र से आये लोग सचिव रह चुके हैं। लेकिन ऐसे लोगों को जब भी लाया गया तो उन्हें स्थायी नियुक्तियां दी गयी थी। अनुबन्ध के आधार पर ऐसी नियुक्तियांं का प्रयोग पहली बार हो रहा है। इन लोगों का चयन संघ लोक सेवा आयोग नहीं बल्कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में बनी कमेटी करेगी। एक साथ दस लोगों को विभिन्न मन्त्रालयों में संयुक्त सचिव के पद पर तीन वर्ष के अनुबन्ध पर नियुक्ति किये जाने से स्वभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि क्या सरकार देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में कोई नियोजित प्रयोग करने जा रही है। यदि यह प्रयोग सरकार के अघोषित लक्ष्यों की पूर्ति के मानदण्ड पर सफल रहता है तो क्या आईएएस की जगह कोई नयी प्रशासनिक व्यवस्था देखने को मिलेगी? ऐसे बहुत सारे सवाल सरकार के इस फैसले के बाद उठ खड़े हुए हैं। क्योंकि इस फैलले से पहले यह भी एक फैसला चर्चा में रहा है कि अब आईएएस को लोकसेवा आयोग के चयन पर ही राज्यों का आबंटन नही हो जायेगा बल्कि प्रशिक्षण पूरा करने के बाद जो परिणाम रहेगा उसके आधार पर आवंटन किया जायेगा।
सरकार के इन फैसलों से पहली चीज तो यह उभरती है कि सरकार आईएएस की मौजूदा व्यवस्था को उपयोगी नही मान रही है। इसके विकल्प के रूप में कुछ नया लाना चाहती है। इस समय जो लोग इन पदों पर अनुबन्ध के आधार पर नियुक्त होंगे वह निश्चित तौर पर किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी या किसी बड़े औद्यौगिक घराने में अपनी सेवायें दे रहे होंगे। क्योंकि इन पदों के लिये योग्यता की शर्त यही है कि वह इसके लिये अपने को Talented मानते हों। आईएएस बनने के लिये शैक्षणिक योग्यता आज भी स्नातक ही है चाहे वह किसी भी स्ट्रीम से स्नातक हो। आईएएस हो जाने के बाद सोलह वर्ष के कार्यकाल के बाद संयुक्त सचिव बन जाता है लेकिन निजिक्षेत्र से आने वाले का न्यूनतम अनुभव कितने वर्ष का होगा यह स्पष्ट नही किया गया है। इसका आकलन यह चयन कमेटी ही करेगी। आईएएस एक प्रशासनिक सेवा है उसका प्रशिक्षण प्रशासन चलाने के उद्देश्य से किया जाता है। प्रशासन में सबसे निचले कर्मचारी से लेकर शीर्ष अधिकारी तक सबके दायरे अधिकार और कर्तव्य पूरी तरह परिभाषित हैं। हम एक वेल्फेयर स्टेट हैं जहां हर कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक सबसे लोक कल्याण के हित में काम करना अपेक्षित रहता है। इसमें "Public interest " सर्वोपरि रहता है। इसीलिये सरकार में हर अधिकारी /कर्मचारी को उसकी सेवानिवृति उसे सेवा की सुरक्षा मिली हुई है।
इसके विपरीत निजिक्षेत्र में यह नही है कि उसके अधिकारी/कर्मचारी को एक निश्चित अवधि तक सेवाकाल की सुरक्षा नही है। निजिक्षेत्र में वेल्फेयर स्टेट की अवधारणा भी लागू नही होती है। वहां तो नौकर को मालिक वेल्फेयर की पूर्ति करनी है। उसे मालिक को अधिक से अधिक लाभ कमाकर देना है। निजिक्षेत्र लाभ की अवधारणा पर चलता है जबकि सरकार वेल्फेयर की। सबका हित- सबका कल्याण, सबका विकास यह वेलफेयर स्टेट के मूल उद्देश्य हैं। इसमें लाभ से पहले कल्याण रहता है लेकिन निजिक्षेत्र में यह कल्याण और लाभ एक व्यक्ति, एक कंपनी या एक औ़द्यौगिक घराने तक ही सीमित रहता है। ऐसे में जिस व्यक्ति को तीन या पांच वर्ष के अनुबन्ध पर नियुक्त किया जायेगा उसे प्रशासन की सारी बारिकियां समझने में समय लगेगा। बल्कि वह तो जिस भी संस्थान से पूर्व में जुड़ा रहा होगा उसी कार्य संस्कृति से प्रभावित रहेगा और उन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कार्य करेगा। सयुंक्त सचिव कृषि के पद पर बैठकर वह किसान के हित में स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करवाने में नीति के स्तर पर क्या योगदान दे पायेगा। वह किसान का कर्जा माफ किये जाने की वकालत कैसे कर पायेगा वित्त और आर्थिक मामलों का संयुक्त सचिव क्या एनपीए की व्यवस्था को समाप्त करने की राय दे पायेगा। क्या वह बहुराष्ट्रीय कंपनीयों के हितों से विपरीत जा पायेगा। यदि कोई अंबानी- अदानी औद्यौगिक घरानों से जुड़ा व्यक्ति पैट्रोलियम या रक्षा उत्पादन में संयुक्त सचिव हो जाता है तो क्या वह पैट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने की वकालत करेगा। रक्षा उत्पादन में क्या वह शफेल डील पर सवाल उठा पायेगा? इसलिये सरकार को यह प्रयोग करने से पहले इसके निहित उद्देश्यों की जानकारी जनता के सामने रखनी होगी।
यदि सरकार को लगता है कि आईएएस व्यवस्था अप्रसांगिक होती जा रही है और उसे हर मन्त्रालय में विषय विशेषज्ञ चाहिये तो उसे आईएएस व्यवस्था में अलग से सुधार करने चाहिये। जिन क्षेत्रों में विशेषज्ञ चाहिये उनके लिये आईएएस मे ही पोस्टल, राजस्व और आडिट की तर्ज पर अलग सेवाआें की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिये शैक्षणिक योग्यताएं भी स्नातक से बढ़ाकर विषय विशेषज्ञता की तय करनी होंगी, अन्यथा जो प्रयोग अब किया जाने लगा है उससे यही संदेश जायेगा कि सरकार संघ की विचारधारा से जुड़े लोगों को कुछ प्रमुख पदों पर बैठाने की जुगाड़ भिड़ा रही है।