Friday, 19 September 2025
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घातक होगा मर्यादाएं लांघता वाकयुद्ध

शिमला/शैल। इन दिनों मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर की विपक्षी दल कांग्रेस के नेता सदन और पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह को लेकर की गयी एक टिप्पणी के बाद दोनों दलों के बीच एक ऐसा वाकयुद्ध छिड़ गया है जो मर्यादा की सीमाएं लांघता जा रहा है। जयराम को लेकर वीरभद्र ने एक टिप्पणी करते हुए कहा कि जयराम अभी राजनीति में बच्चे हैं। कांग्रेस के नेता सदन मुकेश अग्निहोत्री ने जयराम और उसकी सरकार की कार्यशैली तथा उनके द्वारा लिये जा रहे फैसलों की आलोचना तो बतौर नेता प्रतिपक्ष की है परन्तु कभी मुख्यमन्त्री पर व्यक्तिगत स्तर का आरोप नही लगाया है। जबकि जयराम ने वीरभद्र की टिप्पणी का तो कोई सीधा जवाब नही दिया लेकिन मुकेश अग्निहोत्री को लेकर व्यक्तिगत टिप्पणी पर आ गये। जयराम ने छुटट्भईया नेता कहने के साथ ही यह भी कह दिया कि वह पंजाब से लगते क्षेत्रा से ताल्लुक रखते हैं लेकिन उनका पंजाबी कल्चर यहां नही चलेगा। जब मुकेश अग्निहोत्रा ने भी ऊना में एक प्रैस वार्ता करके जयराम की टिप्पणी का जवाब दिया तो उससे भाजपा के अन्दर कितनी अंशाती पैदा हुई है इसका इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इस पर करीब आधा दर्जन मन्त्रीयों के नाम से प्रतिक्रियाएं आयी हैं। जब मुकेश ने जयराम को उसी की तर्ज पर जवाब दिया था तब कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने सोशल मीडिया के माध्यम से यह कहा था कि मुकेश को सयंम बरतना चाहिये था। तब लगा था कि शायद इस नेक सलाह का असर होगा। लेकिन जब इस सलाह के बावजूद आधा दर्जन मन्त्रीयों की प्रतिक्रियाएं उसी तर्ज पर आयीं तब लगा कि इस विषय पर एक सार्वजनिक चर्चा उठाने की आवश्यकता है।
जिस पत्रकार वार्ता में जयराम ने यह टिप्पणी की थी उसमें कोई भी दूसरा मन्त्री वहां पर उपस्थित नही था। इसलिये प्रतिक्रिया देने वाले मन्त्रीयों को उतनी ही जानकारी है जितनी की उन्हे तन्त्र के उन अधिकारयों द्वारा दी गयी होगी जो वहां मौजूद थे या फिर स्वयं मुख्यमन्त्री द्वारा जो बताया गया होगा। राजनीति में मुख्यमन्त्री या किसी भी दल का कोई भी दूसरा नेता एक दूसरे को बड़ा नेता कहे या छुट्टभईया नेता कहे यह उनकी अपनी समझ और उनके मानने की बात है। उससे किसी को कोई फर्क नही पड़ता है लेकिन जब ‘‘पंजाबी कल्चर’’ यहां नहीं चलेगा तो इससे एक बड़ा वर्ग आहत हो जाता है। एक तरह से देश के एक पूरे राज्य को अपने एक ही वाक्य के साथ अमान्य और अभद्र करार दे दिया जो कि किसी भी कसौटी पर जायज़ नही ठहराया जा सकता है। पंजाब की अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है और पूरा प्रदेश उसका सम्मान करता है। हिमाचल का वर्तमान आकार पंजाब के 1966 में हुए पुनर्गठन के बाद बना है। आज 68 विधायकों की विधानसभा में 31 विधायक पंजाब से हिमाचल में शामिल हुए क्षेत्रा से आते हैं। भाजपा के दोनो पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार और प्रेम कुमार इसी पंजाब की संस्कृति से आये हैं। भाजपा के इस समय के अध्यक्ष भी इसी कल्चर से हैं। जयराम के आधे मन्त्री भी इसी पंजाबी कल्चर से कुछ ताल्लुक रखते है। सबके आज भी पंजाब के साथ गहरे रिश्ते हैं। फिर जयराम के तो मुख्य सचिव शुद्ध पंजाबी है। क्या इन सबके आचार-व्यवहार से मुख्यमन्त्री खुश नही है या सहमत ही नही है। मुख्यमन्त्री की पंजाबी कल्चर की टिप्पणी का पूरे क्षेत्र पर नकारात्मक असर हुआ है और आने वाले समय में इन पंजाब से आये क्षेत्रों के लोग अपने विधायकों और मन्त्रीयो से जवाब मांगे तो इस पर कोई आश्चर्य नही होना चाहिये।
राजनीति में आप किसे बड़ा छोटा मानते हैं इससे आम आदमी को फर्क नही पड़ता है लेकिन जब आप एक टिप्पणी से पूरे एक वर्ग को एक क्षेत्र को नकार देते हैं तो उस पर हर संवेदनशील व्यक्ति आहत होता है और ऐसी टिप्पणीयों के अर्थ समझने का प्रयास करता है। कई बार ऐसी टिप्पणीयां गंभीर मुद्दों पर से आम आदमी क्या ध्यान हटाने के लिये भी की जाती है परन्तु उसका स्थायी लाभ नही मिल पाता है। क्योंकि आज हर आदमी चीजों पर अपने -अपने ढंग से नज़र रखता है। फिर यह तो एक छोटा सा प्रदेश है और इसका छोटा सा सचिवालय है जिसमें किसी भी चीज़ को ज्यादा देर तक गुप्त रख पाना संभव नही है। कौन मंत्री या अधिकारी क्या कर रहा है कौन किससे मिल रहा है यह सारी जानकारियां पत्रकारों के पास तो आ ही जाती है। क्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी भी तरह तन्त्र से पीड़ित रहता है तब वह अपनी आवाज़ को जनता तक पहुंचाने के लिये मीडिया का ही सहारा लेता है। सरकार के शासन सुशासन पर हरेक की नज़र बनी हुई है। किसको कितना जायज़ या नाजायज़ लाभ दिया जा रहा है इस पर भी सबकी नज़र है। फिर आरटीआई से तो जानकारियां जुटाना और आसान हो गया है इसलिये सत्ताप़क्ष और विपक्ष दोनो से ही यह आग्रह है कि इस तरह के वाक्युद्ध में उलझ कर जनता के मुद्दों की बलि मत दीजिये। क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ दोनों दलों की सरकारों का पुराना रिकार्ड बहुत अच्छा नही है। भ्रष्टाचार पर ब्यान केवल जनता का ध्यान बांटने के लिये आते हैं इसके खिलाफ कारवाई करने की गंभीरता से नही। लेकिन यह सब अब जनता की सहन शक्ति से बाहर होता जा रहा है जनता सरकारें इसके लिये चुनकर नही भेजती है कि सरकार उसके सिर पर कर्ज का बोझ बढ़ाती जाये और जनता के पैसे को लुटाती रहे जैसा कि अब कुछ मुद्दों में सामने आ रहा है।

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