Friday, 19 September 2025
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राफेल की जद में सरकार

  फ्रांस से खरीदा जा रहा लड़ाकू विमान राफेल दुश्मनों के खिलाफ का इस्तेमाल होगा यह तो इसके अव्यहारिक तौर पर आ जाने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन अभी इसकी खरीद प्रक्रिया पर उठते सवालों ने ही जो हमला देश की सियासत पर बोला है उसने सबकुछ हिला कर रख दिया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षीदल इस पर जेबीसी की मांग कर रही है और सरकार इसके लिये तैयार नही हुई है। इसके बाद सीबीसी के संज्ञान में भी यह मामलां दिया गया है। सीएजी से भी इसकी जांच करवाने की मांग की जा चुकी है। पूर्व मन्त्री यशवन्त सिंह, और अरूण शोरी तथा वरिष्ठ वकील प्रंशात भूषण इसमें एफआईआर दर्ज किये जाने का लिखित आग्रह कर चुके हैं। लेकिन मोदी सरकार इस सौदे की गोपनीयता को आधार बनाकर हर तरह की मांग को ठुकरा चुकी है। इस सौदे पर उठा विवाद प्रशांत किशोर के जुमले ‘‘ चौकीदार ही चोर निकला’’ के मुकाम तक पहुंच गया है। इस जुमले से हर कहीं दिवारें पोती जा रही हैं और कई जगह तो पुलिस इसे देशद्रोह की संज्ञा देती नज़र आ रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो इसी सौदे को लेकर प्रधानमन्त्री पर भ्रष्टता का आरोप लगाते हुए उनसे त्पागपत्रा तक की मांग कर डाली है। यह मामला एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच चुका और शीर्ष अदालत ने इसकी खरीद से जुड़ी सारी प्रक्रिया का रिकार्ड सरकार से तलब कर लिया है।

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलाँद के ब्यान से राहूल गांधी के आरोपों को बल मिला है। पर्वू राष्ट्रपति ओलाँद के अतिरिक्त फ्रांस की ही एक न्यूज साईट मीडिया पार्टनर ने इस सौदे से जुड़ी कंपनी दसॉल्ट के कुछ दस्तावेज सार्वजनिक करते हुए अनिल अंबानी की सहभागिता पर और गंभीरता जोड़ दी है। कुल मिलाकर यह मुद्दा आज देश की राजनीति का कन्द्रीय सवाल बन चुका है। इस मुद्दे पर भाजपा प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा जिस तरह से सरकार का पक्ष मीडिया के सामने रखते आ रहे हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके पास इस सौदे से जुड़े सारे दस्तावेज उपलब्ध हैं। क्योंकि जिस विस्तार से डॉ. पात्रा इस पर बोलते आ रहे हैं उस विस्तार से तो रक्षामंत्री सीता रमण और सेना अध्यक्ष भी नही बोले हैं। निश्चित है कि डॉ. पात्रा जिन दस्तावेजों के सहारे बोले आ रहे हैं वह उनके पास सरकार से ही आये होंगे क्योंकि वह सत्तारूढ़ दल के ही प्रवक्ता हैं। इसलिये यहां यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब संबित पात्रा के पास दस्तावेज हो सकते हैं तो वही दस्तावेज देश की जनता के सामने क्यों नही आ सकते? पात्रा सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता हैं लेकिन वह सरकार नही हैं। यदि उनके पास दस्तावेज सरकार के माध्यम से नही आये हैं तो फिर यह गोपनीय दस्तावेज उनके पास कहां से आ गये? क्योंकि न तो उनके वक्तव्यों का सरकार ने कभी कोई खण्डन किया है और न ही उनके स्त्रोत को लेकर किसी ने कोई सवाल उठाया है। जब इस मुद्दे को ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा गोपनीयता’’ के नाम पर संयुक्त संसदीय दल के सामने नही रखा जा रहा है तो फिर पात्रा के पास इतनी जानकरी कैसे? और इसी जानकारी को देश के साथ सांझा क्यों नही किया जा सकता? सरकार के इस आचरण से सरकार का अपना ही पक्ष कमज़ोर है।
इसी के साथ जुड़ा दूसरा सवाल यह है कि जब सरकार यह दावा कर रही है कि उसने कुछ भी गलत नही किया है तो फिर वह इसकी जांच से पीछे क्यों भाग रही है? यदि अंबानी को इस सौदे में शामिल करना पूरी तरह नियम सम्मत हुआ है तो इसका प्रमाण देश के सामने रखने से सरकार क्यों हिचक रही है। जब अंबानी इस सौदे में उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठाने वालों के खिलाफ मानहानि के नोटिस भेज सकते हैं तो वह इसकी जांच के लिये आगे क्यों नही आ रहे हैं। अपने ऊपर लग रहे आरोपों पर कोई सफाई देने से ज्यादा अच्छा तो यही होगा कि वह स्वयं इसमें जांच किये जाने की मांग करें। सरकार इसकी जांच से जिस तरह भागती जा रही है उससे उस पर लगने वाले आरोप उतने ही गंभीर होते जा रहे हैं। यदि सरकार इस जांच के लिये आगे नही आती है तो उसे आने वाले चुनावों में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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