Friday, 19 September 2025
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कांग्रेस के घोषणा पत्र पर अविश्वास क्यों

लोकसभा चुनावों के लिये कांग्रेस ने अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इस घोषणा पत्र के पहले पन्ने पर कहा गया है ‘‘हम निभायेंगे’’ और इसी के साथ पार्टी अध्यक्ष राहूल गांधी की घोषणा है कि ‘‘मेरा किया हुआ वादा मैने कभी नही तोड़ा’’ इसी वाक्य के साथ अध्यक्ष का पूरा वक्तव्य और अन्त मे पार्टी का संकल्प भी इस घोषणा पत्र में दर्ज है। 55 पन्नों के इस दस्तावेज में 52 बिन्दुओं पर विस्तृत कार्य योजना का प्रारूप दिया गया है। यह दस्तावेज तैयार करने के लिये 121 परामर्श कार्यक्रम आयोजित किये गये जिनमें 60 कार्यक्रम विभिन्न राज्यों में और 12 से अधिक अप्रवासी भारतीयों के प्रतिनिधियों के साथ तथा 53 कार्यक्रम किसानों, उद्यमियों, अर्थशास्त्रीयों, छात्रों, शिक्षकों, महिला समूहों, डाक्टरों और अन्य विषय विषेशज्ञों के साथ रहे हैं यह दावा भी इसमें किया गया है। इस विस्तृत ब्योरे से यह झलकता है कि इसे तैयार करने के लिये सही में एक व्यापक अध्ययन और विचार विमर्श किया गया है। इसमें जो वायदे किये गये हैं उन्हे कितने समय में और कैसे पूरा किया जायेगा इसके लिये पूरी समयबद्धता दी गयी है। वायदों के अतिरिक्त इस घोषणा पत्र में एक विशेष बिन्दु यह है कि इन वायदों के पूरा होने की प्रमाणिकता सरकारी आंकड़े नहीं बल्कि सोशल आडिट की रिपोर्ट रहेगी।
कांग्रेस के घोषणा पत्र में बेरोज़गारी, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर महत्वपूर्ण वायदे किये गये हैं। सबसे गरीब परिवारों को 72 हजार कैसे मिलेंगे और सरकार तथा उसके विभिन्न अदारों में खाली 22 लाख पदों को भरने के लिये पूरी समयबद्धत्ता दी गयी है। कृषि के लिये पहली बार अलग से बजट लाने का वायदा किया गया है। किसानों का ऋण माफी के स्थान पर ऋण मुक्ति की ओर ले जाने का कार्यक्रम तैयार किया गया है। महिलाओं को आरक्षण का वायदा लोकसभा के पहले ही सत्र में पूरा करने की बात की गयी है। घोषणा पत्र के वायदों को अलग से पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि पाठक इस बारे में स्वयं अपनी एक राय बना सकें।
इस घोषणा पत्र पर भाजपा और उसके समर्थकों की प्रतिक्रियाएं बहुत नकारात्मक आ रही है। इन वायदों को अमली शक्ल दे पाने पर सन्देह व्यक्त किया जा रहा है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि इन वायदों को पूरा करने के लिये संसाधन कंहा से आयेंगे। भाजपा और उसके समर्थकों की आशंकाएं हो सकता है सही हों। क्योंकि वायदे पूरे होने का पता तो भविष्य में ही लगेगा लेकिन अभी इन वायदों पर अविश्वास का भी कोई कारण नही है क्योंकि अभी जहां मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें बनी हैं वहां पर चुनावों से पहले सरकार बनने पर सबसे पहले किसानों के कर्ज माफ करने का वायदा किया गया था। यहां पर सरकारें बनने के बाद यह वायदा मन्त्रीमण्डलों की पहली ही बैठक में पूरा कर दिया गया बल्कि कर्नाटक और पंजाब में भी इसे लागू किया गया है। इस आधार पर आज कांग्रेस के वायदों पर अविश्वास करने का कोई कारण नही बनता है। आज जो देश की स्थिति है उसमें बेरोज़गारी और किसानों की आत्म हत्याएं सबसे बड़े मुद्दे बनकर सामने खड़े हैं।
इसलिये वायदों के इस आईने में आज सबसे पहले मोदी की भाजपा सरकार को आकलन करने की आवश्वकता है। इसके लिये 2014 का भाजपा का दस पन्नों का घोषणा पत्र सामने रखना पड़ता है। भाजपा का यह घोषणा पत्र ‘‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’’ की घोषणा से शुरू होता है और इसका पहला ही बिन्दु "Vibrant and Participatory Democaracy" इसी बिन्दु पर यह सवाल उठता है कि क्या सारे वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित हो पायी है। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि तब भाजपा ने एक भी मुस्लिम को चुनावों मे अपना उम्मीदवार नही बनाया था। उस समय भाजपा और मुस्लिम कौन किस पर कितना विश्वास करता था इस प्रश्न को यदि छोड़ भी दिया जाये तो आज कितनों को उम्मीदवार बनाया है यह सवाल तो उठेगा ही। क्या देश की 22 करोड़ की आबादी और सत्तारूढ़ दल में इन पांच वर्षो में भी आपसी विश्वास कायम नही हो सका है। क्या यह विश्वास का संकट लोकतान्त्रिक भागीदारी पर एक सवालिया निशान नही बन जाता है। भाजपा के इस घोषणा पत्र के दूसरे पन्ने पर रोज़गार को लेकर सिर्फ यह कहा गया है।

Develop high impact domains like labour intensive Manufacturing and Tourism.
Transform Employment Exchanges into /career Centres.

क्या यह रोज़गार को लेकर सीधा वायदा माना जा सकता है। इसमें आगे चलकर सुविधानुसार दो करोड़ नौकरियां देना जोड़ दिया गया। लेकिन आज हकीकत यह है कि केन्द्र सरकार में ही 22 लाख पद रिक्त चल रहे हैं। महिलाओं को धुएं से मुक्ति दिलाने वाली उज्जवला योजना का सच भाजपा प्रत्याशी संबित पात्रा के एक महिला की रसोई में चुल्हे पर खाना पकाने और खाने की तस्वीरें न्यूज चैनल पर आने से सामने आ गया है। इस महिला की रसोई में उज्जवला का उजाला नही था। इससे सरकार की योजनाएं धरती पर कितनी हैं और सरकारी आंकड़ो में कितनी है यह सामने आ जाता है। आज मोदी सरकार अपनी फाईलों में दर्ज आंकड़ो के गणित पर चल रही है और यह आंकड़े ज़मीनी सच्चाई से कोसों दूर हैं। यह इसलिये है क्योंकि सरकार सोशल आडिट में विश्वास नही रखती है। इसलिये उसे कांग्रेस के वायदों पर विश्वास नही हो रहा है। आज यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि देश के बुद्धिजीवी बड़ी संख्या में एक सरकार को ‘‘वोट न करने की’’ अपील कर रहे हैं। आज कांग्रेस का घोषणा पत्र सामने आने के बाद यह चुनाव हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद की अवधारणाओं से बाहर निकल कर जनसमस्याओं पर केन्द्रित होने जा रहा है और शायद यही परेशानी का कारण बन रहा है।

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