Friday, 19 September 2025
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धारा 370 का राग कब तक

भाजपा के 2019 के लोकसभा चुनावों के लिये संकल्प पत्र के नाम से घोषणा पत्र जारी हो गया है। यह संकल्प पत्र राष्ट्र सर्वप्रथम के दावे के साथ शुरू होता है। इसमें आतंकवाद पर सुरक्षा नीति के तहत यह कहा गया है कि नीति राष्ट्रीय सुरक्षा विषयों द्वारा निर्देशित होगी। इसमें सर्जिकल स्ट्राईक और एयर स्ट्राईक का हवाला देते हुए आतंकवाद और उग्रवाद के विरूद्ध जीरो टाॅलरैन्स का दावा किया है। इसके लिये सुरक्षा बलों को सुदृढ़ बनाने, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने और पुलिस बलों केे आधुनिकीकरण करने घुसपैठियों की समस्या का हल करने के लिये सीमा सुरक्षा सुदृढ़ करने के साथ सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल लागू करने के साथ ही पड़ोसी देशों से आये सभी हिन्दु, जैन, बौद्ध, सिख और ईसाईयों को उन देशों में धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर भारत में नागरिकता देने का वायदा किया गया है। वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने और जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने और धारा 35A को खत्म करने का संकल्प फिर दोहराया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर यही सब वायदे 2014 के घोषणा पत्र में भी किये गये थे।
भाजपा राष्ट्र को सर्वप्रथम मानती है और राष्ट्र सर्वप्रथम होना भी चाहिये। इसमें किसी तरह की मतभिन्नता नही हो सकती यह तय है। लेकिन राष्ट्र सर्वप्रथम के सर्वमान्य मानक क्या हैं इस पर एक खुली चर्चा की आवश्यकता है। क्योंकि जब वामपंथी को सीधे उग्रवाद की संज्ञा दे दी जायेगी तो यह चर्चा और भी जरूरी हो जाती है। वामपंथी उसी तरह एक विचारधाराएं हैं जिस तरह आर एस एस और समाजवाद विचारधारांए हैं। यह विचार धाराएं समाज का आकलन कैसे करती हैं और उनके हिसाब से एक आर्दश समाज कैसा हो और उसका संचालन कैसे किया जाये उसके लिये नीति-नियम कैसे हो इसको लेकर इन सारी विचार धाराओं की मान्यताओं में मतभेद हो सकता है। लेकिन इस मतभेद के चलते किसी भी विचारधारा को उग्रवाद की संज्ञा देना सही नही होगा। इसी के साथ किसी भी विचारधारा को समाज पर बलपूर्वक लागू करना भी गलत है यह भी तय है। लेकिन आज संयोगवश यह स्थिति पैदा कर दी गयी है जिसमें मेरी ही विचारधारा सर्वश्रेष्ठ है और उसे बलपूर्वक लागू करने में कोई बुराई नही है का चलन शुरू करने की बात की जा रही है। आज राष्ट्रवाद का एक ही मानक बन गया है कि यदि आप मेरी विचारधारा से सहमत नही है तो आप राष्ट्र द्रोही हैं। दुर्भाग्य से सत्तारूढ़ भाजपा और उसके नेतृत्व को लेकर यह धारणा बनती जा रही है कि जो इनसे सहमत नही है वह राष्ट्रवादी है ही नही। इसलिये जब एक ही वाक्य में वामपंथ को उग्रवाद की संज्ञा भाजपा अपने संकल्प पत्र में देगी तो निश्चित है कि समाज का एक बड़ा वर्ग इससे सहमत नही हो पायेगा।
इसी परिप्रेक्ष में जब जम्मूू कश्मीर की समस्या पर भाजपा के संकल्प पत्र के माध्यम से देखने का प्रयास किया जायेगा तो सबसे पहले यह उभरता है कि इस समस्या को लेकर भाजपा का आकलन सही नही रहा है। भाजपा की केन्द्र में प्रचण्ड बहुमत के साथ सरकार रही है। यही नही जम्मू कश्मीर में भी भाजपा सत्ता में रही है। सारे अधिकार सरकार के पास थे लेकिन यह समस्या आज भी वैसे ही खड़ी है जैसे पहले थी। भाजपा ने 2014 में भी वायदा किया था कि कश्मीर से पलायन कर चुके कश्मीरी पंडितों को वहां वापिस बसायेंगें लेकिन पूरे कार्यकाल में एक भी परिवार का पुर्नवास नही हो सका है। आज 2019 में फिर यह सकंल्प दोहराया गया है। धारा 370 हटाने और यनिफाईड सिविल कोड लाने का वायदा 2014 में भी किया गया था और आज भी किया गया है लेकिन इन पांच वर्षो में इसके लिये कोई कदम तक नही उठाया गया। बल्कि सर्वोच्च न्यायालय में जम्मू-कश्मीर के विधान की धारा 35A (जिसके कारण धारा 370 को लाया गया था) को चुनौती देते हुए दायर हुई याचिका पर केन्द्र सरकार ने आज तक अपना पक्ष तक नही रखा है। सरकार के इस आचरण से यह स्वभाविक सवाल उठता है कि या तो भाजपा इस समस्या को एक खास मकसद के साथ जिन्दा रखना चाहती है ताकि उसको हर बार एक बनी बनाई समस्या उपलब्ध रहे जिसके माध्यम से हिन्दु-मुस्लिम का ध्रुवीकरण करना आसान हो जाये। इस मुद्दे पर भाजपा और प्रधानमन्त्री से यह सवाल करना बनता है कि जब आप लोकसभा में इतने प्रचण्ड बहुमत के बाद भी कोई कदम नही उठा पाये है तो फिर आगे आपके सकंल्प पर किस आधार से विश्वास किया जाये। क्योंकि इस कार्यकाल में जितना बहुमत आपके पास था उसके साथ आप संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर कोई भी प्रस्ताव पारित कर सकते थे। जब जीएसटी के लिये संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता था तो इसके लिये क्यों नहीं?
जम्मू-कश्मीर की समस्या पर जब भी कोई सवाल उठता है तो सीधे कह दिया जाता है कि सीमा पार से घुसपैठ हो रही है। यहां पर सवाल उठता है कि आखिर यह घुसपैठ होने क्यों दी जा रही है। जितना सैनिक बल आज जम्मू-कश्मीर के भीतर तैनात है क्या उसको भी सीमा पर पोस्ट करके घुसपैठ को रोका नही जा सकता। जब जम्मू-कश्मीर के भीतरी भाग से सेना हटा ली जायेगी तब वहां पर आतंक करने वाले की पहचना करना आसान हो जायेगी। इस समस्या के हल के लिये जो भी नीति पहले रही है वह सफल नही हो पायी है यह स्पष्ट हो चुका है क्योंकि इसी कारण से वहां पर राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ नही करवाये जा सके हैं। आज तक सरकार और प्रधानमन्त्री विपक्ष को पाकिस्तान के साथ जोड़कर जिस तरह की टिप्पणीयां करते रहे हैं क्या उन सारी टिप्पणीयों का जवाब इमरान खान के वक्तव्य को माना जाये। क्योंकि प्रधानमन्त्री जब बिना न्यौते के नवाज़ शरीफ के यहां पंहुच गये थे और फिर वेद प्रकाश वैदिक हाफिज़ सईद से मिले थे। इन मुलाकातों मेें क्या चर्चा रही है उसको लेकर आज तक अधिकारिक तौर पर कुछ भी सामने नही आया है। इसलिये आज इमरान खान के ब्यान के बाद पाकिस्तान तथा जम्मू-कश्मीर की समस्या को लेकर सरकार के दृष्टिकोण पर अलग से सोचने की स्थिति खड़ी हो जाती है क्योंकि इस ब्यान पर सरकार और भाजपा की कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया नही आयी है।

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