Friday, 19 September 2025
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ईवीएम अब मुद्दा क्यों नहीं विपक्ष से एक सवाल

लोकसभा चुनावों में विपक्ष को जिस कदर हार मिली है वह अधिकांश के लिये अप्रत्याशित रही है। क्योंकि 2014 के मुकाबले 2019 में परिस्थितियां भाजपा के लिये बहुत आसान नहीं रह गयी थी। 2014 मे किये गये अधिकांश वायदे सरकार पूरे नहीं कर पायी थी फिर इस बार 2014 के मुकाबले विपक्ष ज्यादा संगठित था। नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक फैसलों का प्रभाव भी जनता पर कोई ज्यादा सकारात्मक नही था। लेकिन यह सब होने के बाद भी विपक्ष बुरी तरह हार गया। इस हार का परिणाम हताशा होगा स्वभाविक है परन्तु यह हताशा इतनी आत्मघाती हो जायेगी कि दलों के दलबदल के बाद भी विपक्षी नेतृत्व अपनी चुप्पी से बाहर नही आ रहा है। अधिकांश गैर एनडीए दल इस दलबदल का शिकार हुए हैं। खास तौर पर वह दल जो चुनावों से पहले पूरी मुखरता और आक्रामकता अपनाये हुए थे। इक्कीस दलों ने ईवीएम पर चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक एक बड़ा मुद्दा जनता के सामने खड़ा कर दिया था।
इस मुद्दे पर चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक का जो आचरण रहा है वह भी देश की जनता के सामने रहा है। आज चुनावों के बाद इसी ईवीएम के मुद्दे पर देश के कुछ उच्च न्यायालयों में याचिकाएं दायर और लंबित हैं। इन याचिकाओं में बहुत गंभीरता हैं लेकिन वह राजनीतिक दल जिन्होंने चुनावों से पहले यह मुद्दा उठाया था आज एकदम इस पर खामोश होकर बैठ गये हैं। इनकी इस खामोशी से यह सवाल उठता है कि क्या इनके लिये यह अब कोई मुद्दा नही रह गया है। जबकि शायद आज यह ज्यादा प्रसांगिक हो जाता है। क्योंकि आज चुनाव नही है और इससे सरकार पर कोई असर भी नही पड़ना है लेकिन जब वीवी पैट ईवीएम मशीनों का हिस्सा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से ही बना है और पांच वीवी पैट की गिनती करने का भी शीर्ष अदालत का ही आदेश है। सर्वोच्च न्यायालय ने वी वी पैट गिनती की संख्या बढ़ाने से इसलिये इन्कार किया था कि चुनाव परिणामों में छः दिन की देरी हो जायेगी। वी वी पैट की गिनती ईवीएम से पहले करने को नियमों का हवाला देकर मना किया था। लेकिन इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय मूलतः आधारहीन नही कह सका है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने एक समय 2013 से ईवीएम में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने से पूरी तरह इन्कार कर दिया था लेकिन इसके बाद 2017 मे आयी एक अन्य याचिका में गड़बड़ी की आशंका को स्वीकारते हुए इसमें वीवी पैट का प्रावधान कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि ईवीएम मे छेड़छाड़ की संभावनाओं से इन्कार नही किया जा सकता। इस परिदृश्य में यह एकदम प्रसांगिक हो जाता है कि ईवीएम के मुद्दे को नये सिरे की जनता के बीच ले जाया जाये। फिर अभी चुनाव आयोग आठ पोलिंग बूथों पर ईवीएम और वी वी पैट की गिनती में मिस मैच की आई शिकायतों की जांच कर रहा है। इनमें एक पोलिंग बूथ हिमाचल के सिरमौर जिले का भी है। यहां चुनाव आयोग की विशेषज्ञ टीम ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष यह जांच की है। इस जांच से ई वी एम पर उठने वाले सवालों को स्वतः ही प्रमाणिकता मिल जाती है।
जब जनता के सामने चुनाव के प्रसंग से हटकर इस विषय को रखा जायेगा तो जनता का इस पर समर्थन मिलना आसान हो जायेगा। जनता के सामने जब यह रखा जायेगा कि भविष्य में होने वाले चुनाव में ईवीएम के साथ वीवी पैट की गिनती अनिवार्य कर दी जाये तो जनता इस मांग को गलत करार नही दे पायेगी। सत्तापक्ष को भी इसका विरोध करना आसान नही होगा और तब चुनाव आयोग तथा सर्वोच्च न्यायालय को भी इसे मानना पड़ेगा। जब वी वी पैट की गिनती अनिवार्य हो जायेगी तब ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेेपर का प्रयोग करने की मांग स्वतः ही खत्म हो जायेगी। इस समय जो विभिन्न उच्च न्यायालयों में ईवीएम को लेकर याचिकाएं लंबित चल रही हैं उनकी शीघ्र सुनवाई और फैसले की मांग करना दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा हो जाता है जिसको उठाकर विपक्ष जनता को यह भरोसा दिला सकता है कि उसे जनसरोकारों की चिन्ता है।
आज पूरा विपक्ष जिस तरह से हताश होकर बैठ गया है उससे जनता में उसकी विश्वसीनता पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं और शायद इसी का परिणाम है कि कमजा़ेर बौद्धिकता के लोग दलबदल करने पर आ गये हैं। जबकि इस तरह से विपक्ष का कमजोर होते जाना कालान्तर में लोकतन्त्र के लिये घातक सिद्ध होगा। आज देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। सरकार के आर्थिक फैसलों पर आरबीआई से लेकर सरकार के आर्थिक सलाहकारों के बीच अपने में ही मतभेद उभरने और बाहर आने लग पड़े हैं। सरकार द्वारा विदेशी ब्राॅण्ड जारी करने को लेकर संवद्ध टीम के मतभेद उजागर होने शुरू हो गये हैं। इन आर्थिक और वित्तिय सवालों पर आम आदमी से प्रतिक्रियाओं की उम्मीद करना गलत होगा क्योंकि यह सब उसके बौद्धिक दायरे से बाहर की चीजें हैं। आम आदमी को इसकी कोई जानकारी नही है कि सरकार ने अंबानी जैसे कुछ उद्योगपतियों का 8.5 लाख करोड़ का एनपीए खत्म कर दिया है। इन आर्थिक सवालों पर आम आदमी को जागरूक करना राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी है और इसी से वह आज लगभग पलायन करने लग पड़ा है। इसलिये आज यह आवश्यक हो जाता है कि विपक्ष को उसकी जिम्मेदारी से भागने न दिया जाये। क्योंकि जब किसी सरकार का कर्जा और घाटा उसकी राजस्व आय से बढ़ जाता है और खर्च चलाने के लिये विनिवेश के नाम पर संपतियां बेचने की नौबत आ जाती है तो वह देश के लिये सबसे कठिन दौर होता है। आज भारत उसी दौर से गुजर रहा है। ऐसे में विपक्ष की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि आम आदमी को तो यह सब भोगना है जबकि उसे इस सबकी समझ ही नही है। इसलिये विपक्ष से यह आग्रह है कि वह अपनी भूमिका को समझते हुए चुप्पी से बाहर निकल कर आम आदमी में अपना विश्वास कायम करके एक बड़े संघर्ष की तैयारी करें।

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