इस प्रकरण के इस संक्षिप्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह पूरा मामला सत्ता के दुरूपयोग का एक ऐसा कड़वा सच है जो शायद अब अधिकांश की नीयती बनता जा रहा है। क्योंकि सत्ता का यह घिनौना चेहरा आये दिन किसी न किसी रूप में सामने आता जा रहा है। आरोपी भाजपा का विधायक है और 2018 से गिरफ्तार भी चल रहा है और गिरफ्तारी के बावजूद उसकी सत्ता का डंका बराबर बजता आ रहा है। आज जब इस प्रकरण पर संसद तक में सवाल उठ गया और पार्टी द्वारा इस दंबग के खिलाफ कोई कारवाई नही किये जाने का सच सामने आया तब यह कहा गया कि इसे बहुत पहले ही पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। यह निष्कासन हुआ है या नहीं आज इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो गया है कि इस प्रकरण पर प्रधानमंत्री, पार्टी अध्यक्ष अमितशाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। शायद यह प्रतिक्रिया न आने का ही परिणाम है कि एक मन्त्री का दामाद भी सेंगर की मद्द के लिये हद तक आ गया है। इससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पार्टी में बाहुबलियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। मध्यप्रदेश और, उत्तराखण्ड में भी विधायक बाहुबल का परिचय दे चुके हैं। यदि इस बढ़ते बाहुबल पर समय रहते अंकुश न लगाया गया तो यह पार्टी की सेहत के लिये आने वाले दिनों में घातक होगा। क्योंकि उन्नाव प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गयी है। ऐसा लगता है कि भाजपा पार्टी और सरकार का इस समय एक मात्र लक्ष्य विपक्ष को येनकेन प्रकारेण खत्म करने का ही रह गया है। अब तो यह आम चर्चा का विषय बन गया है कि देश को कांग्रेस मुक्त करवाने के लिये भाजपा को कांग्रेस मुक्त होने से कोई परहेज नहीं रह गया है।
उन्नाव प्रकरण ने जहां व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं वही पर सर्वोच्च न्यायालय को भी सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। पिछले दिनों प्रधान न्यायधीष ने सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री पर सवाल उठाते हुए वहां पर सीबीआई से कुछ लोगों को तैनात करने का कदम उठाया था। जिन आशंकाओं पर यह कदम उठाने की नौबत आयी थी आज उन्नाव प्रकरण ने उन आशंकाओं को और पुख्ता कर दिया है। आज सर्वोच्च न्यायालय ने उन्नाव प्रकरण में 45 दिनों के भीतर ट्रायल पूरा करने के निर्देश दिये हैं यह एक स्वागत योग्य कदम है लेकिन यहीं पर शीर्ष अदालत को यह भी मंथन करने की आवश्यकता है कि उसने बहुत पहले माननीयों के खिलाफ आये मामलों का ट्रायल एक वर्ष के भीतर करने के निर्देश किये हुए हैं। लेकिन इन निर्देशों के बाद यह फीड बैक नही लिया गया कि इन पर अनुपालना कितनी हुई है। पुलिस जांच भी समयबद्ध होने के निर्देश हैं। लेकिन जबतक निर्देशों पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित नही किया जायेगा तब तक कागजा़ें में निर्देश जारी करने का कोई लाभ नही रह जाता है। जिन अधिकारियों को पीड़िता के परिजनों ने पत्र की प्रतियां भेजी थी आज यदि उन सबसे यह पूछा जाये कि उन्होंने इस पर क्या कदम उठाये थे और उचित कदम न उठाने पर उनकों भी दण्डित किया जायेगा तभी एक कड़ा संदेश जा पायेगा अन्यथा यह फिर राहत देने तक ही सीमित होकर रह जायेगा और यह अराजकता बढ़ती ही चली जायेगी।