स्वाईनफ्लू के इन आंकड़ों और आज के कोरोना के आंकड़ों को एक साथ रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वाईनफ्लू की गंभीरता कोरोना से कम नहीं थी। वह भी उतना ही मारक रहा है जितना कोरोना है। लेकिन स्वाईनफ्लू के समय कोई तालाबन्दी नही की गयी थी। कोई कफ्र्यू नही लगाया गया था। क्या उस समय शासन प्रशासन ने स्वाईनफ्लू की गंभीरता का आकलन करने में कोई चूक की थी? क्या 8000 मौतें हो जाने के बाद इसकी भयानकता समझ आयी है? स्वाईनफ्लू के रोगियों का ईलाज और उनकी देखभाल करने वाले डाक्टर तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मी मास्क पहनने, सोशल डिस्टैसिंग रखने तथा सैनेटाईजेशन की अनुपालना करते थे। लेकिन उस समय समाज में इसका भय आज की तरह प्रभावित और प्रसारित नही किया गया था। आज भी बुहत सारे डाक्टर और कई पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह यह कह रहे हैं कि इससे इस तरह आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जिस तरह से तालाबन्दी लागू की गयी और उनकी अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी पुलिस को दी गयी तथा अवेहलना करने वालों के खिलाफ आपराधिक मामले बनाये गये हैं उससे सारी स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि कोई किसी की खुशी और गम में शरीक नही हो पा रहा है। सोशल डिस्टैंसिंग मानसिक डिस्टैसिंग बन गयी है।
24 मार्च को तालाबन्दी घोषित की गयी। उस समय किसी को भी इतना समय नही मिला कि कोई आवश्यक वस्तुएं जुटाकर रख पाता। ‘जो जहां है वह वहीं रहे’ का नियम लागू हो गया। करोडो़ लोग एक झटके में बेकार और बेरोज़गार होकर बैठ गये क्योंकि एक छोटी दुकान से लेकर बड़े से बड़ा कारखाना तक बन्द हो गया। लोगों को खाने का संकट खड़ा हो गया। लोग अपने घरों को वापिस जाना चाहते थे लेकिन अनुमति नही दी गयी। क्योंकि एक दूसरे के साथ मिलने से हर एक के संक्रमित होने का व्यक्तिगत डर बैठ गया था। इसी समय जब दिल्ली के निजा़मुद्दीन मरकज़ में तबलीगी समाज का आयोजन सामने आया तो उससे स्थिति की गंभीरता और बढ़ गयी। इन लोगों को इसका वाहक करार दे दिया गया। आंकडे़ इस ढंग से सामने आये की इन्ही के कारण कोरोना फैल रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे विडियोज़ वायरल हो गये जिनसे पूरा मुस्लिम समाज कटघरे में खड़ा कर दिया गया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं। लेकिन इस सबके वाबजूद देश के लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया। सरकार के दिशा निर्देशों पर कोई एतराज नही उठाया। लेकिन अब जब सरकार ने प्रवासी मजदूरों और छात्रों को अपने घरों अपने राज्यों में लौटने की राहत दे दी तब पहली बार सरकार के फैसले पर सवाल उठे हैं।
तालाबन्दी से करोड़ो लोग प्रभावित हुए हैं। कोरोना की जो वस्तुस्थिति 24 मार्च को थी आज उसमें कोई सुधार नही हुआ है। तालाबन्दी के वाबजूद इसके मामले बढे़े हैं। ईलाज के नाम पर मास्क पहनना, सोशल डिस्टैसिंग रखना, सैनेटाईज़र का उपयोग करने का ही परेहज उपलब्ध है। आज सरकार ने इन मज़दूरों को आने जाने की अनुमति दे दी है लाखों का आना जाना हो भी गया है। एक ही शर्त रखी गयी है कि आने जाने वाले का परीक्षण किया जाये और संगरोधन में रखा जाये। बहुत सारे भाजपा नेताओं ने ही सरकार के इस फैसले पर सवाल भी खडे किये हैं। क्योंकि इतने सारे लोगों का परीक्षण करना और उनको संगरोधन में रख पाना व्यवहारिक रूप से ही संभव नही है। क्योंकि आज देश में परीक्षण के लिये जितने भी उपकरण उपलब्ध है यदि उन सबका इस्तेमाल दिन में तीन शिफ्टों में भी किया जाये तब एक टैस्ट करने में कितना समय लगेगा। इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है फिर अब तक 40% मामले तो ऐसे पाये गये हैं जिनमें प्रत्यक्ष लक्षण रहे ही नही है। इसलिये आज जब इन मजदूरों को आने जाने की अनुमति दे दी गयी है तब इनके संक्रमित होने इनसे संक्रमण फैलने की संभावना नही बनी रहेगी? क्या सरकार को इसका कोई अहसास ही नही हो पाया है या फिर सोच समझ कर यह फैसला लिया गया है। क्या इस फैसले से सरकार स्वयं ही तबलीगी समाज की कतार में ही नही खड़ी हो जाती है। यह सवाल लम्बे समय तक सरकार की नीयत और नीति पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता रहेगा।
अब सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप डाऊनलोड़ करना अनिवार्य कर दिया है। लेकिन इसके डाऊनलोड़ करने से आपका डाटा चोरी होने का डर है यह चेतावनी हिमाचल के डीजीपी ने दी है उन्होने इसको बडे़ सावधानी से डाऊनलोड़ करने की राय दी है। इस ऐप से आपके ऊपर निगरानी रखी जायेगी यह आशंका कांग्रेस नेता राहूल गांधी ने भी व्यक्त की है जिस पर रविशंकर प्रसाद ने कड़ा एतराज उठाया है। लेकिन पिछले दिनों सरकार ने टैलिकाॅम कंपनीयों से मोबाईल कालिंग का रिकार्ड मांगा था। इस पर शायद एयरटेल ने एतराज जताया था कि वह ऐसा किस नियम के तहत कर सकते हैं। उसी दौरान सोशल मीडिया में यह चर्चा उठी थी कि एक ऐसा ऐप तैयार किया जा रहा है जिसके माध्यम से संबंधित व्यक्ति के बारे में सारी जानकारी जुटा ली जायेगी जो एनपीआर के माध्यम से लेने का प्रयास किया जा रहा है। इस चर्चा का कोई खण्डन आज तक आया नही है और यह माना नही जा सकता कि सरकार को इसकी जानकारी न रही हो। आज सरकार ने प्रवासी मज़ूदरों के आने जाने में परीक्षण की शर्त लगाई है। लेकिन जब इसी आग्रह की एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई थी तब उसकी सुनवाई के समय शीर्ष अदालत ने उसे यह कहकर नही सुना था कि इसमें राजनीति की गंध आ रही है। इस पर बहुत सारे हल्कों पर प्रतिक्रियाएं भी उभरी थी क्योंकि इसी याचिका में पीएम केयर फण्ड पर भी सवाल उठाया गया था। आज देश की आर्थिक स्थिति एक प्रलय के मुहाने पर पहंुच गयी है। यह चेतावनी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के आर्थिक सलाहकार रहे अरविन्द सुब्रहमण्यम ने दी है। आरटीआई के माध्यम से यह सामने आ चुका है कि कैसे अब तक 6.60 लाख करोड़ के ऋण बट्टे खाते में डाले जा चुके हैं। इन खुलासों से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब स्वाईनफ्लू के दौर में तालाबन्दी जैसे कदमों की आवश्यकता नही समझी गयी थी तो अब कोरोना के समय क्यों?