Friday, 19 September 2025
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घातक होगा आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन

इस समय देश कोरोना संकट से जूझ रहा है। कोरोना का फैलाव रोकने के लिये पूरे देश में 24 मार्च से लाक डाऊन लागू कर दिया गया था। लाक डाऊन में जो जहां है वह वहीं रहेगा के निर्देश जारी किये गये। इन निर्देशों का पूरी ईमानदारी और सख्ती से पालन किया गया। लाक डाऊन के दौरान हर तरह की छोटी-बड़ी आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह से विराम लग गया था। इस विराम के कारण कई करोड़ लोग बेरोज़गार होकर बैठ गये हैं। करीब दो करोड़ लोगों का तो नियमित रोज़गार छिन गया है। लाक डाऊन के कारण सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव तो मज़दूरों पर पड़ा है। क्योंकि इनका रोज़गार, खत्म होने के साथ ही इन्हे दो वक्त की रोटी मिलना भी कठिन हो गया था। सैंकड़ों लोगों की भूख से जान चली गयी है। इस संकट में यदि समाज सेवी संगठनों और कुछ सरकारों ने इन प्रवासियों के लिये मुफ्त भोजन की व्यवस्था न की होती तो शायद भूख से मरने वालों का आंकड़ा कोरोना के संक्रमितों से कहीं ज्यादा बढ़ जाता। इस संकट ने यह कड़वा सच पूरी नग्नता के साथ देश के सामने रख दिया है कि आज भी देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को यह रोटी नसीब नही है। ऐसे वक्त में जब सरकार आत्मनिर्भर भारत के नाम पर आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके अनाज, दलहन-तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दे तो बहुत सारे सवालों का खड़ा होना स्वभाविक हो जाता है। आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में लाया गया था। इस अधिनियम को लाने से पहले भू सुधारों को अजांम दे दिया गया था। बड़ी जिमिदारी प्रथा समाप्त करके जोत का आकार बढ़ाने, भूस्वामित्व की परिसीमा बांधने तथा लगान को उत्पादन से जोड़ने के प्रयास किये गये थे। इस परिदृश्य में आवश्यक वस्तु अधिनियम लाकर यह सुनिश्चित किया गया था कि आवश्यक खाद्य वस्तुओं का कोई आवश्यकता से अधिक भण्डारण न कर सके। इन वस्तुओं की कीमतें इतनी बढ़ा दे कि इनकी खरीद आम आदमी की पहंुच से बाहर हो जाये। बल्कि इसके बाद सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से इस व्यवस्था को और मजबूत किया गया। सरकार पीडीएस के लिये स्वयं आवश्यक वस्तुओं की खरीद करने लगी ताकि गरीब आदमी को सस्ती दरों पर राशन उपलब्ध करवाया जा सके। किसान को भी नुकसान न हो उसके लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा लायी गयी। लेकिन आज मोदी सरकार ने एक झटके में 1955 से चले आ रहे आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके इन खाद्य पदार्थों को आवश्यक सूची से बाहर कर दिया है। यह संशोधन करके एक देश- एक कृषि बाज़ार का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया है। अब किसान अपनी उपज को कहीं भी अपनी मनचाही कीमत पर बेचने के लिये स्वतन्त्र होगा। इसी के साथ किसान अपनी उपज का किसी भी सीमा तक भण्डारण करने के लिये भी स्वतन्त्र होगा। कीमत और भण्डारण पर सरकार का दखल केवल अकाल, युद्ध, प्राकृतिक आपदा आदि की स्थिति में ही रहेगा। सामान्य स्थितियों में बाजार पूरी तरह स्वतन्त्र रहेगा। किसान की आजतक यह मांग थी कि जब सरकार उसकी उपज का न्यूतम समर्थन मूल्य तय करती है जब यह मूल्य उसकी लागत के अनुरूप होना चाहिये। क्योंकि कृषि के लिये जो उपकरण, खाद और बीज आदि उसको चाहिये होते हैं उनकी कीमतों पर उसका कोई नियन्त्रण नही रहता है। स्वामीनाथन आयोग ने भी इन सारे संवद्ध पक्षों पर विचार करके ही अपनी सिफारिशे सरकार को सौंपी थी। इस आयोग की सिफारिशों पर अमल करने की मांग ही किसान संगठन उठाते रहे हैं बल्कि सरकारों ने जो किसानों के ऋण समय समय पर माफ किये हैं और मोदी सरकार ने भी जो किसान सम्मान राशी देने की पहल की है यह सब स्वमीनाथन आयोग की सिफारिशों का ही अपरोक्ष में प्रतिफल था। लेकिन आज राज्य सरकारों से विचार विमर्श किये बगैर ही जो आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर दिया गया है उससे किसान और उपभोक्ता दोनो का ही भला होने वाला नही है। इस संशोधन के बाद जब किसान के लिये बाजार खुला छोड़ दिया गया है तो सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य क्यों तय करेगी। जब किसान अपनी उपज अपनी मनचाही कीमत पर कहीं भी बेचने या भण्डारण करने के लिये स्वतन्त्रा है तो फिर पीडीएस और मिड-डे-मील जैसी योजनाओं के तहत मंहगी कीमतों पर क्यों खरीद करेगी। इस संशोधन के बाद तो किसान और उपभोक्ता के बीच सरकार की कोई भूमिका ही नहीं रह जायेगी। किसान को अपनी उपज के लिये खरीददार स्वयं खोजना पड़ेगा। यदि बड़ा व्यापारी किसान की कीमत पर उसकी उपज खरीदने के लिये तैयार नही होता है तो किसान कितनी मण्डीयों में जाकर खरीददार की तलाश कर पायेगा। मनचाही कीमत पर उपज न बिकने की सूरत में किसान कितनी देर तक उपज का भण्डारण कर पायेंगे। क्योंकि किसान के पास सुरिक्षत भण्डारण की व्यस्था ही नही है। फिर खाद, बीज और अन्य चीजों के लिये जो उसे तत्काल पैसा चाहिये वह कहां से आयेगा। यह एक ऐसी स्थिति कालान्तरण में बन जायेगी कि किसान व्यापारी के आगे विवश हो जायेगा। दूसरी ओर यदि यह मान लिया जाये कि किसान को अपनी मनचाही कीमत भी मिल जाती है तो स्वभाविक है कि उसकी कीमत मौजूदा कीमत से कम से दोगुणी तो हो ही जायेगी। ऐसी सूरत में इस उपज की कीमत किसान से उपभोक्ता तक पहुंचने में कितने गुणा बढ़ जायेगी। इसका अन्दाजा लगाना कठिन नही है। पिछले दिनों जब प्याज की कीमतों में उछाल आया था तब कितनी परेशानी हुई थी यह सब देख चुके हैं। ऐसे में सरकार गरीब के लिये सस्ता राशन कैसे उपलब्ध करवा पायेगी। खुले बाजार से राशन लेकर सस्ती दरों पर गरीब को कैसे और कितनी देर तक दिया जा सकेगा। खुले बाजार का अर्थ है कि हर उपभोक्ता अपना प्रबन्ध स्वयं करे। खुले बाजार के नाम पर सरकार आसानी से अपनी जिम्मेदारी से बाहर हो जाती है। आज जब अर्थव्यस्था इस मोड़ पर आ खड़ी हुई है कि सरकार को इस बजट में घोषित सारी नयी योजनाएं एक वर्ष के लिये स्थगित करनी पड़ी हैं और करोड़ों लोग बेरोजगार हो कर बैठ गये हैं ऐसे वक्त में यह संशोधन किसान और उपभोक्ता दोनो के लिये घातक सिद्ध होगा।

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