प्रयासों से लोक तन्त्र सुरक्षित रह पायेगा? इसी के साथ यह प्रश्न भी विचारणीय हो गया है कि भाजपा को यह सब करने की आवश्यकता क्यों हो गयी है जबकि केन्द्र में उसकी सरकार को इतना प्रचण्ड बहुमत हासिल है कि किसी भी अन्य दल की उसे आवश्यकता ही नही है। भाजपा के इस प्रयास से पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे पर जो सवाल अब उठ खड़े हुए हैं उन्ही के साथ पूर्व में मणिपुर, गोवा, कनार्टक और मध्यप्रदेश में जो आरोप भाजपा पर लगे थे उन्हे भी अब बल मिल जाता है। राजस्थान के प्रसंग पर जिस तरह की प्रतिक्रियाऐं मायावती जैसे नेताओं की आयी है उससे एक और सवाल खड़ा
हो जाता है कि आज की राजनीति में सिंधिया, पायलट तथा मायावती जैसे नेताओं का स्थान क्या होना चाहिये। इस समय देश महामारी के संकट से गुजर रहा है और इसी संकट के कारण देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है। करोड़ों लोगों का रोजगार खत्म हो गया है। महामारी का संकट और कितना लंबा चलेगा तथा अर्थव्यवस्था पुनः अपने पुराने स्तर पर कब आ पायेगी यह निश्चित रूप से कह पाने में शायद आज कोई नही है। महामारी से ज्यादा उससे पैदा हुआ डर अधिक
नुकसानदेह हो रहा है। जब तक यह डर बना रहेगा तब तक अर्थव्यवस्था में सुधार आने की कल्पना करना भी संभव नही होगा। ऐसे संकटकाल में भी यदि केन्द्र की सरकार किसी राज्य सरकार को धनबल के सहारे गिराने का प्रयास
करे तो किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिये इससे बड़ा और कोई खतरा नही हो सकता है। क्योंकि पिछले कुछ अरसे से सरकार की नीतियों की आलोचना में उठे हर स्वर को देशद्रोह करार देने का चलन शुरू हो गया है।
ऐसा पहली बार हुआ है कि वामपंथी विचारधारा को सीधे राष्ट्र विरोधी करार दे दिया गया है। भीमा कोरेगांव प्रकरण में गिरफ्तार बारबरा राव, प्रो. तेलतुंवडे़ और सुधा भारद्वाज जैसे चिन्तक इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। केन्द्र सरकार के आकलन कहां कहां गलत सिद्ध हुए हैं इसकी नोटबन्दी से लेकर आज कोरोना में लाॅकडाऊन और अनलाॅक के रूप में एक लंबी सूची बन जाती है। इस परिदृश्य में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि आखिर भाजपा यह सब कर क्यों रही है। जबकि अर्थव्यवस्था के नाम पर डिसइन्वैस्टमैन्ट और एफडीआई ही इस सरकार के सबसे बड़े फैसले हैं। इन फैसलों का एक समय तक भाजपा कितना विरोध करती थी इसका प्रमाण स्वदेशी जागरण मंच रहा है जो आज न होने के बराबर होकर रह गया है। दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले देश में यह फैसले कितने लाभादायिक सिद्ध होंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
केन्द्र में भाजपा की सरकार 2014 से है और 2019 के चुनावों में इसे पहले से भी बड़ा बहुमत मिला है। लेकिन इतने बड़े बहुमत के बावजूद मणिपुर, गोवा, कर्नाटक, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बंगाल में भाजपा की सरकारें नही बन पायीं। यह दूसरी बात है कि इसी धनबल के सहारे इनमें से कुछ राज्यों में आज भाजपा सत्ता में है। लेकिन इससे यह अवश्य सामने आता है कि छः वर्षों के शासनकाल में भी भाजपा अपनी वैचारिक स्वीकार्यता नही बना पायी है। चुनावों में चुनाव आयोग और ईवीएम को लेकर जो सवाल चुनाव याचिकाओं के माध्यम से शीर्ष अदालत तक पहुंचे हुए हैं वह अभी तक अनुतरित हैं क्योंकि यह याचिकाएं अभी तक लंबित है। 2014 के चुनावों से पहले अन्ना आन्दोलन आदि के माध्यम से
भ्रष्टाचार और कालेधन के बड़े मुद्दे खड़े किये गये थे उन्हे सरकार और जनता दोनो भूल बैठी है जबकि 1,76,000 करोेड़ के 2जी स्कैम पर मोदी सरकार ही अदालत में यह मान चुकी है कि इसमें आकलन में ही गलती लगी है। अब भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में ही संशोधन कर दिया गया है। अपराध दण्डसंहिता में बदलाव के लिये कमेटी गठित कर दी गयी है। आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके कीमतों और भण्डारण की सीमा पर से सरकार का नियन्त्रण समाप्त कर दिया गया है। अब पर्यावरण अधिनियम में बदलाव का प्रस्ताव तैयार कर दिया गया है। इसमें पर्यावरण से अधिक उद्योगपतियों के
हितों की रक्षा की गयी है। आम आदमी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह सरकार के सरोकार से बाहर हो गया है। इस समय बेरोज़गारी सबसे बड़ा राष्ट्रीय सवाल देश के सामने खड़ा है। सरकार में इस महामारी के दौर में आर्थिक पैकेज के माध्यम से जो राहत आम आदमी को दी है वह तेल की कीमतों और अन्य चीजों में बढ़ौत्तरी करके वसूलनी शुरू कर दी है। जो पैकेज दिया गया है उससे भी ज्यादा पैसा आम आदमी के बैंकों में जमा पंूजी पर देय ब्याज की दरें कम करके इकट्ठा
कर लिया है। इस तरह अगर सही में आकलन किया जाये तो महामारी के माध्यम से भी सरकार ने कालान्तर में कमाई का रास्ता निकाल लिया है। ऐसे में फिर यह सवाल खड़ा रह जाता है कि भाजपा को कांग्रेस की सरकारें तोड़ने की जरूरत क्या है? क्या कांग्रेस संघ- भाजपा के किसी बड़े ऐजैण्डे की राह में कोई बड़ा रोड़ा होने जा रही है। इस समय विपक्ष के नाम पर कांग्रेस के अतिरिक्त और कोई दल कारागर भूमिका में नही रह गया है यह एक व्यवहारिक सच है। इसीलिये भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। इस नारे के पीछे का सच भाजपा की देश को हिन्दु राष्ट्र बनाने की परिकल्पना है। इसका पहला संकेत असम उच्च न्यायालय के न्यायधीश न्यायमूर्ति चैटर्जी द्वारा एक स्वतः संज्ञान मे ली गयी याचिका में दिये फैसले के रूप में सामने आ चुका है। इसमें कहा गया है कि अब भारत को हिन्दुराष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिये और यह काम मोदी जी ही कर सकते हैं। इस संकेत के बाद दूसरा संकेत उस समय सामने आया जब संघ प्रमुख डा. भागवत द्वारा तैयार किये गये भारत के संविधान का प्रारूप सामने आया। शैल यह प्रारूप अपने पाठकों के
सामने भी रख चुका है और इस पर न तो भारत सरकार तथा न ही संघ परिवार की ओर से कोई खण्डन आया है। इस समय हिन्दु राष्ट्र की यह चर्चा कुछ और हल्कों में फिर सुनने को मिल रही है। इसके लिये भाजपा को कुछ और राज्यों में अपनी सरकारें चाहिये। संभव है राजस्थान का प्रयास इसी दिशा में एक कदम था।