Friday, 19 September 2025
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यह विरोध कहीं विद्रोह न बन जाये

सेना में पिछले दो वर्षों से कोई भर्ती नहीं हो पायी है यह इसलिये नहीं हो पाया है क्योंकि वर्ष 2020 को 2021 में देश कोरोना के कारण लॉकडाउन में था। लेकिन इसी दौरान कुछ राज्यों में विधानसभा के लिये चुनाव हुये हैं। लोकसभा के लिये उपचुनाव भी हुये। सरकार चुनावों का प्रबंध तो कर पायी लेकिन सरकार के विभिन्न विभागों में खाली पड़े करीब 62 लाख पदों को भरने का उपक्रम नहीं कर पायी। अकेले सेना में ही दो लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। जबकि 2014 और 2019 के चुनाव के दौरान यह वादा किया गया था कि 2 करोड पद सृजीत करके भरे जायेंगे। लेकिन यह वादा केवल जुमला होकर ही रह गया। सेना में भर्तियां न हो पाने के कारण लाखों युवा इसके लिये ओवरेज भी हो गये हैं। सेना में प्रतिवर्ष 50,000 से ज्यादा सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेना की व्यवहारिक स्थिति क्या होगी। कई युवा तो ग्राउंड और लिखित टेस्ट क्लियर करने के बाद मेडिकल के लिये काल आने की प्रतीक्षा में थे। लेकिन जब 14 जून को अग्निपथ योजना अधिसूचित हुई और यह कहा गया कि अब इस योजना के तहत छयालीस हजार अग्निवीर भर्ती होंगे और उनका कार्यकाल केवल चार वर्ष का होगा तथा उनमें से 75% को सेवानिवृत्ति करके घर भेज दिया जायेगा। इसका असर उन युवाओं पर क्या हुआ होगा जो सेना में अपना भविष्य देख रहे थे। यह योजना आते ही उनके आगे अंधेरा छा जाना स्वभाविक था। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि आज सरकार सेना में भी स्थाई रोजगार दे पाने की स्थिति में नहीं रह गई है। हिमाचल में ही सेना नौकरी का कितना बड़ा साधन है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि सेना भर्ती तुरंत चालू की जाये।
जो सरकार सेना में भी नियमित नौकरी देने की स्थिति में न हो क्या उसकी नीयत और नीति दोनों पर ही प्रश्न नहीं उठाये जाने चाहिये? आज सेना में स्थायी रोजगार पाने की उम्मीद में बैठे लोगों को अग्निपथ योजना का विरोध करने के लिये किसी योजनाबद्ध तरीके से किसी नेतृत्व के तहत संगठित नहीं होना पड़ा है। 14 तारीख को योजना अधिसूचित होती है और 15 को प्रधानमंत्री के धर्मशाला आने पर उनके स्वागत में लगाये गये बैनर,पोस्टर, होल्डिंग विरोध से फाड़ दिये जाते हैं। पुलिस को आक्रोशित युवाओं को रोकने के लिए बल प्रयोग करना पड़ता है। यह गुस्सा स्वभाविक और घोर निराशा का स्वतः प्रमाण था। इस आक्रोश के समझने की यह किसी राजनीतिक दल के नाम लगाने से हल होने या रुकने वाला मामला है। यह सवाल आज हर जुबान पर हैं कि आखिर रोजगार खत्म कैसे हो गया? इसका जवाब प्रधानमंत्री से लेकर बूथ पालक तक को देना होगा की रोजगार पैदा करने वाले हर अदारे को प्राइवेट सैक्टर के हवाले क्यों कर दिया गया? यह भी जवाब देना पड़ेगा कि लॉकडाउन में पहला फैसला मजदूर का हड़ताल का अधिकार छीनने का क्यों लिया गया? यह भी बताना होगा कि लॉकडाउन और हड़ताल का अधिकार समाप्त करके उद्योगों में रोबोट संस्कृति लाकर हाथों को बेकार क्यों किया गया? किसान को कमजोर करने के फैसले के बाद जवान को कमजोर करने का यह फैसला क्यों लिया गया?
अग्निपथ योजना की जिस तरह और तर्क से एक वर्ग वकालत करने पर उतर आया है उससे 2019 में सैनिक स्कूलों को प्राइवेट सैक्टर को देने के फैसले पर ध्यान जाना स्वभाविक है। क्योंकि आज सैनिक स्कूलों के संचालन में आरएसएस का नाम सबसे प्रमुख है। विद्या भारती के माध्यम से इनका संचालन किया जा रहा है। इससे यह सवाल उठने लग पड़ा है कि क्या देश की सेना भी संघ की विचारधारा के अनुरूप बनाने की योजना का यह अग्निपथ पहला चरण तो नहीं है। अग्निपथ के साथ ही देश में पेट्रोल डीजल का संकट खड़ा होने लग गया है। इसी संकट के साथ खाद्यानों की कीमतें बढ़ना शुरू हो गया है। लेकिन प्रधानमंत्री इस सब पर खामोश हैं। वह 2047 तक की योजनायें देश के मुख्य सचिवों के साथ बनाने में व्यस्त हैं। ऐसे में क्या देश दूसरे जे.पी. आंदोलन की ओर बढ़ रहा है जिसका नेतृत्व यह आक्रोशित युवा करेगा। क्योंकि दूसरे नेतृत्व के लिये आयकर, ईडी, सीबीआई और एन आई ए जैसी कई एजेंसियां खड़ी है। लेकिन नौकरी की उम्मीद में बेरोजगार बैठे इस आक्रोशित युवा को यह एजेंसीयां नहीं रोक पायेंगी

 

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