Friday, 19 September 2025
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अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों के नाम पर महंगाई कब तक

आरबीआई ने मुद्रास्फीति दर निर्धारण पैनल के फैसले के बाद बैंकों को दिये जाने वाले कर्ज की ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। रिजर्व बैंक को पिछले कुछ अरसे में ऐसा चौथी बार करना पड़ा है। आरबीआई का कहना है कि उसे ऐसा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के परिदृश्य में करना पड़ा है। बैंकों को दिये जाने वाले कर्ज की ब्याज दरें बढ़ाने का अर्थ है कि अभी महंगाई और बढ़ेगी यह दरें बढ़ाये जाने के साथ ही यह भी कहा गया कि प्राकृतिक गैस का रेट बढ़ गया है और इसका प्रभाव यह हुआ है कि सी एन जी ने अपने दामों में 40% की वृद्धि कर दी। आरबीआई ने यह स्पष्ट नहीं किया कि भविष्य में ऐसा कब तक चलेगा। यह दरें बढ़ने के साथ ही विकास दर का आकलन भी नीचे आ गया है। महंगाई बढ़ने के कारण ही केंद्र सरकार ने 80 करोड लोगों को दिये जाने वाले मुफ्त अनाज की समय सीमा भी इस वर्ष के अंत से आगे बढ़ाने में असमर्थता जाहिर कर दी है। इस वर्ष तक भी बढ़ौतरी हिमाचल और गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के कारण हो पायी है। अगले वर्ष 80 करोड़ लोगों को अनाज खरीदना भी कठिन हो जायेगा यह स्पष्ट है। जब महंगाई बढ़ती है तो उसी अनुपात में बेरोजगारी भी बढ़ती है यह सामान्य सिद्धांत है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का तर्क देकर आम आदमी को इस बढ़ती महंगाई पर सवाल पूछने से रोका जा सकेगा? कितनी बार अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का तर्क देकर महंगाई और बेरोजगारी परोसी जाती रहेगी? क्योंकि नोटबंदी से लेकर आज तक देश की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर होती गयी है लेकिन सरकार की नीतियों पर सवाल नही उठने दिये गये। आज यह सामने आ चुका है कि 9 लाख करोड़ मूल्य के 2000 के नोट गायब हैं। परन्तु इस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है इसका कोई जवाब नहीं आया है। 2014 के बाद से हर तरह के बैंक जमा पर ब्याज दरें क्यों कम होती गयी हैं? आज जो बैंक हर सेवा का शुल्क ग्राहक से वसूल रहे हैं तो फिर जमा पर ब्याज दरें कम करने की नौबत क्यों आयी? जीरो बैलेन्स के नाम पर खोले गये जनधन के खातों पर न्यूनतम बैलेन्स की शर्त लगाकर जुर्माना लगाने का फैसला क्यों लिया गया? आज जो न्यूनतम बैलेन्स के नाम पर आम आदमी का 500 और 1000 रुपए के रूप में हजारों करोड़ों का बैंकों और डाकघरों में उस पर क्या दिया जा रहा है? बड़े कर्जदारों का लाखों करोड बट्टे खाते में डाल दिया गया। नीरव मोदी जैसे कितने लोग बैंकों का हजारों करोड लेकर भाग गये हैं लेकिन उनको वापस लाने और उनसे वसूली के सारे प्रयास असफल क्यों होते जा रहे हैं? क्या यह लाखों करोड़ देश का इस तरह लूटने से बचा लिया जाता तो इससे आरबीआई को यह फैसले न लेने पड़ते।
आज सरकार को यह जवाब देना होगा कि 2022-23 के बजट में ग्रामीण विकास के आवंटन में 38% की कटौती क्यों की गयी थी? क्या इसी के कारण आज मनरेगा में कोई पैसा गांव में नहीं पहुंच पा रहा है। पीडीएस के बजट में भी भारी कटौती की गयी थी और उसी कारण से आज 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन देने का संकट आ रहा है। बजट में यह कटौती तो उस समय कर दी गयी थी जब रूस और यूक्रेन में युद्ध की कोई संभावनाएं तक नहीं थी। इसलिए आज बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के परिदृश्य में सरकार की नीयत और नीति पर खुली बहस की आवश्यकता हो जाती है।

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