Friday, 19 September 2025
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क्या नोटबंदी सही फैसला था?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवम्बर 2016 को देर शाम देश की जनता को नोटबंदी का फैसला सुनाया था। प्रधानमंत्री के देश के नाम इस आश्य के संबोधन के साथ ही 500 और 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गये थे। पुराने नोटों को नये नोटों से बदलने में कितना समय लगा? इसके लिये व्यवहारिक तौर पर कितनी परेशानी उठानी पड़ी थी यह सब ने भोगा है। नोटबंदी से कारोबार प्रभावित हुआ है यह भी हर आदमी जानता है। नोटबंदी के बाद रियल स्टेट और ऑटोमोबाईल क्षेत्रों को कितने पैकेज देने पड़े हैं यह भी सब जानते हैं। नोटबंदी क्या आवश्यक थी? नोटबंदी का देश की आर्थिकी पर क्या प्रभाव पड़ा है? नोटबंदी घोषित करते समय इसके जो उद्देश्य गिनाये गये थे क्या वह पूरे हुए हैं? नोटबंदी से कितना कालाधन खत्म हुआ है? क्या नोटबंदी से आतंकवाद की कमर सही में टूट गयी है? क्या नोटबंदी के बाद जाली नोट छपने बन्द हो गये हैं। क्या नोटबंदी मोदी सरकार का सामूहिक फैसला था या कुछ लोगों का फैसला था? यह ऐसे सवाल हैं जिन पर आज तक सार्वजनिक रूप से कोई चर्चा सामने नहीं आयी है? शीर्ष अदालत तक इस पर खामोश रही है। सत्ता पक्ष के लाल कृष्ण आडवाणी और डॉ.मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेता भी इस अहम मुद्दे पर खामोश रहे हैं। बल्कि नोटबंदी के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नाम पर जितना जन समर्थन भाजपा को मिला है उससे यही सन्देश गया है कि जनता ने मोदी की नीतियों पर अपने समर्थन की मुहर लगा दी है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि जनता नोटबंदी को आज एक काला अध्याय मानकर भूल भी चुकी है। लेकिन इस सब के साथ यह भी उतना ही कड़वा सच है कि नोटबंदी से जो आर्थिकी पटरी पर से उतरी है वह आज तक संभल नहीं पायी है। प्रधानमंत्री ने नोटबंदी से होने वाली तात्कालिक कठिनाइयां झेलने के लिये जो समय मांगा था वह देश की जनता ने उन्हें दिया लेकिन प्रधानमंत्री आज तक जनता को यह नहीं बता पाये हैं कि उनकी ही नजर में यह फैसला कितना सही था। किन आकलनों के आधार पर यह फैसला लिया गया था। नोटबंदी आज से छः वर्ष पहले लागू हुई थी और छः वर्ष का कालखण्ड इस फैसले का गुण दोष के आधार पर आकलन करने के लिये बहुत पर्याप्त समय हो जाता है। नोटबंदी मोदी कार्यकाल का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला रहा है। इस फैसले को लेकर करीब पांच दर्जन याचिकाएं सर्वाेच्च न्यायालय में आ चुकी हैं। इन याचिकाओं पर 12 अक्तूबर से शीर्ष अदालत की पांच जजों पर आधारित खण्डपीठ सुनवाई करने जा रही है। नोटबंदी पर जो भी फैसला आता है उसका असर बीत चुके समय पर तो कोई नहीं होगा। लेकिन इस फैसले का प्रभाव भविष्य में लिये जाने वाले फैसलों पर अवश्य पड़ेगा। इस समय महंगाई और बेरोजगारी पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ कर अपने चरम पर पहुंच चुकी है। इस पर नियन्त्रण लगाने की सारी संभावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं। यह सब इस दौरान के लिये गये आर्थिक फैसलों का परिणाम है। आर्थिक फैसलों का गुण दोष के आधार पर कोई आकलन हो नहीं पाया है। क्योंकि हर फैसले के समानान्तर कुछ न कुछ धर्म एवं जाति पर आधारित घटता रहा है। आवाज उठाने वालों के खिलाफ जांच एजैन्सियों की सक्रियता बढ़ती चली गयी। विरोध के स्वरों को देशद्रोह के नाम पर दबाया जाता रहा है। लेकिन अब जब राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले तो इस यात्रा ने संघ प्रमुख डॉ.मोहन भागवत को भी मस्जिद और मदरसे की चौखट पर पहुंचा दिया है। डॉ.भागवत भी यह ब्यान देने पर बाध्य हो गये कि राहुल गांधी को हल्के से न लिया जाये वह भविष्य का नेता है। इस परिदृश्य में जब नोटबंदी जैसे मुद्दे पर कोई बहस सुप्रीम कोर्ट की चौखट से निकालकर सड़क तक आयेगी तो निश्चित है कि और कई स्वरों को मुखर होने का माध्यम मिल जायेगा जिसके परिणाम महत्वपूर्ण होंगे।

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