Friday, 19 September 2025
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क्या छापेमारी और गिरफ्तारी से कांग्रेस का बढ़ना रोक पाएंगे मोदी

अदानी प्रकरण से विश्व का शेयर बाजार भी हिल गया है। विदेशी निवेशकों ने इसमें से अपना निवेश निकालना शुरू कर दिया है। विदेशी बैंकों ने अदानी समूह के शेयरों पर कर्ज देना बन्द कर दिया। जो व्यक्ति अमीरों की सूची में 609 वें स्थान से उठकर विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया था वह अब हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद शायद 27 वें पायदान पर आ पहुंचा है। देश के हर बड़े सार्वजनिक प्रतिष्ठान का प्रबन्धन अदानी समूह के पास कैसे पहुंचा? जो देश का नम्बर एक और विश्व का दूसरा बड़ा अमीर हो लेकिन टैक्स अदा करने वाले पहले पन्द्रह की सूची में भी न हो तो ऐसे करिश्मे को लेकर सवाल उठना स्वभाविक है। यह सवाल संसद के पटल पर आ चुके हैं। इन सवालों का जवाब देश की सरकार और देश की निगरान एजैन्सीयों से पूछा जाना है। संसद के अन्दर यह काम विपक्ष को करना है और बाहर मीडिया को करना है। जो लोग हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट को देश और अदानी पर हमला करार दे रहे हैं उनसे एक ही सवाल पूछा जाना चाहिये कि क्या देश के बैंकों और एलआईसी जैसी संस्थाओं के पास आम आदमी का पैसा जमा नही है? आम आदमी के इस जमा पर ब्याज दरें क्यों कम हुई हैं? जीरो बैलेन्स के नाम पर खोलें खातों पर न्यूनतम जमा की शर्त क्यों लगानी पड़ी। बैंक की सेवाएं फीस के दायरे में क्यों आ गयी? नोटबन्दी के बाद रियल एस्टेट और ऑटोमोबाईल क्षेत्रों को आर्थिक पैकेज क्यों दिये गये? क्या वह पैसा वापस आ गया है? मोदी सरकार ने जितना सहयोग अदानी समूह को दिया है ऐसा ही सहयोग और कितने घरानों को मिला है। जब देश बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है तो प्रति व्यक्ति कर्ज क्यों बढ़ रहा है? महंगाई और बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है। हर चुनाव में नये ही नारे क्यों उछालने पड़ रहे हैं पूरानों का हिसाब जनता के सामने क्यों नहीं रखा जाता।
ऐसे दर्जनों सवाल हैं जो आज हर आदमी के जहन में कौंध रहे हैं। क्योंकि वह इनका भुक्त भोगी है। उसकी विडण्बना यही है कि वह स्वयं व्यवस्था से सवाल नही पूछ पाता। वह उम्मीद करता है कि मीडिया और राजनीतिक नेतृत्व यह सवाल पूछे। आज मीडिया का एक बड़ा वर्ग यह सवाल पूछने का साहस नहीं कर रहा है और इसलिये गोदी मीडिया के संबोधन से संबोधित हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग अपने अपने सामर्थय के अनुसार सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं। भले ही उनके खिलाफ देशद्रोह और अन्य तरह के मामले बनाये जा रहे हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं की भी यही स्थिति चल रही है। जो सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं उनके खिलाफ जांच एजैन्सीयों की छापेमारी हो रही है। उनके नेताओं के खिलाफ मामले बनाकर उन्हें हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं के यहां छापेमारी और उसके बाद पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा की दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तारी असहनशीलता के प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रधानमंत्री तो ममता बैनर्जी को ‘‘ओ दी दी ओ दी दी’’ करके सार्वजनिक मंच से संबोधित कर सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री के खिलाफ गौतम अदानी को लेकर कोई कटाक्ष सहन नही किया जा सकता। इस मानसिकता और गिरफ्तारी के प्रसंग ने बहुत सारे पुराने संदर्भों को जिन्दा करके पुरानों की सहनशीलता और नयों की असहनशीलता को एकदम फिर से चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है।
यह सब अदानी समूह पर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और उससे पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को लेकर बनी नयी जन धारणा का परिणाम माना जा रहा है। जिस राहुल गांधी के चरित्र हनन के लिये अरबों खर्च किये गये थे आज इस यात्रा के बाद वही राहुल व्यक्तिगत स्तर पर मोदी से बड़ा नाम बन गया है। भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को लेकर फैलायी गयी सारी भ्रान्तियों को जड़ से उखाड़ फैंका है। समाज के हर वर्ग तक राहुल गांधी पहुंच गया है यह एक स्थापित सच्च है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी अदानी समूह पर हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और उसके साथ बीबीसी और गॉर्जियन के खुलासों से समाज के हर वर्ग के सवालों के दायरे में आ गये हैं। अगली चुनावी जंग मोदी बनाम राहुल होने जा रही है। क्योंकि आज पूरे देश में कांग्रेस को छोड़कर ऐसा कोई दूसरा राजनीतिक दल नहीं है जिसकी पहचान देश के हर गांव तक हो। न चाहते हुए भी क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के साथ खड़े होना होगा। अन्यथा अपने-अपने राज्य से बाहर केन्द्र की सरकार को लेकर सबकी स्थिति दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसी होगी। आप लोकसभा के दोनों चुनावों में दिल्ली में कोई भी सीट क्यों नहीं जीत पायी? क्योंकि केन्द्र के लिये मोदी विकल्प थे। आज मोदी बनाम राहुल की अगली लड़ाई में क्षेत्रीय दलों के लिये यह सबसे बड़ा सवाल होगा। आज कांग्रेस को विपक्षी एकता से ज्यादा राज्यों में कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व को पूरी कड़ाई के साथ सुधारना होगा या एक तरफ करना होगा।

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