Thursday, 18 September 2025
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नीति आयोग का बहिष्कार क्यों?

नीति आयोग का गठन केन्द्र सरकार ने 2015 में योजना आयोग के पूरक के रूप में किया है। भारत सरकार का यह सर्वाेच्च सार्वजनिक नीति थिंक टैंक है। यह संस्थान भारत की राज्य सरकारों को इसमें शामिल करके आर्थिक विकास और सरकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिये काम करता है। इसके उद्देश्य में सात वर्षीय विभिन्न रणनीति, पन्द्रह वर्षीय रोड मैप और कार्य योजना, अमृत डिजिटल इंडिया, अटल इन्नोवेशन मिशन और चिकित्सा शिक्षा सुधार और कृषि सुधार शामिल हैं। प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र शासित राज्यों के उप-राज्यपाल तथा कुछ विषय विशेषज्ञ इसके सदस्य हैं। अभी केन्द्र का बजट आने के बाद नीति आयोग की बैठक बुलाई गयी थी। कांग्रेस समेत विपक्ष ने इस बैठक के बहिष्कार का फैसला लिया क्योंकि बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश को नामत कुछ आर्थिक आबंटन हुआ है। बाकी राज्यों को नामत कोई आबंटन न होने से बहिष्कार का फैसला लिया गया। लेकिन ममता इस फैसले के बावजूद बैठक में शामिल हुई और बीच में ही उठकर चली गयी। यह आरोप लगाया कि उन्हें बोलने का पूरा मौका नहीं दिया गया। विपक्ष ने सामूहिक रूप से समय न दिये जाने की निंदा की है। परन्तु कांग्रेस के ही अधीरंजन ने ममता को झूठी करार दे दिया। इसी तरह हिमाचल के मुख्यमंत्री भी बजट से पहले दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री से मिले थे। इन मुलाकातों में प्रदेश के लिये आर्थिक सहायता की मांगे रखी गयी थी। इन मुलाकातों के बाद बजट आया है। केंद्रीय राज्य मंत्री ने शिमला में एक पत्रकार वार्ता में खुलासा किया है कि केंद्रीय बजट में प्रदेश को 13351 करोड़ मिले हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों, सूरंगों और रेलवे विस्तार के लिये प्रदेश को एक मिले आबंटन की डिटेल रखी गयी है। केंद्रीय राज्य मंत्री के दावे के मुख्य मन्त्री के प्रधान सलाहकार मीडिया ने रश्मि तौर पर सवाल उठाये हैं। मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के राष्ट्रीय फैसले के तहत नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार किया है। लेकिन इसी मुख्यमुत्री ने कॉमनवेल्थ मीट के अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा आयोजित भोज में शिरकत की थी जबकि कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री इसमें शामिल नहीं हुये थे। तब इस शामिल होने को प्रदेश हित करार दिया गया था। निश्चित तौर पर नीति आयोग की बैठक का आयोजन भोज के आयोजन से प्रदेश हित में एक बड़ा अवसर था। प्रदेश के भविष्य का सवाल था। इस बैठक में शामिल होकर प्रदेश की वित्तीय स्थिति का सर्वाेच्च नीति थिंक टैंक के फोरम पर आधिकारिक तौर पर विवरण रखा जा सकता था लेकिन ऐसा हो नहीं सका। नीति आयोग योजना आयोग के पूरक के रूप में एक सर्वाेच्च नीति निर्धारण मंच है। इस मंच पर प्रदेश की समस्याओं का आधिकारिक रूप से रखा जाना आवश्यक था। क्योंकि सुक्खू सरकार को सत्ता में आये डेढ़ वर्ष का समय हो गया है। विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदेश की जनता को दस गारंटीयां दी गया थी। यह गारंटीयां देते हुये कोई किन्तु-परन्तु नहीं लगाये गये थे। सरकार के गठन के साथ ही मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों और उसके बाद कैबिनेट रैंक में सलाहकारों और विशेष कार्य अधिकारियों की नियुक्ति कुछ ऐसे फैसले रहे हैं जिनसे यह कतई संदेश नहीं जाता कि प्रदेश में वित्तीय संकट है। लेकिन आज जिस तरह से जनता को पहले से मिले आर्थिक लाभों पर कैंची चलाई जा रही है उससे यह संदेश गया है कि सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही हैं। लेकिन अब तक के कार्यकाल में ही जितना कर्ज ले लिया गया है उस गति से कार्यकाल के अन्त तक यह आंकड़ा पूर्व सरकारों द्वारा लियेे गये कर्ज के आंकड़े से भी बढ़ जायेगा। इसलिये आज कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बनने के लिये अपनी सोच और कार्यशैली दोनों पर पुनःविचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि इस समय कांग्रेस की राज्य सरकारों की परफॉरमैन्स पर जनता अपना एक स्पष्ट मत बना पायेगी। क्योंकि इस समय हिमाचल की सरकार की कार्य प्रणाली से यह संदेश नहीं जा पा रहा है कि कांग्रेस एक बेहतर विकल्प हो सकता है। नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार वास्तविक रूप से भगाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

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