इस समय स्थिति यहां पहुंच गयी है की कर्ज लेकर कब तक गुजारा किया जा सकता है। जब कर्ज लेने की सीमा पूरी हो जायेगी तब क्या किया जायेगा? जो कर्ज अब तक लिया गया है उसका निवेश कहां हुआ है? जब विधानसभा में पारित बजट के अनुसार वर्ष 10783.87 करोड़ के घाटे से बन्द हो रहा था तो फिर इससे अधिक कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी? क्या बजट आकलनों में कोई गड़बड़ हो गयी है? क्योंकि आम जनता की जेब पर भार डालकर ज्यादा समय तक चला नहीं जा सकता। आज आम आदमी इस बात पर नजर जमाये हुये हैं कि सरकार अपने खर्चों में कब और क्या कटौती करती है। यदि सरकार के अपने खर्चों में कोई कटौती न हुई तो इससे सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा।
यदि यह मान लिया जाये कि पूर्ववर्ती सरकारों ने जो योजनाएं बनायी है और कर्ज लिया जिसके चलते आज स्थिति यहां तक पहुंच गयी है तो उस पर भी एक खुली बहस होनी चाहिए। यदि पूर्व का प्रबंधन वर्तमान स्थितियों के लिए जिम्मेदार है तो आज का प्रबंधन तो कहीं चर्चा में ठहरता ही नहीं है। क्योंकि मित्रों की सरकार का तमगा इसी सरकार के नाम लगा है। मित्रों को जितने कैबिनेट रैंक इस सरकार ने बांटे हैं इतने पहले नहीं बंटे हैं। बल्कि सरकार के खर्चों से यह लगता ही नहीं की प्रदेश में कोई वित्तीय संकट है। यह तो मुख्यमंत्री द्वारा सदन में यह जानकारी रखने से की दो माह के लिए मंत्रियों के वेतन भत्ते विलंबित किए जा रहे हैं वितीय संकट रिकॉर्ड पर आया है। वैसे तो यह जानकारी सदन में रखने के बाद मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि कोई संकट नहीं है यह फैसला व्यवस्था सुधारने के लिये लिया गया है। इस परिदृश्य में यह सवाल और रोचक हो जाता है कि क्या ऐसे फैसलों से सही में व्यवस्था सुधर जायेगी? जब कोई वित्तीय प्रबंधन किन्ही कारणों से बिगड़ जाता है तो हर आदमी ऐसी स्थिति का आकलन अपनी अपनी समझ के अनुसार करने लग जाता है। सरकार के फैसलों की तात्कालिक व्यवहारिकता चिंतन का विषय बन जाती है।
इस सरकार ने युवाओं को सौर ऊर्जा ईकाईयां स्थापित करने के लिए बड़ी योजना घोषित की थी जिसके कोई परिणाम अब तक सामने नहीं आये हैं। नए उद्योग आने की जगह पुराने पलायन करने पर आ गये हैं। जिस तरह से दो व्यावसायिक परिसर ग्यारह-ग्यारह मंजिल के शिमला में स्थापित किये जाने का फैसला लिया गया है उससे कितनी राजस्व आय होगी इसका कोई आकलन सामने नहीं आया है। उल्टे पर्यावरण को लेकर सवाल खड़े होने लग गये हैं। सरकार की ऐसी योजना सामने नहीं आयी है जिससे इसी कार्यकाल में राजस्व में बढ़ौतरी देखने को मिल जायेगी। लेकिन सारी योजनाओं पर अपने हिस्से के निवेश के लिये कर्ज जरूर खड़ा हो जायेगा। भविष्य के लिए वर्तमान को किस हद तक गिरवी रखा जाना चाहिए यह सवाल सार्वजनिक बहस की मांग करता है। इस समय वित्तीय संकट से निपटने के लिये सबसे सरल रास्ता है कि सरकार अपनी लाखों कनाल उस जमीन को लूट से बचाये जो उस सीलिंग एक्ट के तहत मिली है। अकेले नादौन में ही एक लाख कनाल से अधिक की सरकारी जमीन लूट का शिकार बनी हुई है। सर्वाेच्च न्यायालय में स्व. इन्द्र सिंह ठाकुर द्वारा दायर एक मामले में एक समय प्रदेश सरकार ने स्वीकारा है कि उसके पास तीन लाख बीघे जमीन लैण्ड सीलिंग एक्ट में आयी है। लेकिन यह जमीन कहां है और इसका क्या उपयोग हो रहा है इसकी कोई जानकारी सरकार के पास नहीं है। यदि सरकार अपनी इन जमीनों को ही लूट से बचा ले तो शायद वह एक मुश्त कर्ज से छूट जाये। सरकारी जमीनों को यदि लूट से बचा लिया जाये तो प्रदेश का भविष्य सुरक्षित हो सकता है।