Thursday, 18 September 2025
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ईवीएम पर उठते सवाल और कांग्रेस की विश्वसनीयता

कांग्रेस हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के लिए ईवीएम मशीनों पर भी दोष डाल रही है। इस बार जो आरोप इन मशीनों पर लगाया जा रहा है वह शायद पहले नहीं लगा है। कुछ विधानसभा क्षेत्रों के कुछ मतगणना केन्द्रों में वोटो की गिनती में ऐसी मशीन सामने आयी हैं जिनकी बैटरी 99 प्रतिशत तक चार्ज थी। जबकि औसत मशीनों की बैटरी 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत थी। ऐसा 20 विधानसभा क्षेत्रों में होने का आरोप है। इसी के साथ चुनावी डाटा भी देर से साइट पर लोड करने का आरोप है। इसी डाटा के कारण तेरह लाख वोट बढ़ गये हैं। चुनाव आयोग से भी यह शिकायतें की गयी है और आयोग ने इन्हें खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस आश्य की याचिका दायर करके 20 विधानसभा क्षेत्रों की ईवीएम मशीने सील करने का आग्रह करके इन क्षेत्रों में पुनः चुनाव की मांग की गयी है। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को सुनवाई के लिये स्वीकार करता है या खारिज कर देता है यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। लेकिन चुनाव आयोग इन आरोपों को आसानी से स्वीकार नहीं करेगा और इन चुनावों के इससे प्रभावित होने की संभावना बहुत कम है। ईवीएम पर शुरू से आरोप उठते आये हैं। सबसे पहले इस पर भाजपा ने ही सन्देह जताया था। लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये। इस पर एक पुस्तिका तक छापी गयी थी। हर विपक्ष हारने के बाद ईवीएम पर सवाल उठाता आया है। लेकिन सत्ता में आने पर इसका पक्षधर बनता आया है। उन्नीस लाख ईवीएम मशीनों का रिकॉर्ड में गायब होने की जानकारी आरटीआई के माध्यम से सामने आ चुकी है। लेकिन इन मशीनों के गायब होने को किसी भी राजनीतिक दल ने अभी तक मुद्दा नहीं बनाया है। इसी से राजनीतिक दलों की मानसिकता स्पष्ट हो जाती है। यहां पर चुनाव हारने के बाद ईवीएम अपनी असफलता उस पर डालने का माध्यम मात्र होकर रह गया है। जबकि विदेशों में ईवीएम पर उठते सवालों के कारण बहुत देश चुनाव में मत पत्रों पर आ गये हैं। हरियाणा में राहुल गांधी की रैलियों में कितनी भीड़ होती थी और प्रधानमंत्री के लिये कितने लोग आते थे यह चुनावी रैलियां में देश देख चुका है। इसी से सारे चुनाव पूर्व के आकलन में कांग्रेस की भारी जीत मानी जा रही थी। आज तक ईवीएम पर उठे सवालों के कारण एक भी चुनाव क्षेत्र का चुनाव रद्द नहीं हो पाया है। जबकि ईवीएम पर सवाल उठना अपने में एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। अब आम आदमी भी ईवीएम को सन्देह की नजरों से देखने लग पड़ा है। दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के सदन में ईवीएम हैक करके दिखा दी गयी थी। लेकिन जिसने यह करके दिखाया था उसका बाद में क्या हुआ और यह मुद्दा कहां गायब हो गया कोई नहीं जानता। स्वयं अरविंद केजरीवाल ने भी सदन के बाहर इसे जन मुद्दा नहीं बनाया और केजरीवाल ने ऐसा क्यों किया इसका कोई जवाब भी सामने नहीं आया है। ईवीएम पर उठते सवालों से चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की नैतिकता पर कहीं चोट नहीं आती है। ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस से विनम्र आग्रह हैं कि यदि ईवीएम पर उठते सवालों से आप स्वयं में संतुष्ट है तो एक बार इस मुद्दे को जन मुद्दा बनाकर सड़कों पर उतरने का साहस करो। एक चुनाव का हर राज्य और केंद्र में बहिष्कार कर देने का साहस दिखाओ पता चल जायेगा कि चुनाव आयोग और केंद्र सरकार कांग्रेस के बहिष्कार के बाद ईवीएम से चुनाव करवाने का साहस दिखाते हैं या नहीं। यदि ईवीएम को मुद्दा बनाकर चुनाव बहिष्कार का साहस नहीं है तो फिर ईवीएम पर सवाल उठाने छोड़कर कांग्रेस में विश्वसनीय नेतृत्व राज्यों में लाने का प्रयास करें। इस समय कांग्रेस की सरकारें जिन राज्यों में हैं वहां पर सरकारों की परफॉरमैन्स का ईमानदारी से फीडबैक ले। देखे की गिनती सरकारें जन अपेक्षाओं और अपने ही चुनावी वायदों के आईने में खरा उतर रही है। हिमाचल में जिस तरह से सरकार चल रही है उससे राज्यों के नेतृत्व के बजाये केंद्रीय नेतृत्व की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लग पड़े हैं जो बहुत घातक प्रमाणित होंगे।

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