जब से सारी व्यवसायिक शिक्षा के लिये प्लस टू की पात्रता बना दी गयी है तब से एक नयी प्रतिस्पर्धा पैदा हो गयी है। इस प्रतिस्पर्धा को प्राईवेट कोचिंग सैन्टरों ने और बढ़ा दिया है। इन्हीं कोचिंग सैन्टरों में आत्महत्याएं बढ़ती जा रही है। यह कोचिंग इतने महंगे हो गये हैं कि आम आदमी इन सैन्टरों में बच्चों को कोचिंग दिलाने की सोच भी नहीं सकता। फिर नीट की प्रतियोगी परीक्षा में जिस तरह से पेपर लीक का प्रकरण घटा है और उसमें इन प्राईवेट संस्थानों की भूमिका सामने आयी है वह अपने में ही एक गंभीर संकट का संकेत है। इसलिये इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि एक भीख मांगने वाला भी चाहता है कि उसके बच्चे को भी अच्छी शिक्षा मिले और वह कुछ बने।
शिक्षा केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों की सांझी सूची का विषय है। दोनों इस पर कानून बना सकते हैं। यदि केन्द्र और राज्य के कानून में कोई टकराव आये तब राज्य के कानून पर केन्द्र का कानून हावी होता है। हर राज्य सरकार ने अपने-अपने शिक्षा बोर्ड बना रखे हैं। जो पाठयक्रम और परीक्षा का आयोजन करते हैं। तकनीकी शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालय भी गठित है। केन्द्र सरकार ने भी शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालय गठित कर रखे हैं। पाठय पुस्तकों के लिये एन.सी.ई.आर.टी. गठित है। लेकिन यह सब होते हुये भी शिक्षा केन्द्र और राज्य दोनों का विषय बनी हुई है। इसी के कारण व्यवसायिक शिक्षा के लिये जे.ई.ई. और नीट की प्रतियोगिता परीक्षाएं आयोजित की जा रही है। इसलिये यह विचारणीय हो जाता है कि जब इन प्रतियोगी परीक्षाओं की मूल शैक्षणिक योग्यता प्लस टू है तब यदि पूरे देश में प्लस टू का पाठयक्रम ही एक जैसा कर दिया जाये और परीक्षा का प्रश्न पत्र भी एक ही हो तब इन प्रतियोगी परीक्षाओं की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। जब प्रतियोगी परीक्षा के लिये एक ही प्रश्न पत्र होता है तब उसी गणित से प्लस टू के लिये भी एक ही प्रश्न पत्र की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती।
इस समय पूरे देश में एक ही पाठयक्रम एक ही प्रश्न पत्र की व्यवस्था जब तक नहीं की जाती है तब तक इस प्रणाली में सुधार नहीं किया जा सकता। इस शिक्षा को व्यापार बनाये जाने से रोकने की आवश्यकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य हर आदमी की बुनियादी जरूरत है। इसमें जब तक प्राईवेट सैक्टर का दखल रहेगा तब तक शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्याएं और नकली दवायें तथा अस्पतालों में मरीजों का शोषण नहीं रोका जा सकता। इन क्षेत्रों में प्राईवेट सैक्टर का बढ़ता दखल एक दिन पूरी व्यवस्था को नष्ट कर देगा। समय रहते इस पर एक सार्वजनिक बहस आयोजित की जानी आवश्यक है।