Thursday, 18 September 2025
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कर्ज से आत्मनिर्भर नहीं हो सकते

सुक्खू सरकार को हर महीने करीब एक हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। चालू वित्त वर्ष के पहले दो माह में ही दो हजार करोड़ से अधिक का कर्ज ले लिया गया है। जब इस सरकार ने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश पर करीब 70000 करोड़ का कर्ज था जो अब एक लाख करोड़ से बढ़ गया है। माना जा रहा है कि इस सरकार का कार्यकाल समाप्त होने तक प्रदेश का कर्ज डेढ़ लाख करोड़ से बढ़ जायेगा। जो कर्ज यह सरकार ले रही है उसकी भरपायी अगले बीस वर्षों में की जायेगी जिसका अर्थ है कि आने वाली सरकारों के लिये वित्तीय कठिनाइयां इससे भी गंभीर हो जायेगी। इतना कर्ज लेने के बाद भी है सरकार अपने सभी कर्मचारियों को न तो वेतन दे पा रही है और न ही पैन्शन। कर्मचारियों के वेतन संशोधन से अर्जित एरियर का भुगतान अभी तक नहीं हो पाया है। मेडिकल के बिलों का भुगतान रुका पड़ा है। इसलिये अब यह मांग की जाने लगी है कि यह कर्ज कहां निवेश हुआ है उस पर श्वेत पत्र जारी किया जाये। जितनी भी घोषणाएं की जा रही है सबकी पूर्ति जमीन पर शून्य है। इसलिये चुनाव के दौरान जो गारंटियां दी गई थी उन्हें लागू करने के लिये सबके साथ कुछ शर्ते जोड़ दी गयी हैं। मनरेगा के काम लम्बे अरसे से बंद पड़े हैं। किसानों के दूध की खरीद का मूल्य बढ़ाने के साथ मिल्कफैड के दूध के दाम बढ़ा दिये गये हैं। घी तो सीधा सौ रूपये बढ़ा दिया गया है। इन दो वर्षों में जनता पर करों और शुल्कों का बोझ डालकर 5200 करोड़ से अधिक का राजस्व इकट्ठा किया गया है। इस वित्तीय वर्ष में सरकार के कर्ज लेने की सीमा 7000 करोड़ जो छः माह में ही पूरी हो जायेगी। अभी मुख्यमंत्री और उनकी टीम ने केंद्र से प्रदेश के कर्ज लेने की सीमा दो प्रतिशत बढ़ाने का आग्रह किया था जिसे स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि नियम इसकी अनुमति नहीं देते। कुछ राज्यों ने कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिये सर्वाेच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया था लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली है।
वित्तीय नियमों के अनुसार सरकारों को अपने राजस्व खर्च को अपने ही साधनों से पूरा करना पड़ता है। इसमें अपनी चादर देखकर ही पांव पसारने का नियम है। जिस कर्ज लेने से कोई आय का साधन बढ़ता हो उसी उद्देश्य के लिये कर्ज मिलता है। आज जो कर्जभार एक लाख करोड़ से बढ़ गया है उसे उठाते हुये भी आय बढ़ाने का तर्क दिया गया है। लेकिन आज तक इसका कोई हिसाब जनता के सामने नहीं रखा गया है कि इस कर्ज से कितना नियमित राजस्व बड़ा है। बल्कि व्यवहारिकता यह है कि इस कर्ज पर जो ब्याज अदा किया गया है वह उससे अपेक्षित आय से कई गुना अधिक है। जैसे-जैसे प्रदेश पर कर्जभार बढ़ता गया है उसी अनुपात में सरकार में स्थायी रोजगार कम होता गया है। आज आउटसोर्स पर दिये जा रहे रोजगार का आंकड़ा सरकार में दिये जा रहे स्थायी रोजगार से अधिक हो गया है। यह माना जा रहा है कि आने वाले कुछ समय में स्थाई रोजगार केवल राज्य और केन्द्र की प्रशासनिक सेवाओं में ही रह जाएगा। सरकारी कार्यालयों में स्थाई कर्मचारियों के स्थान पर आउटसोर्स वाले ही मिलेंगे।
इस वित्तीय स्थिति में जो 2026 में प्रदेश को आत्मनिर्भर और फिर देश का अग्रिम राज्य बनाने का आश्वासन दिया जा रहा है क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है। क्या सरकार यह जनता के सामने स्पष्ट करेगी कि उसने करों और शुल्क के अतिरिक्त प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में क्या उत्पादित किया जिससे अमुक स्थायी राजस्व बढ़ा है। हिमाचल प्रदेश में उद्योगों को लाने के लिये जितना सरकारी निवेश किया गया है उसके मुकाबले में उद्योगों से टैक्स और रोजगार उसके अनुपात में बहुत कम मिला है। पर्यटन में तो सरकारी होटल को बन्द करने की नौबत आ गयी थी। प्रदेश में सीमेंट उत्पादन के साधन है परन्तु सारा प्राइवेट सैक्टर में है सरकार इस उद्योग में क्यों नहीं आयी इसका आज तक कोई जवाब नहीं आया है। अब यही स्थिति विद्युत उत्पादन में होती जा रही है। सरकार पूरे विद्युत क्षेत्र को प्राइवेट सैक्टर के हवाले करने की नीति पर चल रही है। जब तक सरकारी क्षेत्र में उत्पादन के साधन नहीं बनाये जाते हैं तब तक प्रदेश की हालत नहीं सुधरेगी। कर्ज से प्रदेश की हालत नहीं सुधरेगा यह तय है।

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