उपराष्ट्रपति के चुनाव में एन.डी.ए. के उम्मीदवार सी.पी.राधाकृष्णन को बड़ी जीत हुई उन्हें इण्डिया गठबंधन के उम्मीदवार के मुकाबले 452 मत मिले हैं जबकि इण्डिया गठबंधन के जस्टिस रेड्डी को 300 मत मिले हैं। इस चुनाव में पन्द्रह मत अवैध पाये गये हैं और तेरह सांसदों ने मतदान में भाग ही नहीं लिया। एन.डी.ए. के उम्मीदवार की जीत को गृह मंत्री अमित शाह के कुशल राजनीतिक प्रबंधन का कमाल मान जा रहा है। गृह मंत्री के पास ई.डी. और सी.बी.आई. जैसे हथियार हैं और इन हथियारों का भी परोक्ष/अपरोक्ष में इस्तेमाल होने की चर्चाएं भी सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से उठ खड़ी हुई हैं। इन चर्चाओं को इसलिये अधिमान देना पड़ रहा है क्योंकि देश की राजनीति में इन हथियारों का इस्तेमाल 2014 के चुनावों के बाद से एक बड़ी चर्चा का विषय बन चुका है। उपराष्ट्रपति का यह चुनाव जिस तरह के राजनीतिक वातावरण में हुआ है उसमें इन चर्चाओं को नकारा भी नहीं जा सकता। चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक लंबे अरसे से सवाल उठते आ रहे हैं। आज यह सवाल कांग्रेस नेता राहुल गांधी के प्रमाणिक खुलासे के बाद ‘‘वोट चोरी’’ के एक बड़े अभियान तक पहुंच गये हैं। बिहार में एस.आई.आर को लेकर चुनाव आयोग और सर्वाेच्च न्यायालय में बहस जिस मोड़ तक जा पहुंची है वह अपने में ही बहुत कुछ कह जाती है।
इस पृष्ठभूमि में उपराष्ट्रपति चुनाव के आंकड़े अपने में बहुत बड़ी बहस को अंजाम दे जाते हैं। इण्डिया गठबंधन की एकता पर पहला सवाल खड़ा होता है। क्योंकि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस चुनाव का परिणाम आने से पहले ही यह दावा किया था कि इण्डिया ब्लॉक के सभी तीन सौ पन्द्रह सांसदों ने मतदान किया है। परिणाम आने पर इंडिया ब्लॉक को तीन सौ वोट मिले पन्द्रह वोट अवैध घोषित हुये। इन अवैध मतों पर चर्चा कांग्रेस नेता शशि थरूर और मनीष तिवारी के ब्यानों के बाद ज्यादा गंभीर हो जाती है। इसी कड़ी में तेरह सांसदों का मतदान में भाग ही न लेना और भी गंभीर सवाल खड़े कर देता है। क्योंकि मतदान से पहले किसी भी सांसद ने उपराष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों को लेकर कुछ नहीं कहा था। जबकि इस चुनाव में कोई भी दल अपने सांसदों को सचेतक जारी नहीं किये हुये था। क्योंकि इसका प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आज भी हमारे सांसद राष्ट्रीय महत्व के राजनीतिक प्रश्नों पर अपनी राय नहीं रख पा रहे हैं। इसी के साथ पन्द्रह सांसदों के मतों का अवैध पाया जाना यह सवाल खड़ा करता है कि क्या हमारे सांसदों को वोट डालना ही नहीं आता है या यह एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था। इस पर आने वाले दिनों में खुलासे आने की संभावना है।
जिन राजनीतिक परिस्थितियों में उपराष्ट्रपति का चुनाव आया और मतदान हुआ उससे यह स्पष्ट हो गया है कि ‘‘वोट चोरी’’ के जनान्दोलन में सरकार के लिये स्थितियां सहज नहीं रही हैं। यदि भारत जोड़ो यात्रा से भाजपा का आंकड़ा दो सौ चालीस पर आकर रुक सकता है तो निश्चित तौर पर वोट चोरी के आरोप का प्रतिफल बहुत बड़ा होगा। क्योंकि यह इसी आरोप का प्रतिफल है कि भाजपा को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलना कठिन होता जा रहा है। इसी आरोप के कारण प्रधानमंत्री का पच्चहत्तर वर्ष की आयु सीमा का सिद्धांत भी अभी अमल से दूर रखना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में इण्डिया गठबंधन को कमजोर करने के लिये नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी भी हद तक जा सकते हैं। कांग्रेस और राहुल गांधी को अक्षम प्रमाणित करने के लिये कांग्रेस की राज्य सरकारों को अस्थिर करके उन्हें भाजपा में शामिल होने की परिस्थितियों बनाई जा सकती हैं। जब राहुल गांधी ने पार्टी के भीतर भाजपा के स्लीपर सैल होने की बात की थी उसके बाद कांग्रेस के भीतर भी असहजता की स्थिति पैदा हुई है। हिमाचल में पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने जब राहुल गांधी पर कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप लगाया तो प्रदेश के एक भी कांग्रेस नेता ने इसका जवाब नहीं दिया। क्या इसे महज एक संयोग माना जा सकता है या यह एक प्रयोग था।