Friday, 19 September 2025
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जनाक्रोश के आगे झुकी सरकार

चौपाल-कोटखाई की दसंवी कक्षा की नाबालिग छात्रा के साथ हुए  गैंगरेप  और उसके बाद उसकी हत्या कर दिये जाने पर उभरे जनाक्रोष के आगे झुकते हुए इस मामलें की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला लेना पड़ा है वीरभद्र सरकार को। क्योंकि पुलिस की जांच पर जनता ने असन्तोष व्यक्त करते हुए यह आरोप लगाया कि पुलिस असली अपराधियों को बचाने का प्रयास कर रही है। पुलिस जांच पर यह आरोप इसलिये लगा क्योंकि जांच के दौरान मुख्यमन्त्री की अधिकारिक फेसबुक साईट पर चार युवाओं के फोटो अपलोड़ हो गये और इससे यह सन्देश गया कि यही लोग इस घिनौने कृत्य के दोषी हैं। फेसबुक पर फोटो आने के बाद यह सोशल मीडिया पर वायरल भी हो गये लेकिन जन चर्चा में आने के बाद इन फोटो को साईट से हटा भी दिया गया लेकिन जब जांच कर रही एसआईटी ने इस मामलें में पांच लोगों की गिरफ्तारी की अधिकारिक सूचना एक संवाददाता सम्मेलन के माध्यम से जनता के सामने रखी तब इन गिरफ्तार किये गये लोगों में उनमें से एक भी चेहरा नही था जिनके फोटो मुख्यमन्त्री की फेसबुक साईट पर आये थे। यही जनता के आक्रोष का कारण और जनता ने ठियोग तथा कोटखाई में व्यापक प्रदर्शन कर दिया। प्रदर्शन हिसंक होने के कगार तक पहुंच गया और सरकार को उसी समय सीबी आई को मामला सौंपना पड़ा जिसकी जांच पर मुख्यमंत्री के अपने प्रकरण में सरकार असन्तोष व्यक्त कर चुकी है।
अब यह मामला सीबीआई को सौंपा जा चुका है इसलिये सीबीआई की जांच के परिणाम आने तक इस पर कोई ज्यादा टिप्पणी करना अधिक संगत नही होगा। लेकिन इस प्रकरण पर मुख्यमन्त्री कार्यालय की भूमिका जिस तरह से सामने आयी है उस पर अवश्य ही गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। क्योंकि यह सवाल अहम हो जाता है कि जब यह फोटो ऐसे गंभीर प्रकरण में साईट पर अपलोड किये जा रहे थे तो स्वभाविक है कि इन्हें पूरी पड़ताल के बाद पूरी जिम्मेदारी से लोड किया गया होगा और इसकी जानकारी उनसे जुड़े प्रधान निजि सचिव प्रधान सचिव तथा मुख्यसचिव को अवश्य रही हेागी। इनको साईट से हटाने के निर्देश भी इन्ही अधिकारियों में से किसी के रहे होंगे। क्योंकि जब यह फोटो अधिकारिक साईट पर लोड किये गये थे तो निश्चित रूप से यह काम उन्ही लोगों ने किया जो इस काम से जुडे़ रहे हैं। यदि किसी अनाधिकारिक व्यक्ति ने ऐसा किया है तो निश्चित रूप से मुख्यमन्त्री की साईट हैक कि गयी होगी। परन्तु यदि साईट हैक की गयी होती तो इस संबध में साईबर अपराध के तहत कोई शिकायत दर्ज हुई होती और यह फोटो अपलोड हो जाने पर यह जानकारी सबको दी गयी होती। परन्तु ऐसा हुआ नही है। ऐसे में स्वभाविक रूप से कल सीबीआई के सामने भी यह बड़ा सवाल रहेगा ही क्योंकि मुख्यमन्त्री कार्यालय द्वारा ऐसा क्यों किया गया इसका कोई स्पष्टीकरण आया नही है। जबकि पुलिस की ओर से पहली और अन्तिम जानकारी प्रैस नोट और फिर पत्रकार वार्ता के माध्यम से ही सामने आयी है और जिस तरह से यह सब हुआ है उससे पुलिस जांच पर सवाल उठने भी बहुत स्वभाविक हैं और यही सब हुआ भी है।
अब इसी के साथ यह भी चर्चा का विषय बन रहा है कि जिस तरह की सक्रियता पुलिस ने इस रेप और हत्या के प्रकरण में दिखायी है वैसी ही सक्रियता फाॅरेस्ट गार्ड और किन्नौर वाले आत्म हत्या प्रकरणों में क्यों नही दिखायी गयी? क्या यह मामले सरकार और पुलिस की नजर में गंभीर नही हैं। क्या इन मामलों में भी जांच को अंजाम तक पहुंचाने के लिये इसी तरह से जनाक्रोष को सड़को तक आने की आवश्यकता होगी? आज सरकार और पुलिस की विश्वसनीयता इन प्रकरणों के कारण सवालों के घेरे में है। क्योंकि इसी कोटखाई प्रकरण में जो भूमिका मुख्यमन्त्री कार्यालय की रही है उससे पुलिस और प्रशासन से ज्यादा मुख्यमन्त्री पर सवाल उठने शुरू हो गये है। क्योंकि फोटो अपलोड होने के प्रकरण में यदि मुख्यमन्त्री फेसबुक साईट हैण्डल करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ कोई कड़ी कारवाई अपनी निष्पक्षता जनता के सामने नहीं रखेंगे तो उससे कालान्तर में उन्ही को नुकसान होगा। जबकि बहुत संभव है कि यह सब मुख्यमन्त्री की व्यक्तिगत जानकारी के बिना ही हो गया हो। अब बाकी मामलों में मुख्यमन्त्री को समयबद्ध जांच सुनिश्चित करने के अतिरिक्त जनता में विश्वास को बहाल करने का और कोई विकल्प शेष नही बचा है।

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