Friday, 19 September 2025
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यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ यही प्रतिबद्धता है तो...

भ्रष्टाचार के खिलाफ देश जे.पी. आन्दोलन से लेकर अन्ना आन्दोलन तक कई जनान्दोलन देख चुका है। हर आन्दोलन के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है यह भी एक सत्य है। प्रधानमन्त्रियों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सभी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ हर वक्त अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी है। भ्रष्टाचार से निपटने के लिये कानून में सक्ष्म प्रावधान हैं। इन प्रावधानों से आगे बढ़कर राज्यों में लोकायुक्तों की स्थापना तक कर दी गयी है। लोकायुक्त की तर्ज पर ही केन्द्र में लोकपाल की स्थापना की जा रही है। संसद और विधानसभाओं में बैठे जन प्रतिनिधियों के खिलाफ आये आपराधिक मामलों को एक वर्ष भीतर निपटाने के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय अधीनस्थ अदालतों को बहुत पहले जारी कर चुका है। बल्कि इन निर्देशों के परिणामस्वरूप ही फाॅस्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किये गये  है। लेकिन क्या इस सबके बावजूद भ्रष्टाचार रूक गया है या इसके मामलों में कोई कमी आयी है? इस सावल का जवाब तलाशते हुए उत्तर लगभग नकारात्मक ही निकलता है और इसी से यह सोचने जानने की आवश्यकता आ खड़ी होती है कि ऐसा क्यों हो रहा है। भ्रष्टाचार में कमी क्यों नही आ रही है। 

अभी सर्वोच्च न्यायालय ने नीरा यादव के मामलें में फैसला सुनाते हुए अपनी चिन्ता में इसके लिये समाज की सोच और उसके बदलते संस्कारों को इसके लिये सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना है। इन्ही बदलते सामाजिक संस्कारों/सरोकारों के कारण ही हम अत्यधिक उपभोक्तावाद की ओर बढ़ते जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने तो इसके खिलाफ सामूहिक आन्दोलन तक का आहवान किया है। यह सामूहिक आन्दोलन चाहिये भी। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इस आन्दोलन का स्वरूप क्या हो और यह कहां से शुरू हो। समाज के संस्कार उसको दी जाने वाली शिक्षा से बनते हैं यह एक स्थापित सत्य है। लेकिन आज देश की बिडम्बना यह है कि हम अभी तक एक शिक्षा नीति और एक ही पाठयक्रम पर सहमत नही हो पाये  है। यह देश का दुर्भाग्य है कि सरकारी स्कूलों को गरीबों के लिये शिक्षा का साधन मान लिया है और उच्च/संपन्न वर्ग के लिये नीजि स्कूलों को जब अमीर और गरीब के लिये शिक्षा के साधनों का पैमाना इस तरह से अलग -अगल हो जायेगा तो स्वभाविक है कि एक समान संस्कार नही बन पायेंगें। आज नीजि क्षेत्र के लिये शिक्षा एक बड़ा व्यापार बन गयी है। क्योंकि शिक्षा हर व्यक्ति को चाहिये। स्वभाविक है कि जिसकी आवश्यकता समाज के हर वर्ग के हर व्यक्ति को होगी वह व्यापार का उतना ही सबसे बड़ा क्षेत्र बन जायेगा। शिक्षा में नीजि क्षेत्रा के बढ़ते दखल के खिलाफ यू पी ए शासन के दौरान आज केन्द्र में सतारूढ भाजपा का संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तक भी आन्दोलन कर चुका है। देश का छात्रा वर्ग शिक्षा में नीजि क्षेत्र के बढ़ते दखल के खिलाफ एकमत है क्योंकि नीजि क्षेत्र के शिक्षण संस्थान आज शिक्षा नही बल्कि व्यापारिक प्रतिष्ठान बन कर रह गये हैं। नीजिक्षेत्र में चल रहे स्कूलों से लेकर उसके विश्वविद्यालयों तक यही व्यापारिक स्थिति बनी हुई है। शिक्षा में नीजिक्षेत्र का बढ़ता दखल और उसकी बढ़ती मनमानी आज चिन्ता का सबसे बड़ा कारण हैं क्योंकि शिक्षा संस्कार का मूल होती है और शिक्षा में बढ़ते व्यापारवाद के कारण ही अत्यधिक उपभोक्ता संस्कृति हमारी मानसिकता बनती जा रही है। क्योंकि नीजिक्षेत्र द्वारा दी जाने वाली शिक्षा में सबसे बड़ी भूमिका वहां खर्च किये जाने वाले पैसे की है। क्योंकि वहां दी जाने वाली भारी भरकम फीस एक स्टटेस सिंबल बन चुकी है। ऐसे में जब कोई किसी भी तरह का व्यवसायिक प्रशिक्षण ‘‘डाक्टर, वकील, इन्जिनियर’’ नीजिक्षेत्र से लेकर आता है तो नौकरी में आते ही उसकी मानसिकता सेवा भाव की न होकर केवल व्यापारिक होकर रह जाती है। क्योंकि शिक्षण/प्रशिक्षण के दौरान किये हुए खर्च का दस गुणा बसूल करना होता है। इस खर्च वसूल करने की मानसिकता के चलते उसका हर सामाजिक रिश्ता संबध कवेल पैसा होकर रह जाता है। यही पैसे की मानसिकता आगे चलकर अपराध और भ्रष्टाचार को जन्म देती है। आज समाज को इस पैसा केन्द्रित मानसिकता से बचाने का केवल एक ही मार्ग शेष है और वह है पूरे देश में स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक हर सतर के लिये एक ही पाठ्यक्रम और एक ही फीस। संस्थान चाहे सरकार का हो या नीजिक्षेत्र का सबके ऊपर यह नियम एक समान लागू होना चाहिये। शिक्षा में नीजि क्षेत्र सेवाभाव से नही वरन् बाजार भाव से प्रवेश कर रहा है। आज शिक्षा के क्षेत्र में नीजिक्षेत्र के बढ़ते दखल को रोकना बहुत आवश्यक है क्योंकि जब शिक्षा व्यापारिक मानसिकता से संचालित होगी तो उसका अन्तिम परिणाम केवल उपभोक्तावाद ही होगा।
इस परिदृश्य में देश के प्रधानमन्त्री से लेकर सर्वोच्च न्यायपालिका से यह आग्रह है कि यदि वास्तव में ही हम भ्रष्टाचार के खिलाफ गंभीर हैं तो इस दिशा में तुरन्त प्रभाव से कदम उठाने होंगे। शिक्षा के बाद चुनाव के क्षेत्रा में भी इसी तरह के कदम की आवश्यकता है उस पर अगले अंक में चर्चा करूंगा।

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